हमारे देश में नीति नियंताओं द्वारा समस्याओं को लेकर जो संजीदगी दिखानी चाहिए और उसी संजीदगी के साथ समस्याओं के समाधान की और आगे बढ़ना कहीं दिखाई नहीं देता है ! जिसका परिणाम ये हुआ है की आज हमारे नीति नियंताओं नें देश के सामने समस्याओं का अम्बार लगा दिया जिसका समाधान नामुमकिन तो नहीं माना जा सकता लेकिन आज के राजनितिक दौर को देखते हुए असंभव जरुर लगता है ! समय पर समस्याओं की और ध्यान नहीं दिए जाने के कारण ही आज नक्सलवाद की समस्या विकराल रूप धारण करके हमारे सामनें है !
अभी जो कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर नक्सली हमला हुआ है वो कोई पहला हमला तो है नहीं जिसमें इतनें लोग मारे गए हैं ! हमले पहले भी हुए हैं जिनमें आम लोग ,सुरक्षाकर्मी और छोटे स्तर के राजनैतिक नेता शिकार हुए थे और शायद इसीलिए ही देश के सतानशिनों नें संवेदनाएं जताने के अलावा कुछ भी करना उचित नहीं समझा ! लेकिन इस बार जब उच्च स्तर के राजनीतिक नेताओं पर हमले हुए तो इतना हो हल्ला मचाया जा रहा है और उस पर भी अफ़सोस की बात है कि इस पर भी राजनैतिक रोटियां सेकी जा रही है ! अगर समय रहते शायद इस और ध्यान दिया जाता तो हालात इस मुकाम पर ही नहीं पहुँचते और लोगों को अपनी जान नहीं गंवानी पड़ती !
हमारे नीति नियंताओं को आदिवासी इलाकों में चल रहे विकास के प्रारूप को बदलना होगा ! नए सिरे से विचार करना होगा कि हमारे विकास के प्रारूप में कहाँ कमी है जिसके कारण आदिवासी नक्सली बनने पर मजबूर हो रहे हैं ! आदिवासियों के जंगल और जमीन का पूंजीपतियों और राजनैतिक नेताओं द्वारा किया जा रहा बेहिसाब गैरकानूनी दोहन रोकना होगा तथा इन पूंजीपतियों ,नेताओं और नक्सलियों के गठजोड़ को खतम करना होगा ! क्योंकि ये लोग प्राकृतिक संपदाओं के दोहन में आदिवासियों के विरोध को दबाने के लिए नक्सलवादियों की मदद लेते हैं जिसके कारण भी आदिवासियों के अंदर गुस्सा पैदा होता है और फिर उनको रास्ता नक्सली बनने का ही दीखता है !
नक्सली समस्या किसी एक राज्य तक सिमित नहीं रह गयी है बल्कि देश के एक तिहाई जिलों तक इस समस्या नें अपनें पाँव फैला रखे हैं इसलिए आवश्यकता है समुचित कारवाई करनें की आवश्यकता है ! हर बार नक्सली हमला होता है तो दो चार दिन चर्चा का दौर गर्म रहता है और फिर गहन निंद्रा में चले जाते है ! इस प्रवृति से बाहर निकलना होगा और संजीदगी के साथ इस समस्या के खात्मे के बारें में सोचना होगा और ना केवल सोचना होगा उस पर अमल भी करना होगा ! तभी समाधान मिल सकता है !
22 टिप्पणियां :
आज हमारे देश में नक्सलवाद की समस्या बहुत ही गम्भीर हो गयी है,सरकार को इसकी खात्मे के विषय में गम्भीर रूप से सोचना चाहिए.बहुत ही सामयिक आलेख.
इसका स्थायी उपाय होना चाहिये.
रामराम.
nice post
क्यों नहीं सेना को इन्हें ख़त्म करने का जिम्मा दे दिया जाए!
बहुत से बुद्धिजीवी कहेंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है कि हमारे देश की सेना हमारे देश के नागरिको के ही विरुद्ध गोलिया चलाए!
तो क्या नक्सली विदेशियों को अपना शिकार बना रहे है!कुछ नुक्सान होगा देश का भी पर भला ज्यादा होगा सैनिक कार्यवाही का, मुझे तो ऐसा ही लगता है!
कुँवर जी,
इस हिंसक विचारधारा और इसका स्रोत लाल आतंक को कम से कम भारत से जड़-मूल से उखाड़ने का समय पक चुका है।
आभार !!
मजबूत इच्छाशक्ति की आवश्यकता है !!
राम राम,आभार ताऊ !!
आभार !!
इस समस्या की जड़ पर प्रहार करना होगा !!
आभार !!
अब कुछ होना चाहिए !!
आभार !!
अब बहुत हो चुका,सरकार को इस पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए,,,
RECENT POST : बेटियाँ,
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (28-05-2013) के "मिथकों में जीवन" चर्चा मंच अंक-1258 पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार !!
सहर्ष सादर आभार आदरणीय !!
मित्र खंडेलवाल जी, समाधान होना आवश्यक है | आपने कारण ,निदान प्रस्तुत किया है और बहुत कुछ
उपचार भी |आप का आभार भी |
आओ बजाएं 'शंख' जग सोया हुआ है |
'प्रगति-तन' पर 'शूल' चुभोया हुआ है ||
'मानवता'का बदन तीखी पीर से व्याकुल -
वक्ष बहते अश्रु से भिगोया हुआ है ||
सादर आभार !!
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन सलाम है ऐसी कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल को - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
सहर्ष आभार !!
अब समस्या का हल जरूर निकलेगा,क्योंकि आग घर तक पहुँच गयी है,अब तक तो जनता और सुरक्षा बल ही तो मर रहे थे चिंता की बात नहीं थी.इस बार तो मुवावजे भी घोषित हो गए,पी एम,सोनिया, व राहुल गाँधी ,रमनसिंह को भी जा कर आंसू बहाने,दाह संस्कार में शामिल होने का वक्त मिल गया,अन्यथा पहले मरने वालों के सम्बन्धी,यों ही रो धो कर रह जाते थे.
बिल्कुल, अब बहुत हो चुका।
लेकिन मुश्किल ये है कि नक्सलियों के हमदर्द
सरकार में भी तो बैठे हैं।
बढिया आलेख
देर से सही लेकिन अब कुछ हो तो भी अच्छा ही है !!
सादर आभार !!
उन हमदर्दों को किनारे करना होगा !!
आभार !!
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