मंगलवार, 8 जनवरी 2013

हाँ हुजूर मै चीख रहा हूँ हाँ हुजूर मै चिल्लाता हूँ !!!

हाँ हुजूर मै चीख रहा हूँ हाँ हुजूर मै चिल्लाता हूँ
क्योंकि हमेशा मैं भूखी अंतड़ियों कि पीड़ा गाता हूँ
मेरा कोई गीत नहीं है किसी रूपसी के गालों पर
मैंने छंद लिखे हैं केवल नंगे पैरों के छालों पर
मैंने सदा सुनी है सिसकी मौन चांदनी की रातों में
छप्पर को मरते देखा है रिमझिम- रिमझिम बरसातों में
आहों कि अभिव्यक्ति रहा हूँ
कविता में नारे गाता हूँ
मै सच्चे शब्दों का दर्पण
संसद को भी दिखलाता हूँ
क्योंकि हमेशा मैं भूखी अंतड़ियों कि पीड़ा गाता हूँ !!

अवसादों के अभियानों से वातावरण पड़ा है घायल
वे लिखते हैं गजरे, कजरे, शबनम, सरगम, मेंहदी, पायल
वे अभिसार पढ़ाने बैठे हैं पीड़ा के सन्यासी को
मैं कैसे साहित्य समझ लूँ कुछ शब्दों कि अय्याशी को
मै भाषा में बदतमीज हूँ
अलंकार को ठुकराता हूँ
और गीत के व्यकरानो के
आकर्षण से कतराता हूँ
क्योंकि हमेशा मैं भूखी अंतड़ियों कि पीड़ा गाता हूँ !!

शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

अपनी भारत माँ का प्यार लिए फिरता हूँ वाणी में !!

केसर घाटी में आतंकी शोर सुनाई देता है 
हिजबुल लश्कर के नारों का जोर सुनाई देता है 
मलयसमीरा मौसम आदमखोर दिखायी देता है 
लालकिले का भाषण भी कमजोर दिखायी देता है !!


भारत गाँधी गौतम का आलोक था 
कलिंग विजय से ऊबा हुआ अशोक था 
अब ये जलते हुए पहाड़ों का घर है बारूदी आकाश हमारे सर पर है 
इन कोहराम भरी रातों का ढ़लना बहुत जरुरी है 
घोर तिमिर में शब्द-ज्योति का जलना बहुत जरुरी है !!

मैं युगबोधी कलमकार का धरम नहीं बिकने दूंगा
चाहे मेरा सर कट जाये कलम नहीं बिकने दूंगा 
इसीलिए केवल अंगार लिए फिरता हूँ
वाणी में आंसू से भीगा अखबार लिए फिरता हूँ 
वाणी में ये जो भी आतंकों से समझौते की लाचारी है
 ये दरबारी कायरता है आपराधिक गद्दारी है
ये बाघों का शरण-पत्र है भेड़, शियारों के आगे वटवृक्षों का शीश नमन है !!