सोमवार, 21 मार्च 2016

इलेक्ट्रोनिक मीडिया की विश्वनीयता !!

भारतीय लोकतंत्र में मीडिया को चौथे खम्भे के तौर पर जाना जाता है ! लेकिन वो चौथे खम्भे के तौर पर ही माना जा सकता है जब तक उसकी विश्वनीयता बची रहे ! लेकिन आज सवाल उसकी इसी विश्वनीयता पर ही उठ खड़े हुयें हैं ! इलेक्ट्रोनिक मीडिया के सामनें तो आज सबसे बड़ा संकट विश्वनीयता का ही है क्योंकि तेजी से ख़बरों को दिखाने की हड़बड़ी और राजनितिक झुकाव नें आज इसके सामनें विश्वनीयता का संकट खड़ा कर दिया है ! 

इलेक्ट्रोनिक मीडिया के हर चेन्नल का राजनितिक विचारधारा के प्रति झुकाव तो अब कोई नई बात रह ही नहीं गयी है ! लेकिन पिछले दिनों हुयी दादरी और जेनयु जैसी घटनाओं में यह राजनितिक विचारधारा का झुकाव हर सीमा को लांघ गया ! दादरी घटना के बाद असहिष्णुता शब्द को प्रायोजित करनें में इलेक्ट्रोनिक मीडिया के कुछ चेन्न्लों नें हर हद को पार कर दिया ! जहां आमजन के बीच पूरी सहिष्णुता थी वहीँ मीडिया चेन्न्लों के कार्यालयों में असहिष्णुता की मानो बाढ़ ही आ गयी हो ! वर्तमान में पूरी राजनितिक विचारधारा यूपीए और एनडीए दौ तबकों में बंटी हुयी है वैसे ही पूरा मीडिया ही दौ तबकों में बंट गया था ! 

सोमवार, 22 दिसंबर 2014

क्या भारतीय इलेक्ट्रोनिक मीडिया हिन्दुविरोधी एजेंडे पर काम कर रहा है !!

भारत का मीडिया ( मेरा यहाँ मीडिया से तात्पर्य केवल इलेक्ट्रोनिक मीडिया से है ) क्या किसी छुपे एजेंडे पर काम कर रहा है ! अगर विगत में और वर्तमान में घटित घटनाओं पर नजर डालें तो आपको आभास हो जाएगा कि भारतीय मीडिया हिंदू विरोधी एजेंडे पर काम कर रहा है ! अभी हाल ही में आगरा में हुए धर्मान्तरण को लेकर मीडिया नें जिस तरह से आक्रामक प्रदर्शन किया और हिंदू संघटनों से जुड़े लोगों के बयानों को आपतिजनक कहकर प्रसारित किया गया जबकि एक भी बयान आपतिजनक नहीं था ! किसी नें भी यह नहीं कहा कि हम जबरन धर्मांतरण करवाएंगे ! उससे कई सवाल उठ खड़े हुए हैं और उन सवालों के घेरे में खुद मीडिया है ! और जाहिर है उन सवालों का जबाब मीडिया की तरफ से नहीं आएगा क्योंकि आज तक ऐसा नहीं हुआ है कि दूसरों से सवाल करने वाले मीडिया नें कभी अपनें ऊपर उठ रहे सवालों का जबाब दिया हो ! 

आगरा और बलसाड में हुयी धर्मान्तरण की घटना क्या भारत में हुयी पहली धर्मान्तरण की घटनाएं थी जिस पर मीडिया इतना हल्ला मचा रहा है !  और वही मीडिया एत्मादपुर और भागलपुर पर ख़ामोशी क्यों धारण कर लेता है ! कहा जा रहा है कि आगरा में लालच देकर धर्म परिवर्तन करवाया गया तो यही आरोप तो एत्मादपुर में भी लग रहें हैं ! तो मीडिया क्या एत्मादपुर और भागलपुर पर इसलिए चुप्पी साध लेता है क्योंकि वहाँ हिंदुओं का धर्मांतरण होता है और आगरा और बलसाड में ईसाईयों और मुस्लिमों का धर्मान्तरण होता है इसीलिए आक्रामक हो जाता है ! इसाई मिशनरियां आजादी के पहले से धर्मान्तरण में लगी हुयी है और आजादी के बाद भी उनका धर्म परिवर्तन का अभियान जारी रहता है और उस पर खर्च करनें के लिए भारी धनराशि विदेश से आती है ! अगर एक अखबार की खबर पर विश्वास किया जाए तो हर साल करीब १०५०० करोड़ रूपये विदेश से आनें की जानकारी तो सरकारी खुफिया एजेंसियों को भी है जिसकी रिपोर्ट वो सरकार को सौंप चुकी है !  उस पर यही मीडिया आँखे मुंद लेता है ! 

