बाजारीकरण के फ़ार्मुलों का उपयोग करते हुए किस तरह हमारी भावनाओं को उभारा जाता है और फिर उन भावनाओं का दोहन करके किस तरह से पैसा कमाया जाता है इसका उदाहरण देखना हो तो भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के उदाहरण से समझा जा सकता है ! १९२८ से पहले कलकता क्रिकेट क्लब हुआ करता था जो बाद में भारतीय क्रिकेट बोर्ड बन गया ! उसके बाद हम भारतियों के दिलों में मीडिया के जरिये क्रिकेट के प्रति प्रेम पैदा किया ! जबकि हकीकत ये थी आजादी मिलने तक हमारे दिलों में किसी खेल के प्रति प्रेम था तो वो हॉकी के प्रति था ! और यही कारण था कि हॉकी को हमारे देश का राष्ट्रीय खेल घोषित किया गया था !
आजादी के बाद बीसीसीआई नें मीडिया का सहारा लेकर हमारे मन के अंदर क्रिकेट के प्रति प्रेम पैदा किया ! और इसमें राजनैतिक पार्टियों से जुड़े नेताओं के जुड़ाव के कारण सरकारी संसाधनों का मनमाना उपयोग किया गया ! याद कीजिये वो समय जब हमारे देश में आज कि तरह टेलीविजन नहीं होता था तब सरकारी रेडियो केन्द्र आकाशवाणी से क्रिकेट के खेल कि कमेंट्री सुनाई जाती थी ! और उसके बाद ज़माना आया टेलीविजन का तब भी आज की तरह अन्य खेल चैंनल नहीं थे बल्कि केवल सरकारी दूरदर्शन का ज़माना था और उस पर भी पुरे पुरे दिन अन्य कार्यकर्मों की जगह क्रिकेट के खेल को दिखाया जाता था ! जबकि हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल होते हुए भी उसको बिलकुल नहीं दिखाया जाता था !
इस तरह से सरकारी प्रचार तंत्रों का सहारा लेकर हम भारतियों के दिल से हॉकी प्रेम को निकालकर क्रिकेट के प्रति प्रेम जगाया गया और फिर जब अन्य चेनलों का ज़माना आया तो भारत में क्रिकेट के प्रसंशक इतने हो चुके थे जिससे उन चेनलों के लिए भी भारत में क्रिकेट एक कमाई का साधन बन गया ! आज भी देख लीजिए खेल चेनलों कि बात तो छोड़ हि दीजिए समाचार चेनलों पर भी वाकायदा क्रिकेट पर लगातार कार्यक्रम और परिचर्चाएं आयोजित करके क्रिकेट को बढ़ावा हि दिया जाता है ! इस तरह से देखा जाए तो हमारे मन में क्रिकेट के प्रति प्रेम जगाकर हमारी भावनाओं का बाजार तैयार किया गया ! जिसका फायदा आज हर कोई उठा रहा है !
बीसीसीआई आज जो आर्थिक रूप से इतनी ताकतवर दिखाई दे रही है उसके पीछे भी कहीं ना कहीं नाजायज रूप से उठाया गया सरकारी फायदा हि है ! आपको याद होगा कि किस तरह से बीसीसीआई नें सरकारी करों से बचने के लिए अपनें को धर्मार्थ संस्थान घोषित करके रखा था और सरकारी करों को नहीं चुकाया था और सरकारी सरंक्षण में स्टेडियमों कि व्यवस्था देश कि एक खेल संस्था होने नाते हासिल की लेकिन जब उसी खेल संस्था को अजय माकन के खेलमंत्री रहते हुए आरटीआई के दायरे में लाने के लिए पहल की गयी तो सरकार में शामिल कुछ बीसीसीआई के एजेंटनुमा राजनेताओं नें सरकार गिराने कि धमकी तक दे डाली ! और अजय माकन को अपना फैसला बदलना पड़ा था ! जिससे पता चलता है कि बीसीसीआई के पीछे राजनेताओं की एक जमात खड़ी है जो बीसीसीआई को बचाने के लिए आगे आ जाती है !
इस तरह से देखा जाए तो बीसीसीआई अलग अलग जगहों पर अपने फायदे के लिए हि काम करती है ! जहां उस पर सरकारी अंकुश लगने कि बात आती है तो वो अपने को निजी संस्था बताती है और जहां सरकारी फायदा लेना होता है वहाँ वो अपने को राष्ट्रीय खेल संस्था बना लेती है ! जहां उसे सरकारी करों से बचना होता है वहाँ वो अपने को धर्मार्थ संस्थान बता देती है ! अब कोई मुझे बताए जिस संस्था में इस तरह से पैंतरेबाज़ी चलती हो वहाँ कैसे यह माना जाए कि उसमें सब सही हि होगा ! दरअसल जो लोग फिक्सिंग को लेकर बीसीसीआई पर सवाल उठा रहें है उनको दरअसल सवाल क्रिकेट प्रशसंको कि समझदारी पर उठाना चाहिए जो बिना सोचे समझे क्रिकेट को अपना धर्म बना बैठे हैं और अपने को बाजारीकरण के हवाले करते जा रहे हैं और लोग उसका फायदा उठा रहे हैं !
11 टिप्पणियां :
बिल्कुल सहमत
तार्किक बाते
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन एक रोटी की कहानी - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
सच में हॉकी ही हमारा प्रिय खेल हुआ करता था। रोचक और सार्थक लेख। धन्यवाद। :)
नये लेख : राजस्थान के छ : किले विश्व विरासत सूची में शामिल और राष्ट्रीय जल संरक्षण वर्ष के रूप में मनाया जायेगा वर्ष 2013।
सार्थक आलेख....
.पूर्णतया सहमत बिल्कुल सही कहा है आपने .आभार . ये गाँधी के सपनों का भारत नहीं .
.पूर्णतया सहमत बिल्कुल सही कहा है आपने ..आभार . ये गाँधी के सपनों का भारत नहीं .
PURNRUPEN SAHAMT
आभार !!
आभार !!
आभार !!
आभार !!
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