अभी कल ही दिल्ली में सताईस लाख रूपये के नए नोट पकडे गए हैं तो ऐसे में ये सवाल उठना लाजमी है कि आम जनता को जब बड़े पैमाने पर नए नोट दिए ही नहीं जा रहे हैं तो इन लोगों को इतनें रूपये नए नोटों में कहाँ से मिल गए ! नए नोट बैंको और डाकघरों के जरिये ही जनता तक पहुंचाए जा रहें हैं तो जाहिर है जिनको लाखों की संख्या में नए नोट मिले हैं वो बैंकों या डाकघरों के जरिये ही मिले होंगे ! और इससे पहले भी इस तरह के एक दौ मामले सामनें आये थे जो इतने बड़े नहीं थे ! ऐसे में यह बात तो निकलकर सामनें आ ही रही है कि कुछ बैंककर्मियों नें कोई सुराख तो खोज ही लिया है !
देश के कुछ क्षेत्रों के लोगों को आयकर से छुट मिली हुयी है जिसका फायदा भी पुरानें नोटों को नए नोटों में बदलने के लिए उठाया जा रहा है ! अभी हाल ही में साढे तीन करोड़ के पुरानें नोटों का जो मामला सामनें आया उससे तो यही लग रहा है ! सरकार को सोचना चाहिए कि जो मामले सामनें आते हैं वो तो एक बानगी भर होती है असल में तो ऐसे मामले बहुतायत में होते हैं जो पकड़ में नहीं आते !
जनधन और बचत खातों का दुरूपयोग भी धड़ल्ले से हो रहा जिसको तो खुद सरकार भी मान रही है लेकिन इनका दुरूपयोग कैसे रोका जाए इसको लेकर खुद सरकार पशोपेश में है ! अगर सरकार की नोटबंदी योजना में इस तरह के सुराख बने रहे तो फिर यह पूरी योजना ही असफल योजना साबित हो जायेगी !
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