सोमवार, 28 नवंबर 2016

केशलेश पालिसी अनिवार्य हो या एच्छिक !!

नोटबंदी पर सरकार को व्यापक जनसमर्थन मिला और यह कोई साधारण बात नहीं थी कि इतने बड़े फैसले पर देश की जनता प्रधानमंत्री के साथ खड़ी हो गयी ! लालबहादुर शास्त्री जी के बाद मोदी जी पहले प्रधानमंत्री होंगे जिन्होनें देश से एक अपील की और जनता साथ खड़ी हो गयी ! लेकिन मुझे अब ये समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर मोदी सरकार इस समर्थन को गंवाना क्यों चाह रही है ! आखिर मोदी सरकार इतनी हड़बड़ी में क्यों है कि नोटबंदी की समस्या से जनता उबर ही नहीं पायी है और सरकार ई वालेट,केशलेश इकोनोमी और लेशकेश इकोनोमी को लागू करनें की दिशा में आगे बढ़ने लग गयी है !

अगर सरकार केशलेश इकोनोमी को प्रोत्साहित करती और लोग उससे अपनी इच्छा से जुड़ते चले जाते तब तो ये भी स्वागत योग्य बात होती लेकिन सरकार तो इसको जबरदस्ती लागू करवाना चाह रही है बिना इस बात की परवाह किये कि जनता इसके लिए तैयार है भी या नहीं ! हालांकि मोदी जी नें सीधे जनता से कभी यह नहीं कहा कि वो इसको अनिवार्य रूप से लागू कर रहें हैं लेकिन उन्ही की सरकार के कई मंत्रालयों नें इस तरह के फरमान जारी कर दिए ! अब सवाल उठता है कि क्या केवल सरकारी फरमानों से केशलेश अर्थव्यवस्था लागू हो जायेगी !

प्रधानमंत्री जी नें कल कहा था कि ई वालेट बस व्हाट्सअप चलाने जैसा ही है तो प्रधानमंत्रीजी अभी तक तो देश में कई लोगों को तो यही पता नहीं है कि मोबाइल कैसे चलता है तो व्हाट्सअप क्या होता है उनको यह जानकारी कैसे होगी ! हाँ यह अलग बात है कि आप ऑनलाइन जुडना ज्यादा पसंद करते हैं और लोग आपसे ऑनलाइन जुड़ते भीं है तो आपनें मान लिया हो कि सभी केशलेश लेनदेन कर सकते हैं ! वैसे प्रधानमंत्रीजी ई वालेट का उपयोग करनें के लिए इतना तो जरुरी ही होगा कि वो लिखा हुआ पढ़ पाए तो पहले पता तो कीजिये देश में कितनें निरक्षर हैं !

शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

नोटबंदी का विरोध कितना जायज है !!

देश के प्रधानमंत्री नें पांच सौ और हजार के नोट बंद करने की घोषणा की जो कालेधन की अर्थव्यवस्था पर जबरदस्त प्रहार था ! लेकिन इतने अच्छे निर्णय पर भी देश की राजनैतिक पार्टियां एकजुट नहीं हो सकी और एकजुट होना तो दूर की बात है अधिकतर पार्टियां तो विरोध पर उतर आई हैं ! तो ऐसे में कई सवाल उठ खड़े होते हैं कि क्या राजनैतिक पार्टियों के लिए राजनीति देशहित से ज्यादा अहम है !

नोट्बंदी का फैसला अभूतपूर्व था जिसका हर तरफ स्वागत भी किया गया और जैसा कि फैसला सामने आने के बाद ही पता चल गया कि जनता को अगले कुछ दिन परेशानी हो सकती है और जनता भी परेशानी सहने के लिए तैयार हो गयी थी ! लेकिन इस फैसले के बाद वो राजनैतिक पार्टियां विरोध में उतर आई जो केन्द्र में सत्ता में नहीं हैं और इसके कई नुकशान सामने आ रहें हैं ! इस राजनितिक विरोध के चलते सरकार लचीली हो गयी और कई जगहों पर पुराने नोटों को लेने की समयसीमा लगातार बढाती जा रही है ! जिसके परिणामस्वरुप ये हो रहा है कि कई कालेधन वाले अपनें नोटों को नए नोटों में तब्दील कर रहे हैं ! 

