भारत में आंदोलन पहले भी होते रहें हैं और आगे भी होते रहेंगे फर्क केवल इतना आया है कि पहले मीडिया का जमावड़ा इतना नहीं रहता था और अब निजी चेनल ज्यादा होने के कारण आंदोलनों की कवरेज ज्यादा होती है और लोकतांत्रिक देश होने के तौर पर जानकार भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत भी मान रहे हैं और जागरूक होते समाज की तस्वीर के रूप में देख रहें हैं ! यह अलग बात है कि सताधिशों की उदासीनता और हठधर्मिता के कारण आंदोलनों के भयावह परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं लेकिन उसके लिए आंदोलनों को तो जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है और ना ही जनता के आंदोलन के अधिकार को छिना जा सकता है ! जरुरत है तो इस बात की कि सताधिश,अफसरशाही और हमारे राजनितिक नेता अपने रवैये में बदलाव लाये और आंदोलनों के प्रति सकारात्मक रुख अपनाएँ !!
जागरूक होता समाज हमारे नेतागणों को रास नहीं आ रहा है इसलिए नेताओं की तरफ से हर आंदोलन के समय नेताओं की तरफ से कहा जाता है कि आंदोलन करना फैशन हो गया है ! लालू यादव सरीखे अन्य नेता तो पहले भी इस तरह के बयान दे चुके हैं लेकिन इस बार यह बात कही कांग्रेस के नये नवेले सांसद और देश के शीर्ष पद पर आसीन राष्ट्रपति के बेटे अभिजीत मुखर्जी ने जिसको ख़ासा गंभीर माना जा सकता है क्योंकि पहले जितने भी नेताओं ने इस तरह के बयान दिए है उनको पुरानी सोच का नेता माना जाता है लेकिन मुखर्जी युवा नेता है और उनकी तरफ से बलात्कार के खिलाफ हो रहे आंदोलन पर इस तरह का बयान आना दुर्भाग्यपूर्ण ही माना जाएगा !
हालांकि अपने बयान पर खुद अभिजीत मुखर्जी और उनकी बहिन शर्मिष्ठा मुखर्जी भी अपने भाई द्वारा दिए गये बयान के लिए माफ़ी मांग चुकी है ! जिसको अच्छा कहा जा सकता है वर्ना आजकल नेता अपने उलजुलूल बयानों पर कम ही खेद जताते है ! लेकिन माफ़ी मांगने के बाद भी उनके द्वारा दिया गया बयान उनको कठघरे में तो खड़ा करता ही है और आंदोलनों के प्रति उनकी सोच को भी दर्शाता है ! और युवा नेता ही युवाओं के आक्रोश को अगर नहीं समझ सके तो इसको अच्छा संकेत तो कतई नहीं माना जा सकता है !!
बलात्कार के मामलों पर पहले भी अनेक नेता अपने उलजुलूल बयानों को लेकर चर्चा में रहे हैं और उनको अपने बयानों को लेकर कठघरे में खड़ा होना पड़ा है लेकिन मुखर्जी ने इस तरह का बयान देकर सबको हतप्रभ ही किया है क्योंकि एक तो वो युवा है और दूसरे राष्ट्रपति के सुपुत्र हैं इसलिए उनसे इस तरह के बयानों की उम्मीद देश नहीं कर रहा था ! इस बार उनके माफ़ी मांगने के बाद उनसे इस बात की तो आशा की ही जा सकती है कि आगे वो ऐसी बातों का ध्यान रखेंगे और भविष्य में इस तरह की बयानबाजी से दूर रहेंगे !!
3 टिप्पणियां :
बात बस इतनी नहीं, थोड़ा रूक कर हमे आंदोलन की गंभीरता पर भी सोंचना चाहिए..
सुन्दर प्रस्तुति,
जारी रहिये,
बधाई !!
यह है की जागृत होता समाज इनको अपने लिए एक ख़तरा नजर आ रहा है !
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