बुधवार, 30 जनवरी 2013

साहित्यकार के विचारों पर कानूनी कारवाई कितनी उचित !!

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल पिछले दौ सालों से लगातार किसी ना किसी विवाद से जुड रहा है ! पिछली बार भी सलमान रश्दी के आगमन पर विवाद था और उनके नहीं आने के बावजूद जिस तरह से उनकी विवादित पुस्तक के कुछ अंश दो साहित्यकारों द्वारा पढ़ने को लेकर विवाद हुआ और बात कानूनी कारवाई तक जा पहुंची थी और इस बार भी कुछ वैसा ही हुआ और आशीष नंदी के बयान को लेकर विवाद पैदा हो गया और इस बार भी बात क़ानूनी कारवाई तक जा पहुंची !

इन विवादों के बाद क्या हम ये मान लें कि जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल विवादों का जन्मदाता है ! ऐसा बिलकुल नहीं है बल्कि जब साहित्यकारों का सम्मलेन है तो जाहिर है कुछ नए विचार तो सामने आने ही हैं अब सवाल यह है कि हम उन विचारों का सामना करने के लिए कितने तैयार हैं ! पुरे परिदृश्य पर गौर करें तो हम अभी भी नए विचारों का सामना करने के लिए तैयार नहीं है और हम कानून का डर दिखाकर उन नए विचारों का गला घोटना चाहते हैं जबकि जरुरत इस बात कि है कि उन विचारों को लेकर समुचित बहस हो और उन विचारों को बहस का मुद्दा बनाया जाए !

हमें नेताओं के बयानों और साहित्यकारों के विचारों में फर्क करना सीखना होगा क्योंकि नेताओं के बयान राजनीति से प्रेरित होते हैं जबकि किसी साहित्यकार के विचारों के पीछे उसकी गहन सोच होती है ! इस तरह के विचारों पर कानूनी कार्यवाही हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भी प्रश्नचिन्ह लगाती है ! यह सही है कि किसी भी साहित्यकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वो किसी कि भावनाओं को आघात नहीं पहुंचाए लेकिन इसका ध्यान रखना भी जरुरी है कि उस साहित्यकार के विचारों में कितनी सच्चाई है ! और अगर उसके विचारों में सच्चाई है तो क्या सच को केवल इसलिए दबाया जा सकता है कि उस सच से किसी कि भावनाओं को ठेस पहुँच रही है ! और उस सच्चाई को दबाना क्या उस सच्चाई से मुहं मोडना नहीं होगा और क्या यह उचित है !


आशीष नंदी वाला मामला ही लें तो यह एक बहस का मुद्दा हो सकता था लेकिन उनके विचार को बहस का मुद्दा बनाने कि बजाय एक विवाद का मुद्दा बना दिया गया ! जहां तक कानूनी कारवाई का सवाल है यह तो गैरजरूरी ही था क्योंकि आशीष नंदी अपने बयान के लिए क्षमा मांग चुके है और उसके बाद भी उनके विरुद्ध कानूनी कारवाई करके हम कैसी मिसाल पेश कर रहें हैं ! 

4 टिप्‍पणियां :

रविकर ने कहा…

बढ़िया विषय -
आभार आदरणीय ||

जारी है जब बहस तो, कहते जा री भैंस |
हाई-टी का स्वाद ले, कर ले बन्दे ऐश |
कर ले बन्दे ऐश, नया सुनना क्या गुनना |
स्वेटर फिर फिर खोल, डिजाइन बढ़िया बुनना |
चुकता जाए धैर्य, समय की मारामारी |
नव-सिद्धांत नकार, वसूलो माल-गुजारी ||

Shalini kaushik ने कहा…

बिलकुल सही कह रहे हैं आप .जयपुर में ऐसे विवाद तो होते ही रहेंगे क्योंकि एक साहित्यकार के उद्गार समाज व् देश की वास्तविकता पर आधारित होते हैं और उन्हें दबाना किसी के वश में नहीं है मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ? आप भी जाने इच्छा मृत्यु व् आत्महत्या :नियति व् मजबूरी

Gyanesh kumar varshney ने कहा…

आज बना मेरा भारत है साहित्यिक मंडी
जहाँ सत्य झुँठला कर नेता बने घमंडी
विना पैर और सर की ये कहने बाले
खुलती दीखे पौल तो डालें दूजे मुँह ताले
सच को दिखलाते है ये डर कानूनी
सच को रहै नकार वने फिरते बातूनी
साहित्यकार की सोच सही है प्यारे भैया
गहन सोच सिद्धान्त प्रदायी देती नैया
जो ले जाती निकाल कर गहन नदी से
दूर करे सब तमस निकाले धूप बदी से
रखो ध्यान पर सदा छद्म साहित्यकार से
दूर रखो भवितव्य छद्म इतिहासकार से
ये छद्म साहित्कार भारत द्रोही हैं
आतंकबाद के प्रेरक है जननी द्रोही हैं

सदा ने कहा…

बिल्‍कुल सही कहा आपने ...