मैंने अपने पिछले लेख में हिंदी के घटते सम्मान और अंग्रेजी के बढते प्रभाव का जिक्र किया था और मैंने कहा था कि मेकाले की शिक्षा पद्धति का जिक्र कभी आगे करूँगा लेकिन आज समाचारों में गुवाहाटी की घटना ने मुझे आज ही यह पोस्ट लिखने को प्रेरित कर दिया तो शुरू करता हूँ आज की हमारी शिक्षा पद्धति के दुष्परिणामो के बारे में !! मेकाले ने यही सोच कर भारतीय शिक्षा पद्धति को खत्म किया था और अंग्रेजी शिक्षा पद्धति को लागू किया था ताकि उस पद्दति से पढ़े लिखे लोगों के मन में भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भाव आये और पाश्चात्य संस्कृति में अच्छाईयां ही नजर आये और आज आजादी के पेंसठ वर्षों के बाद उसकी सोच सफल भी होती दिख रही है !! भारतीय शिक्षा पद्धति में जहां शिक्षा के साथ साथ संस्कार सिखाये जाते थे जो जीवन पद्धति में सुधार लाते थे लेकिन इस मेकाले कि शिक्षा पद्धति में संस्कारों से तो दूर दूर तक कोई वास्ता ही नहीं है बल्कि शिक्षा भी पूर्ण रूप से नहीं दी जाती है और अंग्रेजी का रट्टू बना दिया जाता है और उन रट्टू लोगों को फिर पाश्चात्य संस्कृति ही लुभाती है क्योंकि बचपन में शिक्षा शुरू करने से लेकर पढ़ाई पूरी करने तक उनको हर जगह यही पढाया जाता है कि अंग्रेजी शिक्षा पद्धति उत्तम है और अंग्रेजी पढ़े लिखे लोग जो करते है वही सही है !! इसके दुष्परिणाम भी आज हमको चारों तरफ दिखाई दे रहे है जो भारतीय संस्कृति मातृप्रधान थी और जिसमे यह माना जाता था कि पराई औरत को माँ और बहन समझा जाना चाहिए उसमे आज पाश्चात्य सभ्यता के घालमेल इतना हो गया है कि औरत को भोग की वस्तु बना दिया है और आज हालात यह है कि टेलीविजन पर आने वाले विज्ञापनों से लेकर हिंदी सिनेमा तक में औरत को भोग कि वस्तु के रूप में दिखाया जाता है ये हुआ उन्ही अंग्रेजी पढ़े लिखे लोगों कि वजह से जिनको विदेशियों में अच्छाई ही नजर आती थी और पश्चिम कि अंधी दौड़ में वहाँ की बुराइयां भारत में लाकर डाल दी और जो लगातार दीखता है उसका हमारे समाज पर असर जरुर पड़ेगा !! इसका एक और दुष्परिणाम यह है अंग्रेजों में अच्छाईयाँ ही अच्छाइयां देखने वालों ने बिना सोचे ऐसी संधियां कर डाली जिसके कारण भारत आर्थिक तौर पर कमजोर बना हुआ है और बना रहेगा जब तक कोई मजबूत इच्छा शक्ति वाला प्रधानमन्त्री नहीं बन जाता और इन संधियों को खतम कर देता इन्ही संधियों के कारण ही भारत आर्थिक रूप से कमजोर बना हुआ है वर्ना भारत के पास संसाधन तो अमेरिका से ज्यादा है !! और आज तो यह हालात हो गए है कि सताओं के शीर्ष स्तर से लेकर शीर्ष स्तर के अधिकारियों तक में इन्ही लोगों का दबदबा बना हुआ है जिसके कारण इस देश के इतिहास के गौरवशाली पन्ने थे उनको धूमिल किया जाया रहा है और जितने भी वीर योधा और क्रांतिकारी थे उनको या तो भुलाया जा रहा है या फिर उनको इतिहास में आतंकवादी कह कर पढाया जा रहा है क्योंकि उन लोगों के दिमाग में अंग्रेजी शिक्षा पद्धति ने यह कूट कूट कर भर दिया है कि भारत में कुछ अच्छा हो ही नहीं सकता !!
शुक्रवार, 13 जुलाई 2012
अंग्रेजी के दुष्परिणाम !!
