जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल पिछले दौ सालों से लगातार किसी ना किसी विवाद से जुड रहा है ! पिछली बार भी सलमान रश्दी के आगमन पर विवाद था और उनके नहीं आने के बावजूद जिस तरह से उनकी विवादित पुस्तक के कुछ अंश दो साहित्यकारों द्वारा पढ़ने को लेकर विवाद हुआ और बात कानूनी कारवाई तक जा पहुंची थी और इस बार भी कुछ वैसा ही हुआ और आशीष नंदी के बयान को लेकर विवाद पैदा हो गया और इस बार भी बात क़ानूनी कारवाई तक जा पहुंची !
इन विवादों के बाद क्या हम ये मान लें कि जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल विवादों का जन्मदाता है ! ऐसा बिलकुल नहीं है बल्कि जब साहित्यकारों का सम्मलेन है तो जाहिर है कुछ नए विचार तो सामने आने ही हैं अब सवाल यह है कि हम उन विचारों का सामना करने के लिए कितने तैयार हैं ! पुरे परिदृश्य पर गौर करें तो हम अभी भी नए विचारों का सामना करने के लिए तैयार नहीं है और हम कानून का डर दिखाकर उन नए विचारों का गला घोटना चाहते हैं जबकि जरुरत इस बात कि है कि उन विचारों को लेकर समुचित बहस हो और उन विचारों को बहस का मुद्दा बनाया जाए !
हमें नेताओं के बयानों और साहित्यकारों के विचारों में फर्क करना सीखना होगा क्योंकि नेताओं के बयान राजनीति से प्रेरित होते हैं जबकि किसी साहित्यकार के विचारों के पीछे उसकी गहन सोच होती है ! इस तरह के विचारों पर कानूनी कार्यवाही हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भी प्रश्नचिन्ह लगाती है ! यह सही है कि किसी भी साहित्यकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वो किसी कि भावनाओं को आघात नहीं पहुंचाए लेकिन इसका ध्यान रखना भी जरुरी है कि उस साहित्यकार के विचारों में कितनी सच्चाई है ! और अगर उसके विचारों में सच्चाई है तो क्या सच को केवल इसलिए दबाया जा सकता है कि उस सच से किसी कि भावनाओं को ठेस पहुँच रही है ! और उस सच्चाई को दबाना क्या उस सच्चाई से मुहं मोडना नहीं होगा और क्या यह उचित है !