आसाम के कोकराझार और अन्य जगहों पर हो रही हिंसा के कारणों को जानने के लिए आपको थोडा पीछे जाना होगा और समझना होगा की इसके लिए जिम्मेदार कौन है!!
जब भारत आजाद हुआ और तभी से बंगलादेश(तब का पूर्वी पाकिस्तान) से अवैध घुसपैठियों का भारत आना शुरू हो गया था और आगे यह सिलसिला बढ़ता ही गया और जब यह आसाम के मूल निवासियों अनुपात बिगाड़ने लगे तो आसाम के लोगों कि नींद खुली और वो इसके विरुद्ध आवाज उठाने लगे तो भारत सरकार ने आई.एम.डी.टी. कानून 1983 लागू कर दिया जो कानून अवैध घुसपैठियों के लिए वरदान साबित हुआ उस कानून कि धाराएँ ऐसी थी जिसमे शिकायत कर्ता के लिए निम्न बातें लागू थी!!
आई.एम.डी.टी. कानून में किसी को घुसपैठिया सिद्ध करने का प्रावधान विदेशी अधिनियम, 1946 के इस नियम के विपरीत है, जिसमें संदेहास्पद व्यक्ति की जिम्मेदारी होती है कि वह सिद्ध करे कि वह अवैध अप्रवासी नहीं है।
आई.एम.डी.टी. कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो कि आरोपित घुसपैठिए को कोई विवरण देने के लिए बाध्य करता हो।
जांच अधिकारी को आरोपित घुसपैठिए के निवास स्थान की जांच का भी कोई अधिकार नहीं है। न ही वह आरोपित पर कोई सूचना देने या बताने के लिए कोई दबाव डाल सकता है।
शिकायतकर्ता या गवाहों के कर्तव्य निर्वहन के लिए या न्यायाधिकरण के समक्ष प्रस्तुत होने के लिए कोई खर्च भी देय नहीं है जबकि वह राष्ट्रीय कार्य में सहयोग कर रहा है।
न्यायाधिकरण जैसे ही किसी घुसपैठिए को अवैध अप्रवासी घोषित करता है, वह तत्काल लापता हो जाता है। इस कारण उस पर कोई नोटिस/सम्मन क्रियान्वित नहीं हो पाता।
यही वो काला कानून था जिसको उस समय कि सरकार ने लागू किया था और १९८३ में लागू किये गए उस कानून को अभी पिछले साल १२ जुलाई २०११ को सुप्रीम कौर्ट ने रद्द कर दिया लेकिन इसी कानून कि बदोलत ही आसाम को अशांति के माहौल में धकेल दिया गया!!
इस कानून का फायदा उठाकर बंगलादेश के सीमावर्ती जिलों और वहाँ से पुरे आसाम तथा शेष भारत में अवैध बंगलादेशी फ़ैल गए जिनको चिन्हित करने और बाहर करने की कभी कोशिश नहीं की गयी और आज ये लोग आसाम में स्थानीय लोगों के साथ शामिल हो गए और गैरकानूनी तरीके से वेध दस्तावेज भी हासिल कर चुके है तथा आसाम के मूल निवासियों पर हावी होते जा रहे है यह टकराव उसी का नतीजा है आज आसाम की हालात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहाँ के नो जिलों में इनकी संख्या स्थानीय लोगों से ज्यादा हो चुकी है और ये लोग इकतरफा वोट करके अपना उम्मीदवार चुनते है जो इनके हितों कि रक्षा करते है!!
अभी जो आसाम में धार्मिक हिंसा हो रही है वो भी इन्ही लोगों के कारण है यह लोग वहाँ के बोडो आदिवासियों पर हमले कर रहे है !!
जब भारत आजाद हुआ और तभी से बंगलादेश(तब का पूर्वी पाकिस्तान) से अवैध घुसपैठियों का भारत आना शुरू हो गया था और आगे यह सिलसिला बढ़ता ही गया और जब यह आसाम के मूल निवासियों अनुपात बिगाड़ने लगे तो आसाम के लोगों कि नींद खुली और वो इसके विरुद्ध आवाज उठाने लगे तो भारत सरकार ने आई.एम.डी.टी. कानून 1983 लागू कर दिया जो कानून अवैध घुसपैठियों के लिए वरदान साबित हुआ उस कानून कि धाराएँ ऐसी थी जिसमे शिकायत कर्ता के लिए निम्न बातें लागू थी!!
