गुरुवार, 5 अगस्त 2021

क्या हॉकी के फिर से अच्छे दिन आयेंगे !


भारत के राष्ट्रीय खेल हॉकी में भारतीय हॉकी टीम नें टोक्यो ओलम्पिक २०२० में जर्मनी को हराकर कांस्य पदक हासिल करके देश को गौरंवान्वित किया है ! १९२८ से १९८० तक ८ बार स्वर्ण पदक हासिल करने वाली भारतीय हॉकी टीम पिछले ४० वर्षों में पदक के लिए तरस गयी थी ! इतने वर्षों बाद पदक का सुखा ख़त्म करके भारतीय हॉकी टीम नें हॉकी के सुनहरे दिन आने की एक आशा की किरण जगाई है और बधाई योग्य कार्य किया है !  

बधाई के हकदार उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक जी भी है जिन्होंने हॉकी फेडरेशन के जब बुरे दिन चल रहे थे तब भारतीय हॉकी टीम के प्रायोजक बनना स्वीकार किया और हॉकी को वो सुविधाएं मुहैया करवाई जो खिलाड़ियों को चाहिए थी ! २०१२ में जब सहारा नें बीसीसीआई की क्रिकेट टीम के प्रायोजक बनने से किनारा कर लिया तो सहारा के बुरे दिन आने भी शुरू हो गए थे क्योंकि क्रिकेट नेताओं का सबसे ज्यादा दखल वाला पसंदीदा खेल था ! और कहा तो यहाँ तक जाता है कि सहारा की बर्बादी का कारण भी वो फैसला रहा जिसमें वो क्रिकेट टीम के प्रायोजन से अलग हो गयी !

२०१८ आते आते सहारा की हालत इतनी खराब हो चुकी थी कि उसको हॉकी टीम के प्रायोजन से भी मज़बूरी में अलग होना पड़ा और इतने बड़े देश में दूसरा कोई व्यापारिक संस्थान हॉकी को प्रायोजित करने के लिए सामने नहीं आया ! हॉकी फेडरेशन गहरे आर्थिक संकट से घिर गयी लेकिन केंद्र सरकार का भी दिल नहीं पसीजा और उसनें भी किसी तरह की सहायता देने में दिलचस्पी नहीं दिखाई ! ऐसे में हॉकी के मसीहा बनकर उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक जी सामनें आये और उड़ीसा सरकार को हॉकी का प्रायोजक बनाया ! उन्होंने हॉकी का प्रायोजक बनना तो स्वीकार किया ही साथ ही हॉकी के लिए मुलभुत सुविधाएं मुहैया करवाने की तरफ भी ध्यान दिया ! हॉकी के लिए बनावटी घास के मैदान की बात हो या हॉकी विश्वकप की मेजबानी की बात हो उड़ीसा सरकार बिना प्रचार के अपनें काम में लगी हुयी है !


हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल होते हुए भी भारत सरकार नें हॉकी को बढ़ावा देने के लिए कुछ नहीं किया और ना ही हॉकी के लिए मुलभुत सुविधाएं देने का काम किया ! बीसीसीआई की क्रिकेट टीम नें १९८३ में जब विश्वकप जीता और व्यापारिक संस्थानों को क्रिकेट भाया तो सरकार भी हॉकी सहित अन्य खेलों को बिसराकर क्रिकेट की तरफ आकर्षित हो गयी ! क्रिकेट के लिए खूब स्टेडियम बनवाये गए क्रिकेट के खिलाड़ियों को सर आँखों पर बिठाया और बाकी खेलों की तरफ से मुहं मोड़ लिया ! हम लोग भी ओलम्पिक आते ही पदकों की तरफ आशा लगाते हैं लेकिन उसके बाद अगले ओलम्पिक तक सब कुछ भूल जाते हैं ! हम ये भूल जाते हैं कि अन्य देशों के खिलाड़ियों को जो खेल सुविधाएं मिलती है वो हमारे खिलाड़ियों को तो मिलती ही नहीं तो फिर उनकी बराबरी वो कैसे कर पायेंगे !

हम भारतीय क्रिकेट के दीवाने हैं लेकिन यह देखना होगा कि ओलम्पिक पदक तालिका में एक से लेकर पांचवें नंबर तक जो देश है उनमें एक आस्ट्रेलिया ही है जो क्रिकेट खेलता है ! लेकिन ऑस्ट्रेलिया भी क्रिकेट को विशेष दर्जा नहीं देता बाकी खेलों की तरह ही लेता है ! हमको सोचना होगा कि क्या ओलम्पिक में पदकों के शिखर पर बैठे देशों के पास इतनी क्षमता नहीं है कि वो क्रिकेट के खिलाड़ी पैदा ना कर सके, उनमें वो क्षमता है क्योंकि बाकी खेलों के खिलाड़ी वो तैयार करते हैं तो क्रिकेट तो सबसे आसान खेल है उसके खिलाड़ी आसानी से तैयार कर लेंगे !