आईपीएल में फिक्सिंग वाला मामला जब से सामने आया है तब से हमारा मीडिया बीसीसीआई अध्यक्ष एन श्रीनिवासन और आईपीएल के अध्यक्ष राजीव शुक्ला के इस्तीफे को लेकर लगातार दबाव बनाए हुए हैं ! अब राजीव शुक्ला नें तो इस्तीफा दे दिया और एक दो दिन में एन श्रीनिवासन का भी इस्तीफा हो ही जाएगा ! लेकिन क्या इन दोनों के इस्तीफा देने भर से सब कुछ ठीक हो जाएगा ! हर बार की तरह इस बार भी हमारा मीडिया सतही समाधान की आशा ही पाले हुए है ! जबकि होना यह चाहिए था की सीधा निशाना सरकार और उन पार्टियों पर साधा जाता जो किसी ना किसी तरह से बीसीसीआई से जुडी हुयी है !
सबको पता है कि अजय माकन नें खेलमंत्री रहते हुए बीसीसीआई को सूचना के अधिकार कानून के अंतर्गत लाने की एक नाकाम कोशिश की थी और उनकी वो कोशिश फारुख अब्दुला और शरद पंवार की धमकियों के कारण ही नाकाम हो गयी थी ! दरअसल बीसीसीआई के इस गोरखधंधे में केवल सरकार चला रही पार्टी कांग्रेस ही नहीं बल्कि विपक्षी पार्टियां और सरकार को समर्थन दे रही सभी पार्टियां बराबर की दोषी है ! ये सभी पार्टियां नहीं चाहती है कि बीसीसीआई की व्यवस्था में कोई सुधार आये और बीसीसीआई में शामिल इन पार्टियों के नेताओं के हित प्रभावित हो ! और अभी भी वही कोशिश हो रही है कि कुछेक लोगों के इस्तीफे दिलवाकर मामले को ठंडा कर दिया जाए जिससे बीसीसीआई की वर्तमान विरोधाभासी ( किस तरह विरोधाभासी है इसका जिक्र मैंने अपने पिछले लेख "भावनाओं का बाजारीकरण इसी को कहते हैं " में किया था ) व्यवस्था पर कोई आंच आये !
यही वो समय था जब मीडिया को सबके ऊपर एक समान रूप से दबाव बनाना चाहिए था और सरकार पर दबाव बनाकर बीसीसीआई को उसके वर्तमान दर्जे से हटाकर बाकी खेल संघों के समान दर्जे पर लाया जा सकता था ! और अगर मीडिया अपनी भूमिका सही तरह से निभाता तो यह मुश्किल काम नहीं था क्योंकि अभी बीसीसीआई से जुडी हुयी हर पार्टी इस फिक्सिंग के कारण जनदबाव का सामना कर रही थी ! इसलिए बीसीसीआई की वर्तमान व्यवस्था को चुनौती देने का इससे अच्छा कोई और मौका मीडिया के पास हो नहीं सकता था लेकिन अफ़सोस की बात है कि मीडिया नें मामले को केवल सतही तौर पर ही देखा जिससे भारतीय मीडिया कि अपरिपक्वता का ही पता चलता है !