पूर्वोतर भारत में आदिवासी जनजातियों का बड़े पैमाने पर ईसाई मिशनरियों नें धर्मांतरण कर दिया और लोभ और लालच के बल पर यह सब किया गया लेकिन कभी मीडिया का इस पर आक्रामक रवैया नजर आना तो दूर की बात है कभी चर्चा तक नहीं की ! वैसे भी महज कुछ अपवादों को छोड़ दे तो धर्मान्तरण का जरिया लोभ,लालच और दबाव ही रहा है ! स्वेच्छा से धर्मान्तरण उसको माना जाता है जिसमें व्यक्ति जिस धर्म में जाता है उसका अध्ययन करता है और उसमें अच्छाई नजर आती है ! जबकि धर्मान्तरण की असली हकीकत यह होती है कि जिनको धर्मान्तरित किया जाता है उनको तो उस धर्म का क,ख,ग भी नहीं मालुम होता है तो उसको स्वेच्छा से किया हुआ धर्मांतरण कैसे माना जा सकता है ! जाहिर है सच सामने आये या ना आये लेकिन ऐसे धर्मान्तरण के पीछे दबाव,लोभ,लालच ही होता है !

मंगलवार, 7 जनवरी 2014

" आम आदमी पार्टी " पर मीडिया की मेहरबानी !!

पिछले कुछ समय से व्यस्तता के चलते ब्लोगिंग को समय नहीं दे पाया और यह व्यस्तता अभी कुछ दिन और बनी रहेगी ! इसी व्यस्तता के बीच दिल्ली में "आप" की सरकार बन गयी लेकिन दिल्ली में जब से आप पार्टी की सरकार बनी है तब से मीडिया द्वारा आप पार्टी के समर्थन में बिरदावलीयों का दौर अनवरत जारी है ! वैसे में इसको मीडिया की नासमझी नहीं कहूँगा क्योंकि अन्ना आंदोलन से लेकर दिल्ली चुनावों तक सब कुछ मेरी नजर में है जहाँ हर जगह मीडिया ने अपनी परोक्ष भूमिका अदा की है ! वो अन्ना आंदोलन की अनवरत कवरेज हो या फिर राजनैतिक पार्टी के गठन को समर्थन देना और दिल्ली विधानसभा चुनावों में प्रचारक की भूमिका निभाना शामिल है !!

वर्तमान में मीडिया बिरदावलीयों को किनारे कर दें और हकीकत का सामना करें तो मुझे आम आदमी पार्टी की दिल्ली में जीत पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ ! जिसका कारण स्पष्ट है क्योंकि आम आदमी पार्टी का सकारात्मक चुनाव प्रचार खुद मीडिया कर रहा था और जिसमें मीडिया खुद सक्रिय भूमिका निभाता है उसका असर तात्कालिक तौर पर जरुर पड़ता है ! जिसका उदाहारण हम अन्ना आंदोलन , दामिनी कांड से लेकर दिल्ली में आम् आदमी पार्टी की जीत तक देख ही चुके हैं ! इसलिए ये आम आदमी पार्टी की जीत कम और मीडिया की भूमिका की जीत ज्यादा मानी जानी चाहिए !!

मंगलवार, 10 सितंबर 2013

अपनीं कारगुजारियों और नाकामियों को छुपानें की नाकाम कोशिश !!

उतरप्रदेश की अखिलेश सरकार अपनीं कारगुजारियों और नाकामियों को शोशल मीडिया और विपक्षी दलों पर दोष डालकर छुपाने की नाकाम कोशिश कर रही है ! जबकि इन दोनों बातों में कोई सच्चाई है ही नहीं और जो सच्चाई है उसको देखनें की कोशिश नहीं की जा रही है ! सच्चाई ये है कि सपा सरकार मुस्लिम तुस्टीकरण की तमाम हदों को तोड़ चुकी है ! जिसका उदाहरण पिछले दिनों दुर्गा नागपाल वाले मामले में दिखाई भी दिया था और कोई माने या ना माने लेकिन सच्चाई यही है कि उतरप्रदेश के अधिकारी किसी मुस्लिम अपराधी पर कारवाई करनें में भी डर रहे हैं ! 

मुज्जफरनगर का दंगा भी इसी डर का परिणाम था कि २८ अगस्त को हुयी घटना पर कारवाई करने से पुलिस नें संतोषजनक कारवाई नहीं की ! जिससे लोगों में असंतोष फैलता गया जिसके परिणामस्वरूप ही भारतीय किसान यूनियन नें पंचायत का आयोजन किया और उस पंचायत को समर्थन देनें के बहाने उसमें कुछ राजनैतिक पार्टियां भी शामिल हो गयी !  तब तक कुछ भी करनें के बजाय अखिलेश सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही और उसी पंचायत में शामिल होनें जा रहे लोगों पर हुए हमले नें ही यह आग लगाई थी ! इस पुरे घटनाक्रम में कहीं भी शोशल मीडिया की भूमिका थी नहीं ! 

