बुधवार, 20 मार्च 2013

बेटी !!


माया चौबे जी कि बेटी पर लिखी एक कविता मुझे पसंद आई उसी को आपसे साझा कर रहा हूँ :-


दो फूलों का बंधन है बेटी ,
दो परंपराओं का संगम है बेटी !
विश्व के उत्थान का आधार है बेटी ,
प्रेम,दया और ममता का सार है बेटी !!



हर गुणों से भरी हुयी है ,
फिर भी सहमी और डरी हुयी है !
न जानें कब से मौत,
मुहं खोले खड़ी हुयी है !!

गर्भपात कराने वाली माताओं,
क्या मुझे जीने का अधिकार नहीं है !
तुम भी तो हो एक बेटी ,
क्या बेटी को ही बेटी स्वीकार नहीं है !!

समाज के जालिम और निर्लज्ज लुटेरे,
मत डाल अपनी बुरी नजर के डोरे !
रोक दे शोषण के हर फेरे,
ताकि छंट जाए जुल्म के अँधेरे !