संसद का शीतकालीन सत्र जिस तरह हंगामे के साथ शुरू हुआ है उससे ऐसा लगता है कि यह सत्र भी मानसून सत्र की तरह हंगामेदार होकर बिना किसी सार्थक बहस और कामकाज के समाप्त हो जाएगा और जनता के खून पसीने की कमाई का पैसा हंगामे की भेंट चढ जाएगा !!
लगता है संसद में बेठी पार्टियां फिक्सिंग का खेल खेल रही है और सतापक्ष और विपक्ष दोनों को ही जनता के पैसे की कोई चिंता है ही नहीं इसीलिए तो हंगामा करना और संसद स्थगित हो जाना दोनों ऐसे चलता है जैसे ये रोज का नियम हो और लोकसभा अध्यक्ष के लिए जैसे यही सदन चलाना हो !
इस हंगामे की स्थति के लिए सतापक्ष और विपक्ष तो सीधे तौर पर जिम्मेदार है ही लेकिन सदनों को चलाने वाले अध्यक्ष भी कम जिम्मेदार नहीं है क्योंकि अध्यक्ष सतापक्ष का होता है और प्राय यही देखने में आता है कि अध्यक्ष सतापक्ष की सहमती से ही सदन की कार्यवाही चलाने की कोशिश करते है और सतापक्ष के लिए मुसीबत खड़ी करने वाले मुद्दों को उठाने की इजाजत नहीं देते हैं जिसके कारण हंगामे कि स्थति बनती है और फिर विपक्ष के पास जाहिर है दो ही रास्ते बचते है या तो वो हंगामा करके सदन को चलने ही ना दे या फिर जो सतापक्ष करें वही स्वीकार करें ऐसे में विपक्ष भी हंगामे का रास्ता ही चुनता है !!
अगर अध्यक्ष निष्पक्ष तरीके से सदन चलाये तो कोई कारण नहीं है कि हंगामा हो और अध्यक्ष कोई गैर राजनैतिक व्यक्ति हो तो वो हंगामा करने वालों पर अपने अधिकारों का प्रयोग करके सख्ती भी कर सकता है जो राजनैतिक पार्टियों से जुड़े लोग नहीं कर पाते है क्योंकि उनको पता रहता है कि आज विपक्ष पर सख्ती बरतेंगे तो कल को अपनी पार्टी से जुड़े लोगों पर भी सख्ती बरतनी पड़ेगी और वैसा नहीं करने पर उनकी भारी बदनामी होगी ऐसे में वो चुपचाप जनता के पैसे को हंगामे की भेंट चढ़ते हुए देखने में ही अपनी भलाई समझते है !!
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