शोशल मीडिया में जो कुछ आपतिजनक सामग्री आई वो दंगों के बाद आई थी ! वैसे शोशल साइटों पर कुछ लोग होते हैं जो सदैव ऐसी सामग्री डालते रहते हैं जिसके कारण थोड़ी बहुत आपतिजनक सामग्री तो हर समय मिल जायेगी जो दंगे नहीं भड़का सकती ! और शोशल मीडिया का विस्तार इतना है भी नहीं कि उसका इतना बड़ा प्रभाव पड़ जाए इसलिए इस दलील में कोई दम नहीं है कि शोशल मीडिया के कारण मुज्जफरनगर का दंगा हुआ है ! हाँ शोशल मीडिया पर जो लोग पहले से अंकुश लगाने की मंशा पाले बैठे हैं वो जरुर ऐसी अफवाहें उड़ा सकते हैं !

रविवार, 8 सितंबर 2013

तुस्टीकरण का यह खेल कहाँ तक ले जाएगा !!

उत्तरप्रदेश में जहाँ तक बसपा का शासन रहता है तब तक एक भी साम्प्रदायिक दंगे की वारदात नहीं होती है और जब चुनावों के बाद सपा की सरकार बनती है तो वहाँ अचानक से एक के बाद एक साम्प्रदायिक दंगे होना शुरू हो जाते हैं ! यह नहीं माना जा सकता कि ये इतफाक है कि सरकार बदलनें के बाद से ही ऐसी घटनाएं हो रही है बल्कि ऐसा लग रहा है कि शासन के सरंक्षण में इस तरह की घटनाओं को अंजाम दिलवाकर वोट बेंक का ध्रुवीकरण किया जा रहा है ! वही लोग हैं और वही प्रशासन है और बदलें है तो केवल शासन करनें वाले तो फिर दोष तो शासन करनें वालों का ही दिखाई दे रहा है ! 

यह इतफाक नहीं हो सकता कि मार्च २०१२ में सपा सरकार के शासन सँभालने के बाद से अब तक तक़रीबन ३५ से ज्यादा साम्प्रदायिक हिंसा की वारदातें हो चुकी है जिसका जिक्र मैनें अपनें अग्रलिखित आलेख "दंगो का दर्द क्या किसी को पार्टियों की सरकारें देखकर होता है " में भी कर चूका हूँ और अब मुज्जफरनगर का नाम भी उसमें जुड़ चूका है ! इस तरह एक के बाद एक हो रही घटनाओं के बाद भी क्या यह माना जाना चाहिए कि ये सब बिना सोची समझी साजिस के हो रहा है ! मेरा मन तो यह कतई मानने को तैयार नहीं है और मुझे तो साफ़ साफ़ लग रहा है कि यह सब एक सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है ! तुस्टीकरण का खेल खुलकर खेला जा रहा है और जब सरकार खुद उसमें शामिल हो तो रोकनें वाला कौन है !

वैसे एक बात यहाँ और गौर करनें वाली है वो यह है कि आजम खान की हैसियत इस सरकार में उच्च दर्जे की है और किसी मुद्दे पर मुख्यमंत्री का बयान आये या ना आये लेकिन आजम खान का बयान जरुर आएगा ! और उनके बयानों में तुस्टीकरण का पुट साफ़ नजर आएगा ! ये वही आजम खान है जिन्होनें कभी भारत माता को डायन कहा था ! वैसे देखा जाए तो उतरप्रदेश में तुस्टीकरण की शुरुआत तो चुनावों के समय ही हो गयी थी और कांग्रेस और सपा में इसी तुस्टीकरण की होड़ मची हुयी थी जिसके कारण दोनों पार्टियां बयानबाजी में सब कुछ भूल सी गयी और कांग्रेसी के केन्द्रीय मंत्री को तो चुनाव आयोग को जबाब तक देना पड़ा था ! लेकिन इस खेल में बाजी सपा मारकर ले गयी ! 

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

मीडिया का अतिरेकी रवैया अपनाना क्या सही है !

आज आप अगर मीडिया की तरफ नजर दौड़ाएंगे तो हमारे देश के इलेक्ट्रोनिक मीडिया को भेड़चाल में चलता हुआ देखेंगे ! एक ही मुद्दे के पीछे इतना अतिरेकी रवैया अपना लेंगे कि आम दर्शक परेशान हो जाता है ! इस भेड़चाल में हर चेन्नल शामिल हो जाता है जिसके कारण दर्शकों के पास अन्य कोई विकल्प भी नहीं रहता है ! मीडिया को उसकी उपयोगिता के कारण ही लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है लेकिन बाकी स्तम्भों की तरह इसमें भी गिरावट का दौर जारी है !

