शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

आंदोलन करना क्या वाकई फैशन बन गया है !!

भारत में आंदोलन पहले भी होते रहें हैं और आगे भी होते रहेंगे फर्क केवल इतना आया है कि पहले मीडिया का जमावड़ा इतना नहीं रहता था और अब निजी चेनल ज्यादा होने के कारण आंदोलनों की कवरेज ज्यादा होती है और लोकतांत्रिक देश होने के तौर पर जानकार भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत भी मान रहे हैं और जागरूक होते समाज की तस्वीर के रूप में देख रहें हैं ! यह अलग बात है कि सताधिशों की उदासीनता और हठधर्मिता के कारण आंदोलनों के भयावह परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं लेकिन उसके लिए आंदोलनों को तो जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है और ना ही जनता के आंदोलन के अधिकार को छिना जा सकता है ! जरुरत है तो इस बात की कि सताधिश,अफसरशाही और हमारे राजनितिक नेता अपने रवैये में बदलाव लाये और आंदोलनों के प्रति सकारात्मक रुख अपनाएँ !!

जागरूक होता समाज हमारे नेतागणों को रास नहीं आ रहा है इसलिए नेताओं की तरफ से हर आंदोलन के समय नेताओं की तरफ से कहा जाता है कि आंदोलन करना फैशन हो गया है ! लालू यादव सरीखे अन्य नेता तो पहले भी इस तरह के बयान दे चुके हैं  लेकिन इस बार यह बात कही कांग्रेस के नये नवेले सांसद और देश के शीर्ष पद पर आसीन राष्ट्रपति के बेटे अभिजीत मुखर्जी ने जिसको ख़ासा गंभीर माना जा सकता है क्योंकि पहले जितने भी नेताओं ने इस तरह के बयान दिए है उनको पुरानी सोच का नेता माना जाता है लेकिन मुखर्जी युवा नेता है और उनकी तरफ से बलात्कार के खिलाफ हो रहे आंदोलन पर इस तरह का बयान आना दुर्भाग्यपूर्ण ही माना जाएगा !