1 आरोपित घुसपैठिया क्या 25 मार्च, 1971 के पहले भारत में प्रविष्ट हुआ था या उसके बाद में? 2. भारत में उसके घुसपैठ की तिथि? 3. क्या वह विदेशी है? 4. क्या बिना वैध दस्तावेजों के उसने भारत में प्रवेश किया है?इसी कानून को रद्द करते हुए सुप्रीम कौर्ट ने कहा "यह प्रावधान नागरिकों पर विपरीत और हानिकर प्रभाव डालने वाला है क्योंकि इसके कारण घुसपैठ को लोग खामोश तमाशबीन की तरह देखना ज्यादा पसंद करेंगे बजाए इसके कि वे घुसपैठियों की पहचान और निष्कासन में सहयोग करें। आखिर कोई नागरिक क्यों इतनी जहमत उठाएगा जबकि समय, धन, ऊर्जा भी वह खर्च करे और उसके जान पर भी संकट बन आए।
आई.एम.डी.टी. प्रपत्र-5 के कालम 7 में आवेदनकर्ता से उन प्रमाणों का पूरा विवरण मांगा जाता है जो कि उसके पास लिखित या अन्य साक्ष्यों के रूप में मौजूद हैं। आवेदनकर्ता को यह प्रमाणित भी करना होता है कि उसकी सूचना व विश्वास के मुताबिक दिए गए तथ्य सही हैं, साथ ही यह भी कि उसने 10 से ज्यादा आवेदन नहीं दिए हैं। इसी के साथ प्रपत्र में आवेदनकर्ता से इस बात पर भी हस्ताक्षर करने को कहा जाता है कि, "मैं इस तथ्य से भलीभांति परिचित हूं कि यदि मेरी शिकायत गलत पायी गयी या यह पाया गया कि शिकायत सिर्फ इसलिए की गयी है ताकि आरोपित या उसके परिवार के लिए यह परेशानी का कारण बने तो मैं गलत तथ्यों को देने के अपराध में इस प्रक्रिया के अन्तर्गत विधिक कार्रवाई का सामना करने के लिए तैयार हूं।"
आई.एम.डी.टी. कानून में किसी को घुसपैठिया सिद्ध करने का प्रावधान विदेशी अधिनियम, 1946 के इस नियम के विपरीत है, जिसमें संदेहास्पद व्यक्ति की जिम्मेदारी होती है कि वह सिद्ध करे कि वह अवैध अप्रवासी नहीं है।
आई.एम.डी.टी. कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो कि आरोपित घुसपैठिए को कोई विवरण देने के लिए बाध्य करता हो।
जांच अधिकारी को आरोपित घुसपैठिए के निवास स्थान की जांच का भी कोई अधिकार नहीं है। न ही वह आरोपित पर कोई सूचना देने या बताने के लिए कोई दबाव डाल सकता है।
शिकायतकर्ता या गवाहों के कर्तव्य निर्वहन के लिए या न्यायाधिकरण के समक्ष प्रस्तुत होने के लिए कोई खर्च भी देय नहीं है जबकि वह राष्ट्रीय कार्य में सहयोग कर रहा है।
न्यायाधिकरण जैसे ही किसी घुसपैठिए को अवैध अप्रवासी घोषित करता है, वह तत्काल लापता हो जाता है। इस कारण उस पर कोई नोटिस/सम्मन क्रियान्वित नहीं हो पाता।
यही वो काला कानून था जिसको उस समय कि सरकार ने लागू किया था और १९८३ में लागू किये गए उस कानून को अभी पिछले साल १२ जुलाई २०११ को सुप्रीम कौर्ट ने रद्द कर दिया लेकिन इसी कानून कि बदोलत ही आसाम को अशांति के माहौल में धकेल दिया गया!!
इस कानून का फायदा उठाकर बंगलादेश के सीमावर्ती जिलों और वहाँ से पुरे आसाम तथा शेष भारत में अवैध बंगलादेशी फ़ैल गए जिनको चिन्हित करने और बाहर करने की कभी कोशिश नहीं की गयी और आज ये लोग आसाम में स्थानीय लोगों के साथ शामिल हो गए और गैरकानूनी तरीके से वेध दस्तावेज भी हासिल कर चुके है तथा आसाम के मूल निवासियों पर हावी होते जा रहे है यह टकराव उसी का नतीजा है आज आसाम की हालात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहाँ के नो जिलों में इनकी संख्या स्थानीय लोगों से ज्यादा हो चुकी है और ये लोग इकतरफा वोट करके अपना उम्मीदवार चुनते है जो इनके हितों कि रक्षा करते है!!
अभी जो आसाम में धार्मिक हिंसा हो रही है वो भी इन्ही लोगों के कारण है यह लोग वहाँ के बोडो आदिवासियों पर हमले कर रहे है !!
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