मीडिया की इस भेड़चाल और अतिरेकी रवैये के कारण कई अहम मुद्दे गायब ही हो जातें हैं ! अभी का ताजा आसाराम बापू वाले प्रकरण को ही देख लीजिए मीडिया एक सप्ताह से लगातार इसी एक मुद्दे को चक्करघिन्नी की तरह घुमाए जा रहा है ! और इस बीच आये कई अहम मसले लोगों की जानकारी में ही नहीं आ पाए ! इसी दरम्यान कुछ संसोधनों के साथ खाध सुरक्षा बिल पास हो गया लेकिन लोगों को पता तक नहीं चला कि यह बिल किस रूप में पास हुआ है ! उसी तरह दामिनी बलात्कार प्रकरण में एक अपराधी को कानूनी बारीकी का फायदा मिलनें से दंड मिलने से बच गया लेकिन मीडिया के लिए वो अहम मुद्दा नहीं बना जबकि उस पर विस्तृत चर्चा होनें की आवश्यकता थी ! 

इसी तरह हमारी अर्थव्यवस्था लगातार धराशायी होती जा रही है लेकिन आसाराम प्रकरण की आड़ में मीडिया नें उस तरफ से भी मुहं फैर रखा है ! हर चेन्नल में होड़ मची हुयी है कि कौन आसाराम प्रकरण को ज्यादा दिखाता है ! इन्तिहा की हद तो देखिये कल एक चेन्नल नें तीन साल पुराना स्टिंग आसाराम के ऊपर दिखाया और बड़ी बेशर्मी से बताया भी कि यह तीन साल पुराना है ! तो भाई जब आपके पास तीन साल से पड़ा हुआ था तो दिखाया अब क्यों और क्या इसी मीडिया को जिम्मेदार कहा जाएगा क्यों तीन साल का इन्तजार किया गया ! या फिर इसको इतनें दिन रोके रखनें के पीछे भी कोई सौदा हुआ था और अब चेन्नल को लगा कि अब तो आसाराम पर इससे भी जघन्य आरोप लग चुके हैं तो अब उनके इस स्टिंग को आगे दिखाने का कोई फायदा नहीं होगा इसलिए पड़ा रहनें से अच्छा है कि अभी दिखा दिया जाए !

शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

सरकार की मंशा क्या शोशल मीडिया पर अंकुश लगाने की है !!

भारत सरकार अपनें खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाना चाहती है और वो ऐसा हर बार करती भी आई है लेकिन वो अभी तक शोशल मीडिया की आवाज को दबाने में कामयाब नहीं हो पायी है और ऐसा नहीं है कि उसनें ऐसी कोई कोशिश पहले नहीं की है ! वो पहले भी आसाम हिंसा के समय भी साम्प्रदायिकता का बहाना बनाकर अपनें विरुद्ध चलनें वाले ट्विटर और फेसबुक पेजों को उस समय बंद करवा दिया था ! लेकिन वो एक ही बार उठाया गया कदम था लेकिन अब जो समाचार मिल रहें है उनके अनुसार सरकार शोशल मीडिया पर लगातार अंकुश बनाए रखने के लिए तैयारी कर रही है ! 

जो समाचार मिल रहें है उनके अनुसार सरकार प्रसारण मंत्रालय के अधीन न्यू मीडिया विंग  की स्थापना करने के लिए तैयार हो गयी है और उसके लिए शुरूआती बजट का प्रावधान भी कर दिया गया है ! यह न्यू मीडिया विंग का काम शोशल मीडिया में सरकारी कामों का प्रचार करना और शोशल मीडिया पर नजर रखना बताया जा रहा है ! लेकिन लगातार सरकार के मंत्रियों की शोशल मीडिया पर अंकुश लगाने जैसी सलाह देने वाले  बयानों के चलते सरकार के इस कदम पर सवाल उठना लाजमी है ! और सरकार के इस कदम को शोशल मीडिया को नियंत्रित करनें के तौर पर देखा जा रहा है !

