गुरुवार, 5 सितंबर 2013

शिक्षक दिवस के बहाने ज़रा विचार तो कीजिये !!

आज शिक्षक दिवस है और इसको हर साल मनाते हैं ! बधाईयां , शुभकामनायें देकर हम अपनें कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं ! लेकिन जैसे जैसे नाम बदलते गए वैसे वैसे इनमें भावनात्मक लगाव भी कम होता गया इसका विचार करनें की जहमत कोई नहीं उठाता है ! अध्यापन करानें वाले और अध्ययन करनें वाले को पहले हमारे यहाँ गुरु और शिष्य कहा जाता था तब शिष्य का गुरु के प्रति आदर का भाव जिंदगी भर के लिए बना रहता था ! फिर इस रिश्ते का नया नाम शिक्षक और छात्र का हुआ और उस आदर के भाव में गिरावट आई और वो आदर का भाव केवल आमना सामना होनें तक सिमित हो गया ! आज तो इसका नया अंग्रेजी संस्करण टीचर और स्टूडेंट वाला आ गया है जिसमें यह रिश्ता केवल और केवल शिक्षण संस्थान के भीतर तक ही रह गया है और बाहर दोनों अनजान हो जाते हैं !

हम डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के जन्मदिवस को ही शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं ! लेकिन क्या यह अच्छा नहीं हो कि किसी भी दिवस को शुभकामनायें अथवा बधाइयों द्वारा मनाने के स्थान पर हम उस दिवस को मनाने के मूल उद्देश्य पर विचार करें , उस पर चिंतन करें ! उस पर चिंतन मनन करेंगे तभी तो वो दिवस मनाना सार्थक होगा और हमारे मनोभावों में कुछ बातें गहनता से अपना स्थान बना पाएगी ! वर्ना तो केवल और केवल औपचारिकता निभानें की चलती फिरती मशीन बन कर रह जायेंगे ! हमें आज शिक्षक दिवस के बहानें इस बात पर विचार किया जाना चाहिए कि हमारी प्राचीन परम्परा से चला आ रहा  गुरु और शिष्य का रिश्ता आज टीचर और स्टूडेंट तक आते आते केवल औपचारिक बनकर क्यों रह गया है !

वैसे आप गौर करेंगे तो इस रिश्ते में नाम बदलते बदलते केवल यही एक फर्क नहीं आया है बल्कि इसके साथ साथ इस रिश्ते की गरिमा में भी गिरावट आई है ! आजकल अखबारों में आपको ऐसे समाचार देखनें को मिलेंगे जो गुरु शिष्य के रिश्तों पर भी प्रश्नवाचक चिन्ह लगा रहें है ! केवल यही नहीं इसके अलावा भी बहुत कुछ बदला है जब से शिक्षा व्यवस्था का जिम्मा राज्यव्यवस्था के पास गया है तबसे शिक्षा की गुणवता में लगातार गिरावट आती जा रही है और आज तो शिक्षा व्यवस्था केवल अपनीं राजनितिक सोच थोपनें की व्यवस्था बनकर रह गयी है ! पहले शिक्षा व्यवस्था जहाँ बच्चों को उनके सम्पूर्ण जीवन में आनें वाली परेशानियों को दूर करनें का पाठ पढाती थी वहीँ आज केवल अक्षरज्ञान और रटत विधा बनकर रह गयी है जिनके सामनें केवल एक ही मकसद रहता है और वो है केवल धनोपार्जन !

किसी भी दिवस को मनाने के पीछे उसके पीछे छिपी सोच को अंगीकरण करना और उससे जुडी बातों पर विचार करेंगे तभी उस दिवस को मनाने को हम सार्थक कर पायेंगे !  

17 टिप्‍पणियां :

रविकर ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति
आभार आदरणीय-

गुरु-गुरुता गायब गजब, अजब आधुनिक काल |
मिले खिलाते गुल गुरू, गुलछर्रे गुट-बाल |
गुलछर्रे गुट बाल, चाल चल जाँय अनोखी |
नीति-नियम उपदेश, लगें ना बातें चोखी |
मिटे कला संगीत, मिटा पाए ना पशुता |
नहीं पढ़ा साहित्य, कहाँ कायम गुरु-गुरुता ||

Unknown ने कहा…

आपकी यह सुन्दर रचना दिनांक 06.09.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।

Unknown ने कहा…

आपकी यह सुन्दर रचना दिनांक 06.09.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।

Pallavi saxena ने कहा…

सही कह रहे हैं आप वर्तमान हालातों में शिक्षा का मतलब है पैसा कैसे कमाया जाता है यह सीखना और यही सिखाना रही बात मर्यादाओं की तो वह तो अब किसी भी रिश्ते में बाकी नहीं है तो फिर भला यह गुरु शिष्य का रिश्ता उस सब से अछूता कैसे रहता। हर कोई आज एक अच्छे सभ्य और सुरक्षित समाज की कामना करता है मगर समाज में रह रहे वायक्तियों के जीवन की सही एनआईवी रखने की कामना केवल एक अच्छा और सच्चा शिक्षक ही कर सकता है क्यूंकि शिक्षक अच्छा होगा तो शिष्य भी सभ्य होगा और यदि ऐसा हुआ तो समाज अपने आप सभ्य हो जाएगा मगर अफ़सोस की आजकल पैसा कमाने के लिए नयी नयी तकनीकों और कंपनियों को बनाने के लिए बहुत सी कंपनियाँ और योजनाएँ काम कर रही है मगर एक अच्छा शिक्षक बनाने या बनाने का काम कोई नहीं कर रहा है शिक्षा का मुली उदेश्य पैसे की लालसा मेन कहीं विलुप्त हो गया है।

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं
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ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बिल्कुल सही कहा आपने, शुभकामनाएं.

रामराम.

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सुन्दर और सही कहा है आपनें !!
सादर आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सहर्ष आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सहर्ष सादर आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आपका कहना सही है !!
आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सहर्ष आपको भी बधाईयां !!
सादर आभार !!

Pratibha Verma ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

Satish Saxena ने कहा…

कविता,गद्य,छंद,ग़ज़लों पर ,
कब्ज़ा कर ,लहरायें झंडा !
सुंदर शोभित नाम रख लिए
ऐंठ के चलते , लेकर डंडा !
भीड़ देख , इन आचार्यों की, आतंकित हैं, मेरे गीत !
कहाँ गुरु को ढूंढें जाकर , कौन सुधारे आकर, गीत !

dr.mahendrag ने कहा…

यह अब एक सालाना सरकारी जलसा बन कर रह गया है,अब शिक्षकों व शिष्यों में न तो इस प्रकार के कार्यों के लिए कोई उपयोगिता रही है, केवल भाषणों की लकीर पीटना,माला पहना गाड़ियों में वापस भाग जाना और अलमस्त सुबह को ख़राब करने के लिए कोसते हुए चले जाना उन बेचारे नेताओं का अमूल्य समय बर्बाद करना ऐसे अवसरों का उद्देश्य रह गया है. अच्छा हो इस करम कांड को हटा दिया जाये.स्वयं एक शिक्षक रह इन सब बातों को बड़ी निकटता से देख चूका हूँ. शायद कुछ लोगों को इस बात से ठेस पहुंचे,पर सत्यता के धरातल पर यह शत प्रतिशत सही है.

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सही कहा !
सादर आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सही कहा है आपनें !
सादर आभार आदरणीय !!