गुजरात चुनावों के परिणाम आने के बाद यह तो साफ़ हो चूका है कि एक बार फिर मोदी ही गुजरात के मुख्यमंत्री का पद संभालेंगे और यह उनका लगातार तीसरा कार्यकाल होगा लेकिन मोदी की जीत कई मायनों में अहम मानी जा सकती है ! एक तो इस बार भाजपा के बागी और भूतपूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल भी मोदी के सामने चुनाव मैदान में थे जिसके कारण जातिगत समीकरण उनके खिलाफ लग रहे थे ! दूसरी और लगातार सता में रहने के कारण वोटरों की नकारात्मकता भी उनके लिए सिरदर्द साबित हो रही थी ! और मोदी के पास इस बार कोई भावनात्मक मुद्दा भी नहीं था जिसके सहारे मोदी वोटों का धुर्वीकरण कर पाते इसलिए मोदी के पास जनता में जाने के लिए विकास ही अहम मुद्दा था ! ऐसे में गुजरात चुनावों में मोदी के विकास के दावों की अग्निपरीक्षा होने वाली थी और मोदी उसमें ना केवल पास हुए बल्कि विरोधियों को माकूल जबाब भी दिया जिसके लिए मोदी जाने जाते हैं !!
गुजरात चुनाव कई लोगों के लिए अहम थे खुद मोदी के लिए जहां प्रतिष्ठा का प्रश्न था वहीँ राहुल गांधी के लिए भी बिहार और उतरप्रदेश चुनावों में हुयी हार के बाद गुजरात चुनाव खास महत्व रखते थे ! लेकिन जहां मोदी ने अपना जलवा बरकरार रखा वहीँ कांग्रेस के युवराज कोई खास करिश्मा नहीं कर पाए और वो अपनी पार्टी को हार से नहीं बचा पाए ! जहां मोदी ताकतवर होकर उभरें हैं वहीँ राहुल के हिस्से में हार में एक और राज्य शुमार हो गया है जो निश्चित रूप से उनके लिए निराशाजनक तो जरुर होगा !
भाजपा के पास भी अब मोदी को २०१४ के चुनावों में प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में प्रस्तावित करने के सिवा कोई चारा नहीं बचेगा ! क्योंकि मोदी पहले भी लोकप्रिय और कद्दावर नेता थे और अब तो निर्विवाद रूप से और कद्दावर और लोकप्रिय हो चुके है ! ऐसे में निराशा के भंवर में डूबी भाजपा के पास मोदी से ज्यादा लोकप्रिय दूसरा कोई नेता नहीं है इसलिए अब मोदी को प्रधानमन्त्री के उम्मीदवार के रूप में भाजपा को घोषित करना ही पड़ेगा और जिस तरह मोदी गुजरात में पार्टी के लिए संकटमोचक साबित हुए है उसी तरह आगामी लोकसभा चुनावों में भी पार्टी के लिए संकटमोचक कि भूमिका निभा सकते हैं !!
1 टिप्पणी :
चलिए डूबते को तिनके का सहारा तो मिला .बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक अभिव्यक्ति फाँसी : पूर्ण समाधान नहीं
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