बुधवार, 13 अगस्त 2014

शहर सॆ भला अपना गांव, चलॊ चलतॆ हैं !!

राजबुन्देली की एक रचना:-

रिश्तॊं मॆं नहीं कॊई दुराव, चलॊ चलतॆ हैं !
शहर सॆ भला अपना गांव, चलॊ चलतॆ हैं !!
पनघट की पगडंडियां, बिरवा बगीचॆ कॆ !
बुला रही बरगद की छांव, चलॊ चलतॆ हैं !!
अपनॆ पुरखॊं का चमन उजड़ता जा रहा !
मिल कॆ करॆंगॆ रख-रखाव, चलॊ चलतॆ हैं !!



गरमी की तपन वह, बारिष का भीगना !
सिसयातॆ जाड़ॆ कॆ अलाव, चलॊ चलतॆ हैं !!
वॊ चटनी-रॊटी मुझॆ याद आती है बहुत !
सुहाता नहीं है यॆ पुलाव, चलॊ चलतॆ हैं !!
हिन्दू-मुसलमां हॊ, अमीर या गरीब हॊ !
वहां नहीं कॊई भॆद-भाव, चलॊ चलतॆ हैं !!

एक दूजॆ कॆ सुख-दुख कॆ साथी हैं सब !
आपस मॆं इतना लगाव, चलॊ चलतॆ हैं !!
जरा तंग-हाली मॆं गुजरॆगी यॆ ज़िन्दगी !
हमॆशा न रहॆगा अभाव, चलॊ चलतॆ हैं !!

आज़ादी सॆ रहॆंगॆ हम वहीं खॆती करॆंगॆ !
वहां नहीं है कॊई दबाव, चलॊ चलतॆ हैं !!
माई बाबू की सॆवा सॆ, ज़न्नत मिलॆगी !
सब का यही है सुझाव, चलॊ चलतॆ हैं !!

शहर की चकाचौंध मॆं, खॊ जायॆंगॆ हम !
दिलॊ-दिमाग मॆं है घाव, चलॊ चलतॆ हैं !!
"राज बुन्दॆली" तॊ तखल्लुस है उनका !
नाम है डा.आर.एल.राव, चलॊ चलतॆ हैं !!


शनिवार, 30 मार्च 2013

कलम की नॊंक सॆ आँधियॊं कॊ हम,रॊकतॆ रहॆ हैं रॊकतॆ रहॆंगॆ !!

कवि राजबुन्देली जी वीर रस से भरी कविता :-

फ़ांसी कॆ फन्दॊं कॊ हम , गर्दन दान दिया करतॆ हैं !
गॊरी जैसॆ शैतानॊं कॊ भी ,जीवन-दान दिया करतॆ हैं !!
क्षमाशीलता का जब कॊई , अपमान किया करता है !
अंधा राजपूत भी तब, प्रत्यंचा तान लिया करता है !!
भारत की पावन धरती नें , ऎसॆ कितनॆं बॆटॆ जायॆ हैं !
स्वाभिमान की रक्षा मॆं,उन नॆं निज शीश चढ़ायॆ हैं, !!
दॆश की ख़ातिर ज़िन्दगी हवन मॆं, झॊंकतॆ रहॆ हैं झॊंकतॆ रहॆंगॆ !
कलम की नॊंक सॆ आँधियॊं कॊ हम,रॊकतॆ रहॆ हैं रॊकतॆ रहॆंगॆ !!

स्वाभिमान की रक्षा मॆं, महिलायॆं ज़ौहर कर जाती हैं !
आन नहीं जानॆं दॆतीं जलकर, ज्वाला मॆं मर जाती हैं !!
याद करॊ पन्ना माँ जिस नॆं, दॆवासन कॊ हिला दिया !
राजकुँवर की मृत्यु-सॆज पर, निज बॆटॆ कॊ सुला दिया !!
भारत की तॊ नारी भी, दुर्गा है रणचण्डी है, काली है !
तलवार उठा लॆ हाँथॊं मॆं, तॊ महारानी झांसी वाली है !!
खाकर घास की रॊटी गर्व सॆ सीना, ठॊंकतॆ रहॆ हैं ठॊंकतॆ रहॆंगॆ !
कलम की नॊंक सॆ आँधियॊं कॊ हम,रॊकतॆ रहॆ हैं रॊकतॆ रहॆंगॆ !!

बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

चंद्रशेखर आजाद जी पुण्यतिथि पर सादर समर्पित !!


