बुधवार, 18 जुलाई 2012

अहिंसा का यह चोला कहीं कायरता तो नहीं !!

क्या आज जो अहिंसा का रूप हम देख रहे है क्या वो अहिंसा है या कायरता है, अहिंसा का सही अर्थ समझने के लिए हमें भारतीय धर्म ग्रंथो का सहारा लेना होगा और आज जो अहिंसा का विकृत रूप है उससे मुक्त होना होगा वर्ना भारतीय समाज इस अहिंसा के नाम के सहारे कायरता का चोला ओढ़ रहा है इसलिए अहिंसा को सही अर्थों में समझना बेहद जरुरी है !!

भारतीय चिंतन में हमें अहिंसा का समीचीन अर्थ जानना होगा। महाभारत युद्ध के आरंभ में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को युद्ध हेतु प्रेरित करने के लिए उपदेश देते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की दृष्टि में अहिंसा का अर्थ है जिस पुरुष के अन्त:करण में 'मैं कर्ता हूं' ऐसा भाव नहीं है तथा जिसकी बुद्धि सांसारिक पदार्थ और कर्म में लिप्त नहीं होती है, वह पुरुष सब लोगों को मारकर भी वास्तव में न तो मारता है और न ही पाप से बंधता है। मानसकार कहते हैं कि आततायियों को दंड देने के लिए जिनके हाथ में धनुष और बाण हैं, ऐसे प्रभु श्री राम की वंदना करता हूं। भगवान यज्ञ की रक्षा करने के लिए ताड़का को मारना भी उचित समझते हैं। भक्तों की रक्षा के लिए मेघनाद के यज्ञ के विध्वंस का आदेश देते हैं। योग की संस्कृति को स्थापित करने के लिए लाखों राक्षसों के संहार को भी उचित मानते हैं। यह है अहिंसा का यथार्थ स्वरूप !!
 
किसी निरपराध और निरीह प्राणी को मन ,कर्म,वचन से आघात नहीं पहुँचना ही अहिंसा का सही रूप है और यही हमारे धर्म ग्रंथो और हमारे जितने भी महापुरुष हुए है उन्होंने सिखाया है लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया वैसे वैसे अहिंसा का सही अर्थ बदलता गया या यूँ कहें कि इसको समझने में ही भारी भूल हुयी और हमारे लोगों ने अपराधियों को भी माफ करना शुरू कर दिया और हमारे कई राजाओं और हमारे समाज ने इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकाई है और आज यह हालात हो गए है कि अहिंसा कायरता का रूप ले चुकी है !!

सभी धर्म ग्रंथो का सार यही है कि परतंत्र और भयभीत व्यक्ति अहिंसा का पालन नहीं कर सकता। अहिंसा वीर पुरुष की शोभा है। अहिंसा कायर पुरुष से दूर-दूर भागती है। विश्व के मजहबों में मत-मतांतर होने पर भी अहिंसा पर सभी एकमत हैं। इसलिए अहिंसा को बहुत ही विचार एवं विवेक से समझ लेने की आवश्यकता है।
अहिंसा के बारे में महात्मा गाँधी का भी स्पष्ट कहना था कि हिंसा के मुकाबले लाचारी का भाव आना अहिंसा नहीं कायरता है और अहिंसा को कायरता के साथ नहीं मिलाना चाहिए जबकि आज यही हो रहा है आज कहीं भी अन्याय होता है तो लोग उसका प्रतिकार नहीं करते बल्कि अपने रास्ते निकल जाते है यह कौनसी अहिंसा है

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