माया चौबे जी कि बेटी पर लिखी एक कविता मुझे पसंद आई उसी को आपसे साझा कर रहा हूँ :-
दो परंपराओं का संगम है बेटी !
विश्व के उत्थान का आधार है बेटी ,
प्रेम,दया और ममता का सार है बेटी !!
हर गुणों से भरी हुयी है ,
फिर भी सहमी और डरी हुयी है !
न जानें कब से मौत,
मुहं खोले खड़ी हुयी है !!
गर्भपात कराने वाली माताओं,
क्या मुझे जीने का अधिकार नहीं है !
तुम भी तो हो एक बेटी ,
क्या बेटी को ही बेटी स्वीकार नहीं है !!
समाज के जालिम और निर्लज्ज लुटेरे,
मत डाल अपनी बुरी नजर के डोरे !
रोक दे शोषण के हर फेरे,
ताकि छंट जाए जुल्म के अँधेरे !
दहेज तो दानव है दुनिया का दिल दहला देगा,
कितनों को फांसी या सूली पर चढवा देगा !!
हे, नौजवान अपनी भुजाओं पर कर गुमान,
लड़कियों का रक्षक बनने का “माया” देती पैगाम !!
( माया चौबे जी कि कविता )
19 टिप्पणियां :
बहुत उम्दा कविता है !
बहुत सुन्दर रचना... होली की अग्रिम शुभकामनायें.
बहुत ही भावपूर्ण कविता शेयर किये,बहुत ही सुन्दर कविता है.
आभार माया जी का-
सुन्दर प्रस्तुति-
शुभकामनायें आदरणीय-
सुन्दर कविता।
बहुत सुन्दर-सार्थक रचना!
" बेटी को बेटी स्वीकार नहीं है " यही विडम्बना है
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आभार !!
आभार !!
आपको भी होली कि हार्दिक शुभकामनाएं !!
आभार !!
आभार !!
आभार आदरणीय !!
आभार माननीय !!
सुंदर रचना ...पढवाने का आभार
सादर आभार !!
बहुत सुन्दर,माया जी की रचना साझा करने के लिए आभार,,,
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आभार !!
बहुत ही सार्थक संदेशमयी सुंदर रचना, काश यह सारी कुरीतियाँ मिट जाएँ हमारे समाज से ....
आभार !!
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