चंद्रशेखर आजाद जी पर लिखी गयी मेरे पसंदीदा कवि राजबुन्देली जी की एक रचना :-

सूरज कॆ वंदन सॆ पहलॆ,धरती का वंदन करता था !
इसकी पावन मिट्टी सॆ,माथॆ पर चन्दन करता था !!
इसकी गौरव गाथाऒं का,वॊ गुण-गायन करता था !
आज़ादी की रामायण का,नित्य पारायण करता था !!
संपूर्ण क्रांन्ति का भारत मॆं, सच्चा जन-नाद नहीं हॊगा !
जब तक इस भूमि पर पैदा, फिर सॆ आज़ाद नहीं हॊगा !!

भारत माँ का सच्चा बॆटा,आज़ादी का पूत वही था !
उग्र-क्रान्ति की सॆना का,संकट-मॊचन दूत वही था !!
आज़ादी की खातिर जन्मा, आज़ादी मॆं जिया मरा !
गॊली की बौछारॊं सॆ वह, शॆर-बब्बर ना कभी डरा !!
कपटी कालॆ अंग्रॆजॊं का खत्म, कुटिल उन्माद नहीं हॊगा !
जब तक इस भूमि पर पैदा, फिर सॆ आज़ाद नहीं हॊगा !!

इस सॊनॆ की चिड़िया कॊ,खुलॆ-आम जॊ लूट रहॆ थॆ !
उस कॆ कॆहरि-गर्जन सॆ ही,सबकॆ छक्कॆ छूट रहॆ थॆ !!
उस मतवालॆ की सांसॊं मॆं, आज़ादी थी, आज़ादी थी !
हर बूँद रुधिर की उस की, आज़ादी की उन्मादी थी !!
यह राष्ट्र-तिरंगा भारत का, तब तक आबाद नहीं हॊगा !
जब तक इस भूमि पर पैदा, फिर सॆ आज़ाद नहीं हॊगा !!

शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

दिनकर का वंशज हूं मैं, श्रृँगार नहीं अंगार लिखूंगा !!

मेरे प्रिय कवि राजबुन्देली जी कि रचना.........
कल मैंनॆ भी सोचा था कॊई, श्रृँगारिक गीत लिखूं !
बावरी मीरा की प्रॆम-तपस्या, राधा की प्रीत लिखूं !!
कुसुम कली कॆ कानों मॆं,मधुर भ्रमर संगीत लिखूं !
जीवन कॆ एकांकी-पन का,कॊई सच्चा मीत लिखूं !!
एक भयानक सपनॆं नॆं, चित्र अनॊखा खींच दिया !
श्रृँगार सृजन कॊ मॆरॆ, करुणा क्रंदन सॆ सींच दिया !!
यॆ हिंसा का मारा भारत, यह पूँछ रहा है गाँधी सॆ !
कब जन्मॆगा भगतसिंह, इस शोषण की आँधी सॆ !!
राज-घाट मॆं रोता गाँधी, अब बॆवश लाचार लिखूंगा !
दिनकर का वंशज हूं मैं, श्रृँगार नहीं अंगार लिखूंगा !!

चिंतन बदला दर्शन बदला, बदला हर एक चॆहरा !
दही दूध कॆ छींकों पर, लगा बिल्लियॊं का पहरा !!
भ्रष्टाचारों की मंडी मॆं, बर्बाद बॆचारा भारत देखो !
जलती हॊली मे फंसा,प्रह्लाद हमारा भारत देखो !!
जीवन का कटु-सत्य है, छुपा हुआ इन बातॊं मॆं !
क्रान्ति चाहिए या शॊषण,चयन तुम्हारॆ हाथॊं मॆं !!
जल रही दहॆज की ज्वाला मॆं,नारी की चीख सुनॊं !
जीवन तॊ जीना ही है, क्रांति चुनॊं या भीख चुनॊं !!
स्वीकार तुम्हॆं समझौतॆ, मुझकॊ अस्वीकार लिखूंगा !
बरदाई का वंशज हूं मैं, श्रृंगार नहीं अंगार लिखूंगा !!
दिनकर का वंशज हूं मैं, श्रृँगार नहीं अंगार लिखूंगा !!

शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

स्वामी रामदॆव जी कॊ समर्पित एक कविता !!