इसमें कोई शक नहीं कि सरकार की मंशा अच्छी थी लेकिन सरकार के फैसले में कई कमियां भी रही है इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है ! सरकार भले ही नोट वर्तमान व्यवस्था के तहत बदलती लेकिन उसको एक नियम ये बनाना था कि जिन लोगों के पास पुराने नोट जिस संख्या में है उनका स्पष्टीकरण एक सप्ताह में जमा करवाया जाए ! लेकिन सरकार नें ये नहीं किया जिसका परिणाम सामनें है कई लोग सोने , गरीबों के खाते और जिन लोगों को आयकर में छुट मिली हुयी है उनके जरिये अपने कालेधन के रूप में जमा पुराने नोटों को नए नोटों में बदलते जा रहे हैं !

मंगलवार, 20 मई 2014

नई सरकार की राह आसान तो कतई नहीं है !!

नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में नयी सरकार २६ मई को शपथ लेगी लेकिन जिस दिन से नई सरकार शपथ लेगी उसी दिन से उसके लिए चुनौतियां भी शुरू हो जायेगी ! सभी वर्गों और सभी लोगों के लिए मोदी आकांक्षाओं के केन्द्र बन गए हैं जिसमें मोदी जी की खुद की भूमिका भी है क्योंकि उन्होंने ही लोगों को अपनी चुनावी सभाओं में बहुतेरे सपने दिखाए थे ! जिनको पूरा कर पाना मोदीजी के लिए आसान तो कतई नहीं होगा !

नई सरकार के सामने पिछले कुछ समय से खराब अर्थव्यवस्था को पटरी पर लानें की चुनौती होगी ही साथ में विकास को तेजी प्रदान करनें की चुनौती से भी उसे जूझना पड़ेगा ! युवाओं को रोजगार प्रदान करनें का रास्ता भी नयी सरकार को बनाना होगा ! भ्रस्टाचार पर लगाम लगाने की आशा भी लोग मोदी जी से कर रहें हैं ! मोदी जी नें जो जनाकांक्षाएं लोगों के भीतर जगाई है उनको पूरा करना होगा और ये सब आकांक्षाएं मोदीजी की ही देन है जिनके सहारे वे सत्ता तक तो पहुँच गए लेकिन उनकी असली चुनौती अब ही शुरू होगी ! कालाधन वापिस लाने का वादा भी मोदी जी कर चुके हैं अब देखना ये है कि वो अपनें वादों पर खरे उतरते हैं !

महंगाई वो मुद्दा है जिस पर जनता ज्यादा इन्तजार के मुड में कतई नहीं है और रातों रात महंगाई से निजात दिलाने की आशा भी नहीं की जा सकती लेकिन जनता को तो इससे कोई सरोकार नहीं है ! वो तो हर हाल में महंगाई से निजात चाहती है ! जनता को महंगाई से निजात दिलाने के लिए मोदीजी की सरकार को पहले दिन से ही जुट जाना होगा और ना केवल जुट जाना होगा बल्कि अपेक्षित परिणाम भी लाने होंगे ! जो आसान तो कतई नहीं है !

शनिवार, 31 अगस्त 2013

प्रधानमंत्री जी को गुस्सा क्यों आता है !

कल राज्यसभा में माननीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी को गुस्सा आया तो देश को पता तो चला कि उनको गुस्सा भी आता है वर्ना देश को तो अब तक पता ही नहीं था कि उनको गुस्सा भी आता है ! लेकिन उन्होंने अपनें गुस्से को जाहिर करनें के लिए गलत जगह और गलत मुद्दे का चुनाव कर लिया जिसके कारण उनके गुस्से की कोई अहमियत भी नजर नहीं आई ! वैसे प्रधानमंत्री जी से ज्यादा देश गुस्से में है और देश का गुस्सा खुद प्रधानमंत्रीजी के प्रति है और देश के पास उसकी वाजिब वजहें खुद प्रधानमंत्री जी नें ही देश को मुहैया करवाई है !

