जहां पूरी व्यवस्था भ्रष्टाचार और संवेदनहीनता से सराबोर हो वहाँ क्या केवल कड़े कानूनों से बलात्कार कि बढती घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सकता है ! कड़े कानूनों को लागू करने वाली तो यही व्यवस्था ही है तो फिर कैसे यह आशा की जा सकती कि इस व्यवस्था को सुधारे बिना किसी को न्याय मिल सकता है ! किसी भी अपराध की जांच करने वाली एजेंसी पुलिस है और आज के हालात देखिये तो भ्रष्टाचार और संवेदनहीनता में वो सबसे आगे नजर आती है फिर कैसे भरोसा हो कि वो किसी को न्याय दिलवा पाएगी ! और इस व्यवस्था को सुचारू चलाने और सुधारने का जिम्मा जिनके हाथों में सौंपा है वो तो खुद ही आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं और उनको अपने भ्रष्टाचार के मामलों से फुर्सत मिले तभी तो यह सोचेंगे कि कैसे समस्या का समाधान खोजा जाए और जब पूरी व्यवस्था का यही हाल हो तो कड़े कानून भी क्या कर लेंगे !
अगर कोई इमानदारी से बलात्कार जैसे घिनोने अपराधों को रोकना चाहेगा तो उसे सबसे पहले शराब पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाना होगा ! अगर ऐसा हो जाता है तो बलात्कार जैसे अपराध ही नहीं अन्य कई और अपराधों को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है लेकिन ऐसा होने कि आशा दूर दूर तक नहीं दिखाई देती है क्योंकि हमारी सरकारों के लिए सबसे ज्यादा राजस्व हासिल करने का माध्यम शराब और अन्य नशीले पदार्थ ही है ! और अगर शराब पर पूर्ण प्रतिबन्ध लागू कर दिया जाए तो अन्य मदों से आने वाला राजस्व इतना नहीं होगा कि उससे वो राज्यों का कामकाज भी चला सके और अपनी सुख सुविधाओं के लिए भी खर्च कर सके और हमारे सताधिश यह कदापि नहीं चाहेंगे कि उनकी सुख सुविधाओं में किसी भी तरह कि कटौती हो !
सिनेमा जगत और विज्ञापन जगत भी लगातार अश्लील दृश्यों और द्विअर्थी संवादों के जरिये दिमागी जहर परोस रहा है जो लगातार बढ़ता ही जा रहा है ! नारी कि नग्नता को फिल्मों की सफलता का पैमाना लगातार बनाया जा रहा है ! भडकाऊ दृश्यों के लिए फ़िल्मी दृश्यों के अलावा आइटम सोंग डाले जा रहे हैं और इसका मकसद एक ही है कि फ़िल्में मादकता से भरपूर हो ! विज्ञापन जगत का हाल तो और भी बुरा है वहाँ तो बिना जरूरत के बेहिसाब मादकता परोसी जा रही है ! विज्ञापनों में नारी को इस तरह दिखाया जाता है जैसे नारी नारी नहीं होकर कोई मर्दों के चिपकने वाली चुम्बक हो ! हालांकि विज्ञापन जगत बनावटी होता है लेकिन यह समझना तो देखने वाले पर निर्भर करता है ! कभी हिटलर नें कहा था कि "झूठ को इतनी बार बोलो कि वो सच लगने लगे" तो जब झूठ को इतनी बार बोलने से वो सच लगने लगता है तो यहाँ चक्रीय रूप से वही विज्ञापन आँखों को दिखाई देते है इसलिए सिनेमा जगत और विज्ञापन जगत पर भी लगाम लगाने कि जरुरत है !