हर राष्ट्र-भक्त का हम मुक्त हृदय सॆ अभिनंदन करतॆ हैं !
उसकॆ चरणॊ की धूल उठा कर,माथॆ पर चन्दन करतॆ हैं !!
भारत की गौरव गाथा का, बच्चा- बच्चा गुण गान करॆ !
इसकी खातिर माता हंसकर,निज बॆटॊं का बलिदान करॆ !!
आज कंठ सॆ भारत माँ कॆ, कृंदित आवाज़ सुनाई दॆती है ! 
स्वामी जी की वाणी मॆं, भारत की आवाज़ सुनाई दॆती है !! 

दॆकर झूठॆ आश्वासन बस, जनता कॊ ही छला गया है ! 
भ्रष्टाचार कॆ अंगारॊं पर, इस, बॆचारी कॊ तला गया है !!
मिट जायॆं कालॆ बादल तॊ,दिन-मान भला क्या हॊगा !
काला-धन वापस आयॆ तॊ, नुकसान भला क्या हॊगा !!
कुछ भ्रष्टाचारी गद्दारॊं कॆ हांथॊं,लुटती लाज दिखाई दॆती है ! 
स्वामी जी की वाणी मॆं, भारत की आवाज़ सुनाई दॆती है !!

निश-दिन खातॆ हैं खाना जॊ, सॊनॆ-चाँदी कॆ थालॊं मॆं ! 
वॊ क्यॊं घात लगायॆ बैठॆ हैं,जनता कॆ चंद निवालॊं मॆं !!
जितना डर लगता है सबकॊ,इनकी मंहगी सरकारॊं सॆ !
उतना कॊई भी डरॆ नहीं हैं,उन अंग्रॆजॊं की तलवारॊं सॆ !! 
झूठॆ आश्वासन दॆ कर सत्ता, वर्षॊं सॆ यही सफाई दॆती है ! 
स्वामी जी की वाणी मॆं, भारत की आवाज़ सुनाई दॆती है !! 

सोमवार, 28 जनवरी 2013

कविता कॆ रस प्रॆमी बॊलॊ, श्रृँगार लिखूं या अंगार लिखूं !!


हर नौजवान कॆ हाथों मॆं, बस बॆकारी का हाला !
हर सीनॆं मॆं असंतोष की, धधक रही है ज्वाला !!
नारी कॆ माथॆ की बिंदिया, ना जानॆं कब रॊ दॆ !
वॊ बूढी मैया अपना बॆटा,क्या जानॆं कब खॊ दॆ !!
बिलख रहा है राखी मॆ, कितनीं, बहनॊं का प्यार लिखूं !


धन्य धन्य वह क्षत्राणी जिनकॊ वैभव नॆं पाला था !
आ पड़ी आन पर जब, सबनॆं जौहर कर डाला था !!
कल्मषता का काल-चक्र, पलक झपकतॆ रॊका था !
इतिहास गवाही दॆता है, श्रृँगार अग्नि मॆं झॊंका था !!
हल्दीघाटी कॆ कण-कण मॆं, वीरॊं की शॊणित धार लिखूं !
कविता कॆ रस-प्रॆमी बॊलॊ, श्रृँगार लिखूं या अंगार लिखूं !!


श्रृँगार सजॆ महलॊं मॆं वह,तड़ित बालिका बिजली थी !
श्रृँगार छॊड़ कर महारानी, रण भूमि मॆं निकली थी !!
बुंदॆलॆ हरबॊलॊं कॆ मुंह की, अमिट ज़ुबानी लिखी गई !
खूब लड़ी मर्दानी थी वह, झांसी की रानी लिखी गई !!
उन चूड़ी वालॆ हाँथॊं मॆं, मैं चमक उठी तलवार लिखूं !
कविता कॆ रस-प्रॆमी बॊलॊ,श्रृँगार लिखूं या अंगार लिखूं !!

बुधवार, 23 जनवरी 2013

अब भगतसिंह सरदार चाहियॆ ॥


पंथ कठिन है माना मैनॆ, मंज़िल ज्यादा दूर नहीं है ॥
करधन-कंगन मॆं खॊया रहना, मुझकॊ मंज़ूर नहीं है ॥
यॆ बिंदिया पायल झुमका, बॊलॊ बदलाव करॆंगॆ क्या ॥
कजरा रॆ, कजरा रॆ कॆ गानॆ, मां कॆ घाव भरॆंगॆ क्या ॥
अमर शहीदॊं का शॊणित, धिक्कार रहा है पौरुष कॊ ॥
वह धॊखॆबाज़ पड़ॊसी दॆखॊ,ललकार रहा है पौरुष कॊ ॥