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मेरे लेख
मैंने अपने पिछले लेख में हिंदी के घटते सम्मान और अंग्रेजी के बढते प्रभाव का जिक्र किया था और मैंने कहा था कि मेकाले की शिक्षा पद्धति का जिक्र कभी आगे करूँगा लेकिन आज समाचारों में गुवाहाटी की घटना ने मुझे आज ही यह पोस्ट लिखने को प्रेरित कर दिया तो शुरू करता हूँ आज की हमारी शिक्षा पद्धति के दुष्परिणामो के बारे में !! मेकाले ने यही सोच कर भारतीय शिक्षा पद्धति को खत्म किया था और अंग्रेजी शिक्षा पद्धति को लागू किया था ताकि उस पद्दति से पढ़े लिखे लोगों के मन में भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भाव आये और पाश्चात्य संस्कृति में अच्छाईयां ही नजर आये और आज आजादी के पेंसठ वर्षों के बाद उसकी सोच सफल भी होती दिख रही है !! भारतीय शिक्षा पद्धति में जहां शिक्षा के साथ साथ संस्कार सिखाये जाते थे जो जीवन पद्धति में सुधार लाते थे लेकिन इस मेकाले कि शिक्षा पद्धति में संस्कारों से तो दूर दूर तक कोई वास्ता ही नहीं है बल्कि शिक्षा भी पूर्ण रूप से नहीं दी जाती है और अंग्रेजी का रट्टू बना दिया जाता है और उन रट्टू लोगों को फिर पाश्चात्य संस्कृति ही लुभाती है क्योंकि बचपन में शिक्षा शुरू करने से लेकर पढ़ाई पूरी करने तक उनको हर जगह यही पढाया जाता है कि अंग्रेजी शिक्षा पद्धति उत्तम है और अंग्रेजी पढ़े लिखे लोग जो करते है वही सही है !! इसके दुष्परिणाम भी आज हमको चारों तरफ दिखाई दे रहे है जो भारतीय संस्कृति मातृप्रधान थी और जिसमे यह माना जाता था कि पराई औरत को माँ और बहन समझा जाना चाहिए उसमे आज पाश्चात्य सभ्यता के घालमेल इतना हो गया है कि औरत को भोग की वस्तु बना दिया है और आज हालात यह है कि टेलीविजन पर आने वाले विज्ञापनों से लेकर हिंदी सिनेमा तक में औरत को भोग कि वस्तु के रूप में दिखाया जाता है ये हुआ उन्ही अंग्रेजी पढ़े लिखे लोगों कि वजह से जिनको विदेशियों में अच्छाई ही नजर आती थी और पश्चिम कि अंधी दौड़ में वहाँ की बुराइयां भारत में लाकर डाल दी और जो लगातार दीखता है उसका हमारे समाज पर असर जरुर पड़ेगा !! इसका एक और दुष्परिणाम यह है अंग्रेजों में अच्छाईयाँ ही अच्छाइयां देखने वालों ने बिना सोचे ऐसी संधियां कर डाली जिसके कारण भारत आर्थिक तौर पर कमजोर बना हुआ है और बना रहेगा जब तक कोई मजबूत इच्छा शक्ति वाला प्रधानमन्त्री नहीं बन जाता और इन संधियों को खतम कर देता इन्ही संधियों के कारण ही भारत आर्थिक रूप से कमजोर बना हुआ है वर्ना भारत के पास संसाधन तो अमेरिका से ज्यादा है !! और आज तो यह हालात हो गए है कि सताओं के शीर्ष स्तर से लेकर शीर्ष स्तर के अधिकारियों तक में इन्ही लोगों का दबदबा बना हुआ है जिसके कारण इस देश के इतिहास के गौरवशाली पन्ने थे उनको धूमिल किया जाया रहा है और जितने भी वीर योधा और क्रांतिकारी थे उनको या तो भुलाया जा रहा है या फिर उनको इतिहास में आतंकवादी कह कर पढाया जा रहा है क्योंकि उन लोगों के दिमाग में अंग्रेजी शिक्षा पद्धति ने यह कूट कूट कर भर दिया है कि भारत में कुछ अच्छा हो ही नहीं सकता !!
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