और ऐसा सोचने के पीछे कारण भी मौजूद है क्योंकि जिस तरह से बाबा रामदेव,अन्ना हजारे जैसे आंदोलनों में शोशल मीडिया मुखर होकर उभरा है ! और सरकार शोशल मीडिया के सामनें लाचार और मजबूर हो गयी थी ! उन आंदोलनों के बाद भी सरकार के कार्यों को लेकर शोशल मीडिया में सरकार पर लगातार हमले होते रहें हैं और अभी भी हो रहे हैं ! और शोशल साइटें चला रही ये तमाम कम्पनियां विदेशी होनें के कारण सरकार इनको दबाव में लाकर मनमाने तरीके से दखलंदाजी भी नहीं कर पा रही है ! यही कारण है कि सरकार लगातार शोशल मीडिया पर अंकुश लगाने की ख्वाहिशमंद रही है जो वो अब न्यू मीडिया विंग के जरिये करना चाह रही है !

गुरुवार, 23 मई 2013

मीडिया ,मीडिया कम चक्करघिन्नी ज्यादा नजर आता है !!

आजकल भारतीय मीडिया को बैठे बिठाए ख़बरें चाहिए और अगर किसी तरह का कोई मसाला खबर बनने लायक मिल जाता है तो उसको अनवरत चक्करघिन्नी की तरह चलाता रहता है ! खासतौर से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तो आज ऐसा हि करता है ! अब आप क्रिकेट में फिक्सिंग वाली खबर को हि ले लीजिए ! जब से मामला उजागर हुआ है तब से ऐसा लगता है कि इस क्रिकेट फिक्सिंग वाली एकमात्र खबर को छोडकर देश में कुछ हो हि नहीं रहा है ! दरअसल दोनों दिन भारतीय मीडिया एक हि खबर को लगातार दिखाकर पकाऊ बनता जा रहा है !

जबकि पिछले कई वर्षों में देखा जाए तो इलेक्ट्रोनिक मीडिया किसी भी तरह की जानकारियों को उजागर करने में नाकाम रहा है ! प्रिंट मीडिया तो फिर भी कई बार कुछ उजागर करता है लेकिन इलेक्ट्रोनिक मीडिया ऐसा कुछ नहीं करता है ! बस किसी और माध्यम से उजागर हुयी जानकारियों को हि चक्करघिन्नी की तरह घुमाता रहता है जिससे जनता धीरे धीरे उबती जा रही है ! दरअसल इलेक्ट्रोनिक मीडिया में व्यवसायिक सोच पत्रकारिता की सोच के ऊपर बेतहाशा हावी हो चुकी है ! जिसके कारण वो बेठे बिठाए ऐसा मसाला चाहता है जिससे कुछ दिन तक दर्शकों को बहलाया जा सकें !

दर्शकों को बहलाने वाली सोच को आप उसके दिन भर चलने वाले कार्यकर्मों के जरिये देख सकतें हैं ! ऐसी कौनसी बात है जो मीडिया नहीं दिखाता है भले ही उस बात से अन्धविश्वास को हि बढ़ावा क्यों नहीं मिलता हो ! ज्योतिष,फ़िल्मी बातें ,धार्मिक कार्यक्रम और क्रिकेट आदि सब कुछ तो मीडिया पर हाजिर है और फिर भी समय बचता है तो चक्करघिन्नी की तरह चलने वाली ख़बरें तो है ही ! हकीकत में मीडिया की सोच जानकारियों को जनता तक पहुंचाने के बजाय समय गुजारने की ज्यादा बनती जा रही है ! जिसके कारण ही कुछ चैनल तो ऐसे हैं जो छोटी छोटी बातों को बढचढकर दिखाते हैं और उनको आक्रात्मकता के साथ पेश करने की कोशिश करतें हैं !

सोमवार, 22 अप्रैल 2013

हमारी सोच का रिमोट मीडिया के हाथ !!


आज मीडिया की सोच हमारी सोच पर जबरदस्त तरीके से हावी होती जा रही है ! इसे हमारे दिमाग का दिवालियापन ही कहा जाएगा कि मीडिया हमको जिस तरीके से चलाना चाह रहा है हम भी उसी तरीके से चलते जाते हैं ! सही मायनों में देखा जाए तो दिमाग और सोच कहने को हमारी होती है लेकिन उसका रिमोट मीडिया के हाथों में रहता है और वो उसको जिस तरह से संचालित करता है हम भी उसी तरीके से संचालित होते जाते हैं !

मीडिया जब अन्ना हजारे के जनलोकपाल आंदोलन के पूरी तरह साथ था और साथ क्या था उस समय तो ऐसा लग रहा था कि मीडिया ही उस आंदोलन को प्रायोजित कर रहा था ! उस समय अन्ना हजारे के समर्थन में लाखों लोग जुटते थे लेकिन आज जब मीडिया उस आंदोलन से दूर हुआ तो लोगों का समर्थन भी अन्ना हजारे से दूर हो गया और आज हालत यह हो गयी कि जिन अन्ना जी के समर्थन से देश के कोने कोने में हजारों लोग एक आवाज पर जुटते थे आज उनकी सभाओं में महज गिनती के लोग आते हैं और मजबूरन उनको अपना कार्यक्रम ही रद्द करना पड़ता है ! आंदोलन आज भी वही है और नेता भी वही है लेकिन फर्क मीडिया के साथ होने अथवा नहीं होनें का है !

