रविवार, 2 जून 2013

श्रीनिवासन के इस्तीफे से किसका क्या भला हो जाएगा !

आईपीएल में फिक्सिंग वाला मामला जब से सामने आया है तब से हमारा मीडिया बीसीसीआई अध्यक्ष एन श्रीनिवासन और आईपीएल के अध्यक्ष राजीव शुक्ला के इस्तीफे को लेकर लगातार दबाव बनाए हुए हैं ! अब राजीव शुक्ला नें तो इस्तीफा दे दिया और एक दो दिन में एन श्रीनिवासन का भी इस्तीफा हो ही जाएगा ! लेकिन क्या इन दोनों के इस्तीफा देने भर से सब कुछ ठीक हो जाएगा ! हर बार की तरह इस बार भी हमारा मीडिया सतही समाधान की आशा ही पाले हुए है ! जबकि होना यह चाहिए था की सीधा निशाना सरकार और उन पार्टियों पर साधा जाता जो किसी ना किसी तरह से बीसीसीआई से जुडी हुयी है !

सबको पता है कि अजय माकन नें खेलमंत्री रहते हुए बीसीसीआई को सूचना के अधिकार कानून के अंतर्गत लाने की एक नाकाम कोशिश की थी और उनकी वो कोशिश फारुख अब्दुला और शरद पंवार की धमकियों के कारण ही नाकाम हो गयी थी ! दरअसल बीसीसीआई के इस गोरखधंधे में केवल सरकार चला रही पार्टी कांग्रेस ही नहीं बल्कि विपक्षी पार्टियां और सरकार को समर्थन दे रही सभी पार्टियां बराबर की दोषी है ! ये सभी पार्टियां नहीं चाहती है कि बीसीसीआई की व्यवस्था में कोई सुधार आये और बीसीसीआई में शामिल इन पार्टियों के नेताओं के हित प्रभावित हो ! और अभी भी वही कोशिश हो रही है कि कुछेक लोगों के इस्तीफे दिलवाकर मामले को ठंडा कर दिया जाए जिससे बीसीसीआई की वर्तमान विरोधाभासी ( किस तरह विरोधाभासी है इसका जिक्र मैंने अपने पिछले लेख "भावनाओं का बाजारीकरण इसी को कहते हैं " में किया था ) व्यवस्था पर कोई आंच आये !

यही वो समय था जब मीडिया को सबके ऊपर एक समान रूप से दबाव बनाना चाहिए था और सरकार पर दबाव बनाकर बीसीसीआई को उसके वर्तमान दर्जे से हटाकर बाकी खेल संघों के समान दर्जे पर लाया जा सकता था ! और अगर मीडिया अपनी भूमिका सही तरह से निभाता तो यह मुश्किल काम नहीं था क्योंकि अभी बीसीसीआई से जुडी हुयी हर पार्टी इस फिक्सिंग के कारण जनदबाव का सामना कर रही थी ! इसलिए बीसीसीआई की वर्तमान व्यवस्था को चुनौती देने का इससे अच्छा कोई और मौका मीडिया के पास हो नहीं सकता था लेकिन अफ़सोस की बात है कि मीडिया नें मामले को केवल सतही तौर पर ही देखा जिससे भारतीय मीडिया कि अपरिपक्वता का ही पता चलता है !    

शुक्रवार, 17 मई 2013

भावनाओं का बाजारीकरण इसी को तो कहते हैं !

बाजारीकरण के फ़ार्मुलों का उपयोग करते हुए किस तरह हमारी भावनाओं को उभारा जाता है और फिर उन भावनाओं का दोहन करके किस तरह से पैसा कमाया जाता है इसका उदाहरण देखना हो तो भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के उदाहरण से समझा जा सकता है ! १९२८ से पहले कलकता क्रिकेट क्लब हुआ करता था जो बाद में भारतीय क्रिकेट बोर्ड बन गया ! उसके बाद हम भारतियों के दिलों में मीडिया के जरिये क्रिकेट के प्रति प्रेम पैदा किया ! जबकि हकीकत ये थी आजादी मिलने तक हमारे दिलों में किसी खेल के प्रति प्रेम था तो वो हॉकी के प्रति था ! और यही कारण था कि हॉकी को हमारे देश का राष्ट्रीय खेल घोषित किया गया था !

आजादी के बाद बीसीसीआई नें मीडिया का सहारा लेकर हमारे मन के अंदर क्रिकेट के प्रति प्रेम पैदा किया ! और इसमें राजनैतिक पार्टियों से जुड़े नेताओं के जुड़ाव के कारण सरकारी संसाधनों का मनमाना उपयोग किया गया ! याद कीजिये वो समय जब हमारे देश में आज कि तरह टेलीविजन नहीं होता था तब सरकारी रेडियो केन्द्र आकाशवाणी से क्रिकेट के खेल कि कमेंट्री सुनाई जाती थी ! और उसके बाद ज़माना आया टेलीविजन का तब भी आज की तरह अन्य खेल चैंनल नहीं थे बल्कि केवल सरकारी दूरदर्शन का ज़माना था और उस पर भी पुरे पुरे दिन अन्य कार्यकर्मों की जगह क्रिकेट के खेल को दिखाया जाता था ! जबकि हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल होते हुए भी उसको बिलकुल नहीं दिखाया जाता था !

इस तरह से सरकारी प्रचार तंत्रों का सहारा लेकर हम भारतियों के दिल से हॉकी प्रेम को निकालकर क्रिकेट के प्रति प्रेम जगाया गया और फिर जब अन्य चेनलों का ज़माना आया तो भारत में क्रिकेट के प्रसंशक इतने हो चुके थे जिससे उन चेनलों के लिए भी भारत में क्रिकेट एक कमाई का साधन बन गया ! आज भी देख लीजिए खेल चेनलों कि बात तो छोड़ हि दीजिए समाचार चेनलों पर भी वाकायदा क्रिकेट पर लगातार कार्यक्रम और परिचर्चाएं आयोजित करके क्रिकेट को बढ़ावा हि दिया जाता है ! इस तरह से देखा जाए तो हमारे मन में क्रिकेट के प्रति प्रेम जगाकर हमारी भावनाओं का बाजार तैयार किया गया ! जिसका फायदा आज हर कोई उठा रहा है !