रविवार, 3 फ़रवरी 2013

पशुधन के मामले में कंगाल होता भारत !! (भाग -१)

भारत को अहिंसावादी देश माना जाता है ! इतिहास बताता कि यहाँ कभी घी और दूध कि नदियाँ बहती थी और पशुओं के प्रति जनता का अगाध प्रेम था ! पशु पक्षी प्रेम को धर्म का अंग मानकर उनकी पूजा होती थी ! इस आधार पर देखा जाए तो विश्व में सर्वाधिक पशु पक्षी भारत में ही होने चाहिए थे लेकिन आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में लगातार पशु पक्षियों की संख्या में गिरावट आ रही है और कुछ प्रजातियां तो ऐसी है जो या तो लुप्त हो गयी या फिर लुप्त होने के कगार पर पहुँच गयी है ! 

अगर हम भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में १९५१ में जहां १००० भारतीयों के अनुपात में ४३० दुधारू पशु थे जो घटकर २००१ में मात्र ११० रह गयी ! अब इसको दूसरों देशों के साथ तुलना करें तो अर्जेंटीना में २०८४ ,आस्ट्रेलिया में १४६५ ,कोलम्बिया में ९१९ , ब्राजील में ७२६ दुधारू पशु प्रति एक हजार व्यक्ति है ! इसी तरह कि स्थति अन्य पशुओं के मामले में भी है ! विचार करने योग्य बात यह है कि क्या कारण है कि हम पशुधन के मामले में कंगाल होते जा रहें है तो इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि हमारी सरकारों ने एक बहुत ही घिनोना काम यह किया कि अपने पशुधन को विदेशी मुद्रा अर्जित करने का सबसे बड़ा स्रोत मान लिया और निरंतर कत्लखानों के जरिये हर वर्ष लाखों पशुओं का क़त्ल कराकर विदेशी मुद्रा अर्जित कि जा रही है !