वैसे अपनें प्रधानमन्त्री जी को जिन बातों पर गुस्सा आना चाहिए उन पर गुस्सा आता नहीं है ! पाकिस्तानी सैनिक भारतीय जवानों के सर काटकर ले जाते हैं लेकिन प्रधानमंत्री जी को गुस्सा नहीं आता बल्कि अपनें मंत्रीमंडल के सहयोगी मंत्री को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की निजी भारत यात्रा की अगुवानी करनें भेज देते हैं ! उस अगुवानी से अभिभूत पाकिस्तान भारतीय सैनिकों की हत्या करके चले जाते हैं तब भी उनको गुस्सा नहीं आता है ! इटली के सैनिक भारतीय मछुआरों की हत्या कर देते हैं तब भी उनको गुस्सा आना तो दूर उल्टा उनको वोट देनें इटली जानें का विरोध तक सरकार नहीं कर पाती है ! वो तो भला हो सर्वोच्च न्यायालय का जिसनें इटली के राजदूत के देश छोड़ने पर रोक लगाकर उनको वापिस आनें पर मजबूर कर दिया !

अपनें मंत्रिमंडल के मंत्रियों के द्वारा किये गए भ्रष्टाचार पर भी उनको गुस्सा नहीं आया और वे आखिरी दम तक " कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ " का नारा दोहराते रहे लेकिन सर्वोच्च न्यायालय में उस नारे की हवा निकल गयी और भ्रष्टाचार की बात पुख्ता हो गयी ! उनके दूसरे कार्यकाल से ही उनके मंत्रियों पर घोटालों के आरोप लगते रहें हैं और कुछ तो साबित भी हो गए हैं लेकिन खुद प्रधानमंत्री जी निजी तौर पर इससे बचे हुए थे लेकिन कोयले घोटाले की कालिख खुद प्रधानमंत्री तक भी पहुँचती दिखाई दे रही है जिससे बचने की कोशिश फायलें गायब करवा कर की जा रही है ! लेकिन इन सब बातों पर उनको गुस्सा नहीं आता है ! 

बुधवार, 6 मार्च 2013

मोदी के कारण पार्टियों के बनते बिगड़ते समीकरण !!

देश का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा इसको लेकर बुद्धिजीवी वर्ग अपने अपने कयास लगा रहें हैं और संभावनाओं के आधार पर विश्लेषण भी कर रहें हैं ! पार्टियां भी अपने अपने हिसाब से समीकरण बैठा रही है और जोड़ बाकी गुणा भाग करके सता के समीकरणों का हिसाब लगा रही है और केवल पार्टियां हि क्यों पार्टियों के नेता तक अपनी संभावनाओं को तलाश रहे हैं ! वैसे देश की पुरानी पार्टी कांग्रेस तो अपने वंशवादी परम्परा का निर्वहन करते हुए अपने नए नवेले युवराज राहुल को प्रधानमन्त्री के उम्मीदवार के रूप में देख रही है तो दूसरी तरफ भाजपा अभी तक निर्विवादित रूप से किसी को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रही है ! और उसके कई नेता इस कतार में खड़े हैं ! दूसरी कई पार्टियों के नेता भी अपनी संभावनाओं को जिन्दा रखे हुए हैं लेकिन जिस तरह से मोदी कद्दावर होकर उभर रहें है उससे दोनों हि पार्टियों के समीकरण बिगड़ते नजर आ रहें हैं ! 

भाजपा के कई नेता भले हि प्रधानमंत्री बनने का सपना पाले हुए हो लेकिन भाजपा अब एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां उसके सामने दो हि रास्ते है ! या तो वो मोदी को अगला प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित करके सता तक पहुँचने की संभावनाओं को बनाए रखते हुए चुनावों में जाए और दूसरा रास्ता उसके पास यही है कि गटबंधन कि चिंता करते हुए तथा अपनी हि पार्टी के दूसरे नेताओं की प्रधानमंत्री बनने कि इच्छाओं को जीवित रखते हुए चुनावों में जाए ! जहां पहले रास्ते में मोदी भाजपा पर हावी होते नजर आते हैं वहीँ भाजपा के सत्ता तक पहुँचने कि संभावनाएं भी इसी रास्ते से ज्यादा नजर आती है लेकिन इस रास्ते पर चलने से हो सकता है कि कुछ दलों के साथ उसका गटबंधन भी टूट जाए लेकिन फिर भी जमीनी हकीकत और हाल हि में आये सर्वे के नतीजे देखें तो उस कमी को वो शायद मोदी के नाम के सहारे अधिक सीटें जीतकर पूरा भी कर सकती है !