हमारे राष्ट्रीय खेल हॉकी की बात करें तो वहाँ भी मीडिया कि सोच ही हावी है ! मीडिया क्रिकेट को प्रोत्साहित करता है और मैच हो तो भी और नहीं हो तो भी क्रिकेट के लिए निरंतर और नियत समय में कार्यक्रम दिखाता है लेकिन वही मीडिया हॉकी का मैच हो तो भी किसी तरह का कार्यक्रम नहीं दिखाता है और सबसे दुखद बात यह कि हम भी मीडिया कि सोच को अपनी सोच में अंगीकार कर लेते हैं और क्रिकेट को तो अपनी भावनाओं से जोड़ लेते हैं लेकिन अपने राष्ट्रीय खेल हमारी भावनाओं में कोई जगह नहीं बना पाता है ! जब हमारी भावनाओं में राष्ट्रीय खेल भी नहीं आता तो अन्य खेलों की बराबरी के बारे में तो सोचना भी गलत है ! मीडिया हमारे खेल प्रेम को क्रिकेट पर केंद्रित करके रखता है और हम भी उसी पर केंद्रित होकर रह जाते हैं !

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

सुचना माध्यमों (media ) का नमो नम: और रागा गान !!

आजकल सुचना माध्यमों में जिस बात पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है वो  नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने को लेकर है ! समाचार चैंनल पुरे दिन इन दोनों से जुडी छोटी से छोटी बातों को दिखा रहे हैं और उन्ही बातों को लेकर नयी बहस शुरू कर देते हैं ! और उन्ही बातों पर नई  बयानबाजी शुरू हो जाती है जिसके कारण मीडिया को मसाला मिलता रहता है और मीडिया तो चाहता भी यही है कि उसे बैठे बिठाए मुद्दे मिलते रहे और उन्हें वो चक्करघिन्नी की तरह घुमाता रहे ! दरअसल इसको मीडिया ही शुरू करता है ,हवा देता है और अंतिम निष्कर्ष भी वो ही निकालता है ! लेकिन इसका फायदा मीडिया को यह होता है कि उसको समाचारों के लिए भागदौड़ नहीं करनी पड़ती है ! लेकिन नुकशान जनता को होता है और इस तरह कि चक्करघिन्नी कि तरह चलने वाले समाचारों के कारण असल मुद्दे कहीं पीछे छुट जाते हैं !!

हमारे सुचना माध्यम एक ऐसी सुलभ मानसिकता से ग्रसित हो गए हैं जिसके तहत उनका पूरा जोर उन्ही इलाकों के आस पास ही ज्यादा रहता है जहां पर उनके स्टूडियो होते हैं ! और इसी मानसिकता के चलते आज इलेक्ट्रोनिक मीडिया के लिए दिल्ली और इसके आसपास के इलाके ही सम्पूर्ण भारत में तब्दील हो गए हैं और शेष भारत जैसे उनके लिए कोई मायने ही नहीं रखता है ! इलेक्ट्रोनिक मीडिया कि इसी मानसिकता का  प्रभाव यह हुआ कि आज मीडिया के पास अपार साधन होते हुए भी वो उन इलाकों से कट गया जहां पर देश कि आबादी का महत्वपूर्ण हिस्सा निवास करता है ! इसके अलावा विकट परिस्थतियों वाले सुदूर इलाके तो जैसे मीडिया के लिए विदेशों से ज्यादा दूर हो गए हैं ! देश के सीमान्त इलाकों में मीडिया कि पहुँच की तो आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं !

इसी तरह कुछ चुनिन्दा क्षेत्र से जुड़े लोग ही मीडिया के लिए पसंदीदा रह गए हैं जिनमें राजनीतिज्ञ उसके लिए सबसे पसंदीदा क्षेत्र है और उसके बाद उधोगपतियों को मीडिया वरीयता देता है ! किसान,मजदुर आदि तो उसकी वरीयता सूची में तो क्या सामान्य सूची में भी शामिल नहीं है जिसके कारण इनसे जुडी हुयी बातें मीडिया के लिए जैसे कोई बात होती ही नहीं है ! इसी का परिणाम है कि हमारा मीडिया उधोगों कि प्रगति को ही देश के विकास का पैमाना मान लेता है लेकिन किसानों कि बदहाली को लेकर वो विकास के इस मौजूदा अपने ही बनाए हुए विकास के पैमाने पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगाता है ! जिसका सीधा कारण यह है कि उसको पता है कि विकास के इस पैमाने पर प्रश्नचिन्ह लगाने से उन पर सीधा प्रश्नचिन्ह लग जाएगा जो उसकी वरीयता सूचि में सबसे ऊपर है !

