काले तिल १५० ग्राम,गोखरू ३०० ग्राम,बबूल का गोंद ५० ग्राम ,शुद्ध शहद आधा किलो ,शुद्ध देशी घी एक चम्मच,एक मिट्टी कि हांडी और उसके ऊपर ढकने के लिए मिट्टी का ढकन (ढकनी) !
बनाने कि विधि-
तिल,गोखरू और गोंद को कूट पीसकर खूब बारिक चूर्ण कर ले और मिट्टी कि हांडी में अंदर कि तरफ पेंदे पर घी का लेप कर दे! फिर तीनों औषधियों का चूर्ण और शहद हांडी में डालकर खूब अच्छी तरीके से मिला लें! ध्यान रहे हांडी इतनी बड़ी होनी चाहिए कि आधी खाली रहे! अब ढकन लगा कर कपडे मिट्टी से बंद करके धुप में सुखा लेवें!
फिर जमीन में इतना गहरा गड्ढा खोदे जिसमे हांडी पूरी तरह से समा जाये! अब हांडी गड्ढे के अंदर रखकर गड्ढे से निकली हुयी मिट्टी से गड्ढे को भरकर समतल कर देवें! फिर इसके ऊपर २० कंडे रखकर आग लगा दे! दो दिन बाद राख हटाकर हांडी बाहर निकाल ले और सफाई से हांडी के ऊपर का कपड़ा मिट्टी हटा दे! अंदर तैयार किया हुआ तिल अवलेह निकाल कर कांच कि बर्नी (जार )में भर लें!
इसे सुबह नाश्ते के बाद और रात को सोते समय एक एक चम्मच खाकर दूध पी लें! इस तिल अवलेह के सेवन से एक से दो माह में शारीरिक कमजोरी,कमरदर्द,खून की कमी,श्वेदप्रदर,स्तनों का ढीलापन,बेडोल होना,योनीदंस जैसी व्याधियाँ दूर हो जाती है! शरीर चुस्त दुरुस्त व् सशक्त तथा सुडोल हो जाता है! अंग प्रत्यंग कसीले और ठोस हो जाते है !!
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