बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

सरफरोशी की तमन्ना अब न किसी के दिल में है !!

जो आजादी हमें मिली वो भी अब छिनने लगी !
सत्ता की गलियाँ नोटों की गड्डियाँ गिनने लगी !!
देखना है मंजिल से फासला कितना साहिल में है !
सरफरोशी की तमन्ना अब न किसी के दिल में है !!

देश में वतनपरस्ती भी लग रही है अब मजाक लोगों को !
ईमान की नीलामी पर न मिलेगी वतन की ख़ाक लोगों को !!
हम को जो मार पाए दम वो कहाँ किसी बुजदिल में है !
सरफरोशी की तमन्ना अब न किसी के दिल में है !!


ईमानदारों को मारकर वो जश्न मनाते जा रहे हैं !
वो माँ बहनों के पहलुओं में सर छुपाते जा रहे हैं !!
समझाए कीमत वतन की वो बात किस काबिल में है !
सरफरोशी की तमन्ना अब न किसी के दिल में है !!

कोयला और चारा भी अब भोजन का साधन बना !
चीत्कारों और कराहों की आवाज़ सत्ता का वादन बना !!
यहाँ मतलब की बात फ़ैल रहि बहती अनिल में है !
सरफरोशी की तमन्ना अब न किसी के दिल में है !!

भूख से तरसती आँखों पर ये एहसान जरुरी है !
भीख मांगने से बेहतर तो दो पल की मजदूरी है !!
मारता नहीं जो गद्दारों को गिनती उसकी कातिल में है !
सरफरोशी की तमन्ना अब न किसी के दिल में है !!

आत्म हत्या पर किसानों की हो रहा कागज़ी खेल यहाँ !
देश को बेंचने वालो का सत्ता से है मधुर मेल यहाँ !!
जो जगा दे भाव शहादत का कशिश नहीं वो मंजिल में हैं !
सरफरोशी की तमन्ना अब न किसी के दिल में है !!

अब युवाओं को ही इस देश को बचाना होगा !
विश्वविजयी पताका फिर से फहराना होगा !!
देश बचाने वाले नाच रहे पश्चिम की महफ़िल में हैं !
सरफरोशी की तमन्ना अब न किसी के दिल में है !!

( इस रचना के रचनाकार का पता मुझे नहीं है

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