शनिवार, 11 मई 2013

भाजपा आत्ममंथन करना ही नहीं चाहती है !!

अभी ताजा ताजा आये कर्नाटक विधानसभा चुनावों के परिणामों नें भाजपा के रणनीतिकारों में जो लोग शामिल है उनकी रणनीति और उनकी काबिलियत कि कलई खोल कर रख दी है ! क्योंकि कर्नाटक के चुनाव ऐसे समय में हुए हैं जब केन्द्र की कांग्रेस सरकार अनगिनत घोटालों के आरोपों से घिरी हुयी थी ! महंगाई लोगों को परेशान कर रही थी और केन्द्र सरकार लोगों को राहत देने के बजाय अपने फैसलों से जनता पर और ज्यादा बोझ  बढ़ा रही है ! फिर भी भाजपा के रणनीतिकार उसका फायदा उठानें में नाकाम रहे हैं और वो भाजपा को दुबारा सत्ता में नहीं ला सके ! 

पिछले २००९ के लोकसभा चुनावों से लेकर अभी तक देखें तो भाजपा कांग्रेस की नाकामियों का फायदा उठाने में नाकाम रही है ! जिसका सबसे बड़ा कारण भाजपा अपनी अंदरूनी राजनीति में इस कदर उलझी हुयी रहती है जिसके कारण उसका शीर्ष नेतृत्व उहापोह कि स्थति से बाहर निकलकर कुछ सोच ही नहीं पाता है ! और अपनी अंदरूनी गोटियां फिट करने कि जुगत लड़ाने से आगे कि सोच ही नहीं पाता है ! दरअसल देखा जाए तो भाजपा कांग्रेस से नहीं हार रही है बल्कि अपनी ऊहापोह की स्थति से बाहर नहीं निकल पाने के कारण हार रही है ! भाजपा सत्ता में नहीं है फिर भी गटबंधन के सहयोगियों के आगे मिमियाती सी नजर आती है जिसके कारण जनता के पास भाजपा की कमजोरी का सन्देश जाता है और जनता सहसा भाजपा पर विश्वास नहीं कर पाती है और इसका उसके कार्यकर्ताओं पर नकारात्मक असर पड़ता है ! 

कर्नाटक चुनावों के परिणामों को देखा जाए तो इन चुनावों के परिणामों कि पटकथा तो उसी समय लिखी जा चुकी थी जब कांग्रेस नेता हंसराज भारद्वाज को वहाँ का राज्यपाल बनाया गया था ! ये वही हंसराज भारद्वाज थे जिन्होंने केन्द्र में कानून मंत्री रहते हुए बिना सीबीआई से सलाह किये बोफोर्स घोटाले के मुख्य आरोपी आतोवियो क्वात्रोची के बंद खातों को खुलवाया था ! कर्नाटक भाजपा में येद्दुरप्पा अकेले ऐसे नेता थे जो व्यापक जनाधार रखते थे और उनको कमजोर किये बगैर कर्नाटक में कांग्रेस को अपना भविष्य नजर नहीं आ रहा था ! इसी को ध्यान में रखते हुए हंसराज भारद्वाज को कर्नाटक का राज्यपाल बनाया गया था और हंसराज भारद्वाज नें राज्यपाल के संवैधानिक पद का दुरूपयोग करके वो  काम बखूबी किया जिसके लिए उन्हें कर्नाटक का राज्यपाल बनाया गया था !

राज्यपाल हंसराज भारद्वाज के विरोध में भाजपा नें राष्ट्रपति से शिकायत करके उनको बदलने कि मांग भी की थी लेकिन वही भाजपा चुनावों में जनता को यह समझाने में नाकाम रही कि किस तरह राज्यपाल ने सवैंधानिक पद के दुरूपयोग करके येद्दुरप्पा को बदनाम किया है ! और भाजपा जनता को समझाती भी किस मुहं से क्योंकि वो तो चुनावों से पहले ही येद्दुरप्पा को किनारे लगा चुकी थी ! दरअसल येद्दुरप्पा को किनारे लगाने में उन शीर्ष नेताओं के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता जिनके चहेते अनंतकुमार थे और वे शुरू से ही अनंतकुमार को ही मुख्यमंत्री बनवाना चाहते थे लेकिन येद्दुरप्पा के कद्दावर कद के सामने अनंतकुमार का कद छोटा पड़ गया ! उसके बाद भी येद्दुरप्पा को कौर्ट से बरी होने के बावजूद भी मुख्यमंत्री कि कुर्सी से दूर ही रखा गया जिससे क्षुब्ध होकर येद्दुरप्पा पार्टी को ही अलविदा कह गए लेकिन शीर्ष नेतृत्व को कर्नाटक में हारना मंजूर था लेकिन अपनी चालबाजियों को छोडना मंजूर नहीं था !