सोमवार, 28 जनवरी 2013

कविता कॆ रस प्रॆमी बॊलॊ, श्रृँगार लिखूं या अंगार लिखूं !!


हर नौजवान कॆ हाथों मॆं, बस बॆकारी का हाला !
हर सीनॆं मॆं असंतोष की, धधक रही है ज्वाला !!
नारी कॆ माथॆ की बिंदिया, ना जानॆं कब रॊ दॆ !
वॊ बूढी मैया अपना बॆटा,क्या जानॆं कब खॊ दॆ !!
बिलख रहा है राखी मॆ, कितनीं, बहनॊं का प्यार लिखूं !


धन्य धन्य वह क्षत्राणी जिनकॊ वैभव नॆं पाला था !
आ पड़ी आन पर जब, सबनॆं जौहर कर डाला था !!
कल्मषता का काल-चक्र, पलक झपकतॆ रॊका था !
इतिहास गवाही दॆता है, श्रृँगार अग्नि मॆं झॊंका था !!
हल्दीघाटी कॆ कण-कण मॆं, वीरॊं की शॊणित धार लिखूं !
कविता कॆ रस-प्रॆमी बॊलॊ, श्रृँगार लिखूं या अंगार लिखूं !!


श्रृँगार सजॆ महलॊं मॆं वह,तड़ित बालिका बिजली थी !
श्रृँगार छॊड़ कर महारानी, रण भूमि मॆं निकली थी !!
बुंदॆलॆ हरबॊलॊं कॆ मुंह की, अमिट ज़ुबानी लिखी गई !
खूब लड़ी मर्दानी थी वह, झांसी की रानी लिखी गई !!
उन चूड़ी वालॆ हाँथॊं मॆं, मैं चमक उठी तलवार लिखूं !
कविता कॆ रस-प्रॆमी बॊलॊ,श्रृँगार लिखूं या अंगार लिखूं !!




बॆटॆ कॆ सम्मुख मां नॆं, पाठ स्वराज्य का बाँचा हॊगा !
मुगलॊं की छाती पर तब,वह शॆर मराठा नाँचा हॊगा !!
भगतसिंह की मां का दॆखॊ, सूना आंचल श्रृँगार बना !
इतिहास रचा बॆटॆ नॆं जब, तपतॆ तपतॆ अंगार बना !!
कह रहीं शहीदॊं की सांसॆं,भारत की जय-जयकार लिखूं !
कविता कॆ रस-प्रॆमी बॊलॊ,श्रृँगार लिखूं या अंगार लिखूं !!

( वीर रस के कवि राजबुन्देली जी कि रचना )

8 टिप्‍पणियां :

रविकर ने कहा…


शुभकामनाये ||

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

राजा बुन्देली जी की कविता साझा करने के लिए ,,आपका आभार,,,

recent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…




बहुत सुन्दर
New post तुम ही हो दामिनी।

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

अति सुन्दर ,भावपूर्ण रचना ...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना!
अब तो अेगार ही उगलने का समय है!

शिवनाथ कुमार ने कहा…

नारियों ने जितना योगदान दिया है वो अमूल्य है ,,,
शत शत नमन उनको !

आभार !

Asha Lata Saxena ने कहा…

उन चूड़ी वाले हाथों में चमक रही तलवार लिखूं --------श्रृंगार लिखूं या अंगार लिखूं "
सुन्दर और भाव पूर्ण उम्दा रचना |
आशा

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!