बुधवार, 10 अप्रैल 2013

हमारे सुचना माध्यम क्या स्वतंत्र और पक्षपात रहित हैं !!

सुचना माध्यमों ( मीडिया ) को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है लेकिन वो तभी माना जा सकता है जब सुचना माध्यम स्वतंत्र और पक्षपात रहित हो ! आज हमारे देश में सुचना माध्यमों के अनेक रूप है जिनमें समाचार पत्र और समाचार चैंनल मुख्य रूप से शामिल है ! इसके अलावा पत्र पत्रिकाएं और अंतर्जाल (इंटरनेट ) पर चल रहे ऐसे सुचना माध्यम भी शामिल है जिनको या तो इन्ही समाचार चेनलों और समाचार पत्रों द्वारा ही चलाया जाता है और कुछ ऐसे भी अंतर्जाल संस्करण हैं जिनको ऐसे कुछ पत्रकार स्वतंत्र सुचना माध्यम के नाम पर चला रहे हैं जिनके पास बड़े समाचार पत्र अथवा समाचार चेन्नल चलाने के लिए पूंजी नहीं है लेकिन जनता को सही सूचनाएं मुहैया करवाने के लिए इस तरह का प्रयास कर रहे हैं ! लेकिन इनकी पहुँच केवल उन लोगों तक है जो अंतर्जाल कि दुनिया से जुड़े हुए रहते हैं !  

इसलिए आज भी लोगों के पास समाचार चैंनल और समाचार पत्र ही सूचनाओं को जानने का सबसे ज्यादा सुलभ साधन है ! लेकिन आज सबसे ज्यादा प्रश्नचिन्ह भी इन्ही सुचना माध्यमों पर लग रहा है ! समाचार चैंनलों और समाचार पत्रों के हिस्सेदारों पर नजर डालें तो एक सच सामनें निकल कर आता है कि इन हिस्सेदारों में राजनेताओं के रिश्तेदार ,भू-सम्पतियों के लेनदेन से जुड़े लोग और उधोगपति ही नजर आयेंगे और इन सब लोगों के अपनें हित रहते हैं इसीलिए ये लोग इन समाचार माध्यमों में बने रहते हैं ताकि सता के मुख्य केन्द्रों तक अपनी पहुँच बनाए रख सके और अपने और अपनों के हितों कि रक्षा कर सके ! और यही सबसे बड़ा कारण होता है कि ये सुचना माध्यम वैसी बातों को उठाने से बचते हुए दीखते है जहां पर इनके हित प्रभावित होते हैं !

कालेधन का मामला उठाने से बचते हुए आप हर समाचार चैंनल को देख सकते हैं जिसका कारण यही है कि इन्ही लोगों के द्वारा ही सबसे ज्यादा कालेधन का संग्रह किया जाता है और उसको उठाने से इनके निजी हित प्रभावित होते हैं ! इन चैंनलों नें कालेधन के मुद्दे को जोरशोर से उठाने पर बाबा रामदेव से किनारा करना ही उचित समझा और किसी जमाने में इन्ही समाचार चैंनलों के कर्मचारी ( उनको पत्रकार कहना ईमानदार पत्रकारों का अपमान होगा क्योंकि ईमानदार पत्रकार अपने मालिकों कि मर्जी के आधार पर नहीं चलते ) बाबा रामदेव के आगे पीछे घूमते थे और उनकी एक एक बात को दिखाते थे लेकिन जब इन्होनें देखा कि अब तो बाबा कालेधन वाले मुद्दे के हाथ धोकर पीछे पड़ गये हैं तब इनको लगा कि अब तो बाबा को ज्यादा तव्वजो देनी बंद करनी पड़ेगी और वही किया गया ! कुछ नें तो अपनें स्तर पर ऐसी भ्रामक ख़बरें फैलाई जिनका कोई वजूद ही नहीं था ! 

रविवार, 24 मार्च 2013

इलेक्ट्रोनिक मीडिया का भी अजब हाल है !!

हमारे देश में आजकल मीडिया इमानदारी का प्रमाणपत्र देने कि कोशिश करता नजर आता है लेकिन क्या मीडिया खुद अपनें अंदर भी झांककर देखने कि कोशिश भी करता है ! मीडिया से जुडी ज्यादातर कंपनियां थोक के भाव में चैनल चला रही है जिनमें मनोरंजन ,सिनेमा और समाचार चैंनल शामिल है ! लेकिन दूसरों को इमानदारी की सीख देने वाला मीडिया ग्रुपों के द्वारा चलाये जा रहे हर चैनल पर आपको नियमों कि धज्जियाँ उडती हुयी मिल जायेगी !

