शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

नोटबंदी का विरोध कितना जायज है !!

देश के प्रधानमंत्री नें पांच सौ और हजार के नोट बंद करने की घोषणा की जो कालेधन की अर्थव्यवस्था पर जबरदस्त प्रहार था ! लेकिन इतने अच्छे निर्णय पर भी देश की राजनैतिक पार्टियां एकजुट नहीं हो सकी और एकजुट होना तो दूर की बात है अधिकतर पार्टियां तो विरोध पर उतर आई हैं ! तो ऐसे में कई सवाल उठ खड़े होते हैं कि क्या राजनैतिक पार्टियों के लिए राजनीति देशहित से ज्यादा अहम है !

नोट्बंदी का फैसला अभूतपूर्व था जिसका हर तरफ स्वागत भी किया गया और जैसा कि फैसला सामने आने के बाद ही पता चल गया कि जनता को अगले कुछ दिन परेशानी हो सकती है और जनता भी परेशानी सहने के लिए तैयार हो गयी थी ! लेकिन इस फैसले के बाद वो राजनैतिक पार्टियां विरोध में उतर आई जो केन्द्र में सत्ता में नहीं हैं और इसके कई नुकशान सामने आ रहें हैं ! इस राजनितिक विरोध के चलते सरकार लचीली हो गयी और कई जगहों पर पुराने नोटों को लेने की समयसीमा लगातार बढाती जा रही है ! जिसके परिणामस्वरुप ये हो रहा है कि कई कालेधन वाले अपनें नोटों को नए नोटों में तब्दील कर रहे हैं ! 

इसमें कोई शक नहीं कि सरकार की मंशा अच्छी थी लेकिन सरकार के फैसले में कई कमियां भी रही है इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है ! सरकार भले ही नोट वर्तमान व्यवस्था के तहत बदलती लेकिन उसको एक नियम ये बनाना था कि जिन लोगों के पास पुराने नोट जिस संख्या में है उनका स्पष्टीकरण एक सप्ताह में जमा करवाया जाए ! लेकिन सरकार नें ये नहीं किया जिसका परिणाम सामनें है कई लोग सोने , गरीबों के खाते और जिन लोगों को आयकर में छुट मिली हुयी है उनके जरिये अपने कालेधन के रूप में जमा पुराने नोटों को नए नोटों में बदलते जा रहे हैं !