शनिवार, 22 दिसंबर 2012

कहीं कमी हमारी शिक्षा और संस्कारों में तो नहीं !!

जिस तरह से महिलाओं और लड़कियों के साथ दुराचार की घटनाएं बढ़ रही है वो निश्चय ही चिंता की बात है ! आज वक्त आ गया है कि हम ये विचार करें कि हमारी शिक्षा में और हमारे संस्कारों में कहाँ कमी रह रही है जिसके कारण महिलाओं और लड़कियों को इस तरह कि हैवानियत का सामना करना पड़ता है ! जिस भारतीय संस्कृति में औरत को हमेशा पूज्या माना जाता है आज उसी भारत में इस तरह की घटनाएं सामने आ रही है ! ऐसा क्यों हो रहा है इस पर विचार करने और सुधार करने का समय अगर अभी भी नहीं आया है तो फिर हम कब सोचेंगे !!

आज जरुरत इस बात की आ गयी है कि जिस तरह हम लोग लड़कियों को संस्कारित करने पर जोर देते हैं उसी तरह से हमको लड़कों को भी संस्कार देने की जरुरत है ! हमारे समाज में यह धारणा गहरे से घर कर गयी है कि लड़की को दूसरे घर जाना पड़ेगा इसलिए अगर यहाँ से संस्कारित करके नहीं भेजा गया तो हमें जलील होना पड़ेगा और लड़के को तो कहीं जाना नहीं है इसलिए उनको लड़कियों की तरह से संस्कारित करने कि कोई आवश्यकता नहीं है ! आज के हालात को देखते हुए समय आ गया है कि समाज इस धारणा को बदले और लड़कों को भी उसी तरह संस्कारित किया जाये जिस तरह से लड़कियों को किया जाता है !!

आज इस तरह की घटनाएं होती है तो हमें भारतीय संस्कृति याद आती है लेकिन विचार करने की बात है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था में क्या हमने भारतीय संस्कृति का ज्ञान देने वाली बातों का समावेश किया है ! हमने इस बात पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया कि हमारी शिक्षा व्यवस्था में भारतीय संस्कृति का ज्ञान दिया जाये बल्कि हमारा सारा ध्यान इसी पर केंद्रित है कि हमारे बच्चों को पाश्चात्य शैली में ही शिक्षा दी जाये ! भारतीय संस्कृति से जुड़ा हुआ ज्ञान बच्चों के पाठ्यक्रमों में था उसको भी साम्प्रदायिकता का नाम देकर धीरे धीरे हटाने का काम किया जा रहा है जिस पर आज फिर से विचार करने की जरुरत है !!


आज फिल्म और विज्ञापन जगत भी जिस तरह नारी को भोग की वस्तु बनाकर पेश कर रहा है उस पर भी अंकुश लगाना चाहिए क्योंकि जो भी चीज बार बार दिखाई जायेगी और बच्चे उसको देखेंगे तो वो उनके दिमाग पर उसी तरह का प्रभाव छोड़ेगी और जब वही देखते हुए बच्चे बड़े होंगे तो उनमें उसी तरह की धारणा घर कर जायेगी जिस तरह की ये विज्ञापन और फिल्म में दिखातें है ! इस पर विचार करना जरुरी है कि आज हमारे फ़िल्मी जगत और विज्ञापन जगत वाले किस तरह की अश्लील सामग्री परोस रहें है !!

दुराचार की बढती घटनाओं के लिए सरकारों और समाज दोनों की सामूहिक जिम्मेदारी है जिससे कोई बच नहीं सकता और बचने की बजाय दोनों को ही अपने अंदर झाँक कर देखना होगा कि उनकी और से कहाँ कमी रह रही है ! उन कमियों की पहचान करके उनको दूर करने की तरफ ध्यान देना चाहिए !!