ट्राई के नियमानुसार कोई भी चैनल एक घंटे में केवल बारह मिनट का ही विज्ञापन दिखा सकते है और एक घंटे में  केवल चार बार ही विज्ञापन दिखा सकते हैं ! लेकिन इन नियमों को ये चैनल सरेआम धत्ता बता रहें हैं ! और एक घंटे में विज्ञापन दिखाते तो केवल चार बार ही है लेकिन बारह मिनट कि बजाय कहीं ज्यादा दिखाया जाता है और हर चैंनल पर हर बार विज्ञापन देते समय दो मिनट का टाइमर तो चलाया जाता है लेकिन उसको चालू तब किया जाता है जब चैनल आधे से ज्यादा समय तक तो विज्ञापन दिखा देते हैं !

अब ट्राई नें इस मामले पर अपना रुख कुछ तो कडा किया है ! लेकिन जिस तरह से चैंनल अब तक ट्राई के नियमों का मखौल उड़ाते रहें है उससे ऐसा नहीं लगता कि अब ये चैनल बिना किसी कारवाई के ट्राई के नियमों को मानेंगे ! चैनलों के यह मनमर्जी आगे चलेगी या नहीं यह तो ट्राई के रुख पर निर्भर करेगा लेकिन दूसरों को नसीहत देने वाला मीडिया अपने भीतर क्यों नहीं झांकता है और अगर किसी पर कोई आरोप भी लग जाता है तो यही इलेक्ट्रोनिक मीडिया वाले उसके पीछे ऐसे पड़ जाते है जैसे आरोप लगते ही वो गुनहगार साबित हो गया हो ! 

लेकिन यहाँ तो खुलेआम चैंनल ट्राई के नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं और ये तो जगजाहिर है क्योंकि जो लोग भी चैंनल पर कार्यक्रम देखते हैं उनको भले ही ट्राई के नियमों के बारे में पता नहीं हो लेकिन विज्ञापन दिखाए जाने समय के बारे में तो हर कोई जानता है ! इसलिए यह तो कहा ही जा सकता है कि हर चैंनल ट्राई के नियमों को धता बता रहा है !

रविवार, 22 जुलाई 2012

लोगों का विश्वास खोता मीडिया !!


आम लोगों का मीडिया पर जिस तरह से अविश्वास बढ़ता जा रहा है वो अच्छा तो कतई नहीं कहा जा सकता क्योंकि मजबूत और स्वंतत्र मीडिया ही समाज में बदलाव ला सकता है लेकिन इसके लिए कहीं ना कहीं खुद मीडिया ही जिम्मेदार है . पिछले कई वर्षों से देखा जाए तो जिस तरह राजनेताओ का चरित्र का ग्राफ नीचे आता जा रहा है वैसे ही मीडिया का ग्राफ भी नीचे की और अग्रसर है !!
अब अगर आप मीडिया का विश्लेषण करने बैठेगे तो आपको लगेगा की वाकई मीडिया विश्वशनीय नहीं है क्योंकि जिस तरह से घोटाले हो रहे है और मीडिया केवल तमाशा देख रहा है और एक भी घोटाला मीडिया के द्वारा नहीं उजागर किया और उजागर करना तो दूर मीडिया द्वारा तो घोटाले की ख़बरों को भी तब तक नहीं दिखाया जब तक कोई सरकारी एजेंसी द्वारा प्रेस कांफ्रेंस करके नहीं बताया गया हो ऐसे में आप ही बताइये जिस मीडिया का दायित्व है ऐसे मामलों को उजागर करना था उसी मीडिया ने उसको दिखाना जरुरी नहीं समझा !!
ऐसे बहुत से मामले है जिन पर मीडिया को कठघरे में खड़ा किया जा सकता है नीरा राडिया टेप ,अभिषेक मनु सिंघवी जैसे मामले भी सामने आये जिनको मीडिया ने दिखाना ही उचित नहीं समझा जबकि सोशल मीडिया में ये टेप चलते रहे लेकिन जो समाचार माध्यम समाचारों की जगह ज्योतिष ,सीरियल और ना जाने कितने तरह कि सामग्री दिखाते है उनको इन सब मामलों को उठाने का समय ही नहीं मिला और तो और नीरा राडिया के टेप तो खुद आयकर विभाग ने जारी किये थे लेकिन क्योंकि उसको दिखाने से मीडिया वालों के नाम ही सामने आने थे इसीलिए मीडिया ने पक्षपात किया और दिखाना उचित नहीं समझा !!