श्रृँगार-गीत हॊं तुम्हॆं मुबारक, मॆरी कलम कॊ अंगार चाहियॆ ॥
भारत की रक्षा हित फ़िर सॆ, अब भगतसिंह सरदार चाहियॆ ॥

सब कुछ लुटा दिया, क्या उनकॊ घर-द्वार नहीं था ॥
भूल गयॆ नातॆ-रिश्तॆ, क्या उनकॊ परिवार नहीं था ॥
क्या राखी कॆ धागॆ का, उन पर अधिकार नहीं था ॥
क्या बूढ़ी माँ की आँखॊं मॆं, बॆटॊं कॊ प्यार नहीं था ॥
आज़ादी की खातिर लड़तॆ, वह सूली पर झूल गयॆ ॥
आज़ाद दॆश कॆ वासी, बलिदान उन्ही का भूल गयॆ ॥

उन अमर शहीदॊं कॊ पूरा-पूरा, संवैधानिक अधिकार चाहियॆ ॥
भारत की रक्षा हित फ़िर सॆ, अब भगतसिंह सरदार चाहियॆ ॥


बीत गईं जॊ काली-काली, अंधियारी रातॊं कॊ छॊड़ॊ ॥
घर कॆ गद्दारॊं सॆ निपटॊ,बाहर वाली बातॊं कॊ छॊड़ॊ ॥
बलिदानी अमर शहीदॊं पर,गर्व करॊ तुम नाज़ करॊ ॥
युवा-शक्ति आगॆ आऒ,जन-क्रान्ति का आगाज़ करॊ ॥
सारी दुनिया मॆं अपनॆ, भारत कॊ तुम सरताज करॊ ॥
गॊरॆ अंग्रॆज नहीं है इन, कालॆ अंग्रॆजॊं पर राज करॊ ॥

सोमवार, 14 जनवरी 2013

भारत की युवा-शक्ति उठ, माँ तुझसॆ वलिदान माँगती है !!

भारत कॆ सैनिकॊं की हत्या पर, इंद्रासन हिला नहीं !

प्रलयं-कारी शंकर का क्यॊं, नयन तीसरा खुला नहीं !!
शॆष अवतार लक्ष्मण जागॊ, मत करॊ प्रतीक्षा इतनी !
मर्यादाऒं मॆं बंदी भारत माँ,दॆ अग्नि-परीक्षा कितनी !!
हॆ निर्णायक महा-पर्व कॆ, तुम फिर सॆ जयघॊष करॊ !
युद्ध-सारथी बन भारत कॆ, जन-जन मॆं जल्लॊष भरॊ !!
भारत माँ की बासंती चूनर,तुमसॆ नया बिहान माँगती है !
महाँकुम्भ मॆं महाँ-युद्ध कर, यॆ रक्तिम स्नान माँगती है !!




सब नॆ दॆखा है दुश्मन कितना, अपघाती हिंसक है !
हाय हमारी किस्मत अपना शासन हुआ नपुंसक है !!
शीश कटा धड़ सैनिक का, धिक्कार रहा है सबकॊ !
कुर्सी सॆ तुम करॊ वार्ता,शत्रु ललकार रहा है सबकॊ !!
जब सरहद पर निर्दॊष,फ़ौजियॊं कॆ सर काटॆ जायॆंगॆ !
यॆ अस्त्र-शस्त्र भारत मॆं, रख कर क्या चाटॆ जायॆंगॆ !!
भारत की युवा-शक्ति उठ, माँ तुझसॆ वलिदान माँगती है !
महाँकुम्भ मॆं महाँ-युद्ध कर, यॆ रक्तिम स्नान माँगती है !!

पागल और दीवानॆ बन कर,यूँ गलियॊं मॆं मत घूमॊ !
भगतसिंह सुखदॆव सरीखॆ, फांसी कॆ फन्दॊं कॊ चूमॊ !!
बड़ॆ भाग्य सॆ पाया है यॆ, जीवन सार्थक कर जाऒ !
माँग रही बलिदान भारती,उसकी खातिर मर जाऒ !!
आवाहन कर युवा क्रांति का, अब आगॆ बढ़ जाऒ !
तुम्हॆं कसम है भारत माँ की,दुश्मन पर चढ़ जाऒ !!
भारत की यह पावन धरती,ज़ुल्मॊं का दिवसान माँगती है !
महाँकुम्भ मॆं महाँ-युद्ध कर, यॆ रक्तिम स्नान माँगती है !!