भारत कॆ सैनिकॊं की हत्या पर, इंद्रासन हिला नहीं !
प्रलयं-कारी शंकर का क्यॊं, नयन तीसरा खुला नहीं !!
शॆष अवतार लक्ष्मण जागॊ, मत करॊ प्रतीक्षा इतनी !
मर्यादाऒं मॆं बंदी भारत माँ,दॆ अग्नि-परीक्षा कितनी !!
हॆ निर्णायक महा-पर्व कॆ, तुम फिर सॆ जयघॊष करॊ !
युद्ध-सारथी बन भारत कॆ, जन-जन मॆं जल्लॊष भरॊ !!
भारत माँ की बासंती चूनर,तुमसॆ नया बिहान माँगती है !
महाँकुम्भ मॆं महाँ-युद्ध कर, यॆ रक्तिम स्नान माँगती है !!
सब नॆ दॆखा है दुश्मन कितना, अपघाती हिंसक है !
हाय हमारी किस्मत अपना शासन हुआ नपुंसक है !!
शीश कटा धड़ सैनिक का, धिक्कार रहा है सबकॊ !
कुर्सी सॆ तुम करॊ वार्ता,शत्रु ललकार रहा है सबकॊ !!
जब सरहद पर निर्दॊष,फ़ौजियॊं कॆ सर काटॆ जायॆंगॆ !
यॆ अस्त्र-शस्त्र भारत मॆं, रख कर क्या चाटॆ जायॆंगॆ !!
भारत की युवा-शक्ति उठ, माँ तुझसॆ वलिदान माँगती है !
महाँकुम्भ मॆं महाँ-युद्ध कर, यॆ रक्तिम स्नान माँगती है !!
पागल और दीवानॆ बन कर,यूँ गलियॊं मॆं मत घूमॊ !
भगतसिंह सुखदॆव सरीखॆ, फांसी कॆ फन्दॊं कॊ चूमॊ !!
बड़ॆ भाग्य सॆ पाया है यॆ, जीवन सार्थक कर जाऒ !
माँग रही बलिदान भारती,उसकी खातिर मर जाऒ !!
आवाहन कर युवा क्रांति का, अब आगॆ बढ़ जाऒ !
तुम्हॆं कसम है भारत माँ की,दुश्मन पर चढ़ जाऒ !!
भारत की यह पावन धरती,ज़ुल्मॊं का दिवसान माँगती है !
महाँकुम्भ मॆं महाँ-युद्ध कर, यॆ रक्तिम स्नान माँगती है !!
एक निवेदन करता हूँ तुम सॆ, भारत कॆ रचनाकारॊ !
युवा-शक्ति कॆ पौरुष पर,मत कायरता का रँग डारॊ !!
बिंदिया,पायल,कंगन झुमकॆ,ना गॊरी कॆ गाल लिखॊ !
रँग दॆ बसन्ती चॊला गातॆ,भारत माँ कॆ लाल लिखॊ !!
रॊम-रॊम मॆं दॆशभक्ति का,ज़ज़्बा और ज़ुनून लिखॊ !
उस हत्यारॆ कॊ ख़त मॆं, खून का बदला खून लिखॊ !!
वाणी कॆ साधक ऒज पुरुष, माँ निष्पक्ष बयान माँगती है !
महाँकुम्भ मॆं महाँ-युद्ध कर, यॆ रक्तिम स्नान माँगती है !!
( वीररस के कवि-राज बुन्दॆली जी कि कविता )
4 टिप्पणियां :
ओजस्वी भाव
जबरदस्त ।
शुभकामनायें भाई-
बहुत सुन्दर प्रस्तुति. हार्दिक बधाई.
yuva bharat aapko naman karta hai.
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