राजनितिक पार्टियों के नेता वैसे तो वादे करने में माहिर होते हैं और जब मौसम चुनावों का हो तो इनका कहना ही क्या तब तो ये तरह तरह के वादे करके जनता को लुभाने की भरपूर कोशिश करते हैं लेकिन भगवान जाने ये लोग उन वादों को याद भी रखते हैं या नहीं क्योंकि अगर ये लोग अपने वादों को पूरा करते तो आज इनके पास वादे करने के लिए कोई समस्या ही नहीं बचती और ये बात अब ये लोग भी समझने लगे हैं और इनको पता है कि जनता अब इनके वादों पर यकीन करने वाली नहीं है इसीलिए इन लोगों ने अब एक नया रास्ता जनता को बहलाने के लिए निकाला है वो रास्ता है जनता के मन में लालच पैदा करना और उस लालच के सहारे जनता से वोट हासिल करना !!
आज कोई पार्टी लेपटोप का लालच दिखा रही है तो कोई पार्टी इंडक्शन चूल्हे का लालच दिखा रही है और जनता में लालच जगा रही है अब देखना ये है कि जनता इनके लालच में आती भी है या नही लेकिन ये पार्टियां अपनी और से तो पूरी कोशिश कर रही है जिसको नीतिगत आधार पर देखा जाये तो यह भी चुनावों में मतदाताओं को लुभाने के लिए ठीक उसी तरह का एक तरह का प्रलोभन ही है जैसे कि नोट बांटना या फिर शराब बांटना बस फर्क यही है कि वो सब पहले बांटा जाता है और ये चुनावों के बाद में पूरा किया जाएगा और इसमें भी ये पार्टियां दोहरे फायदे में हैं पहला तो यह कि जो प्रलोभन पहले दिए जातें हैं उनमे खर्चा भी जेब से होता है और अगर नहीं जीतते हैं तो नुकशान में रहते है उपर से चुनाव आयोग का लफड़ा अलग से अब इन प्रलोभनों में फायदा ही फायदा है ना तो चुनाव आयोग का लफड़ा और ना ही जेब से खर्चा क्योंकि अगर हारते हैं तो कुछ लेना देना है नहीं और अगर जीत भी गए तो खर्चा होगा आम आदमी की जेब से निकले पैसे से यानी कि सरकारी खजाने से , ऐसे में इनका तो फायदा ही फायदा है !!
इस तरह के लालच का सहारा लेने की मज़बूरी के पीछे इन राजनैतिक पार्टियों की अकर्मण्यता और बोद्धिक दिवालिएपन को ही जिम्मेदार माना जाएगा क्योंकि इन पार्टियों के पास कोई दूरगामी सोच है ही नहीं जिसके कारण इस तरह के तात्कालिक रास्ते अपनाने के लिए मजबूर है विचारधारा को ये पार्टियां कब की तिलांजली दे चुकी है और अपनी विचारधारा पर जब इन पार्टियों को खुद को भरोसा नहीं है तो ये जनता पर कैसे भरोसा करे की जनता इनका समर्थन विचारधारा के नाम पर करेगी और रही बात विकास की तो उसकी असलियत भी इन पार्टियों के नेताओं से छिपी हुयी नहीं है ऐसे में इनके पास यही एक तात्कालिक रास्ता बचा है कि जनता को लालच में फंसाया जाये और उसी लालच का फायदा उठाया जाये !!
जरुरत है तो जनता को जागरूक होने की और इस तरह के किसी भी लालच में ना फंसते हुए सोच समझकर मतदान करने की जिससे इन पार्टियों के नेताओं को एक बार फिर सोचने पर मजबूर होना पड़े वैसे भी लालच बुरी बला है जिससे दूर ही रहा जाये तो ज्यादा अच्छा रहता है !!
1 टिप्पणी :
इससे राजनीतिक पार्टियों की अकर्मण्यता और बौद्धिक दिवालियापन झलकता है,,,
recent post : प्यार न भूले,,,
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