सोमवार, 22 अप्रैल 2013

हमारी सोच का रिमोट मीडिया के हाथ !!


आज मीडिया की सोच हमारी सोच पर जबरदस्त तरीके से हावी होती जा रही है ! इसे हमारे दिमाग का दिवालियापन ही कहा जाएगा कि मीडिया हमको जिस तरीके से चलाना चाह रहा है हम भी उसी तरीके से चलते जाते हैं ! सही मायनों में देखा जाए तो दिमाग और सोच कहने को हमारी होती है लेकिन उसका रिमोट मीडिया के हाथों में रहता है और वो उसको जिस तरह से संचालित करता है हम भी उसी तरीके से संचालित होते जाते हैं !

मीडिया जब अन्ना हजारे के जनलोकपाल आंदोलन के पूरी तरह साथ था और साथ क्या था उस समय तो ऐसा लग रहा था कि मीडिया ही उस आंदोलन को प्रायोजित कर रहा था ! उस समय अन्ना हजारे के समर्थन में लाखों लोग जुटते थे लेकिन आज जब मीडिया उस आंदोलन से दूर हुआ तो लोगों का समर्थन भी अन्ना हजारे से दूर हो गया और आज हालत यह हो गयी कि जिन अन्ना जी के समर्थन से देश के कोने कोने में हजारों लोग एक आवाज पर जुटते थे आज उनकी सभाओं में महज गिनती के लोग आते हैं और मजबूरन उनको अपना कार्यक्रम ही रद्द करना पड़ता है ! आंदोलन आज भी वही है और नेता भी वही है लेकिन फर्क मीडिया के साथ होने अथवा नहीं होनें का है !

हमारे राष्ट्रीय खेल हॉकी की बात करें तो वहाँ भी मीडिया कि सोच ही हावी है ! मीडिया क्रिकेट को प्रोत्साहित करता है और मैच हो तो भी और नहीं हो तो भी क्रिकेट के लिए निरंतर और नियत समय में कार्यक्रम दिखाता है लेकिन वही मीडिया हॉकी का मैच हो तो भी किसी तरह का कार्यक्रम नहीं दिखाता है और सबसे दुखद बात यह कि हम भी मीडिया कि सोच को अपनी सोच में अंगीकार कर लेते हैं और क्रिकेट को तो अपनी भावनाओं से जोड़ लेते हैं लेकिन अपने राष्ट्रीय खेल हमारी भावनाओं में कोई जगह नहीं बना पाता है ! जब हमारी भावनाओं में राष्ट्रीय खेल भी नहीं आता तो अन्य खेलों की बराबरी के बारे में तो सोचना भी गलत है ! मीडिया हमारे खेल प्रेम को क्रिकेट पर केंद्रित करके रखता है और हम भी उसी पर केंद्रित होकर रह जाते हैं !