दिल्ली बलात्कार कांड के एक आरोपी को जुवेनाइल जस्टिस बौर्ड द्वारा नाबालिग करार देने के कारण दामिनी के हक में आवाज उठाने वाले देशवासियों को गहरा धक्का लगा है ! इस फैसले नें एक नयी बहस को जन्म दे दिया है कि क्या इस तरह के बलात्कारी के साथ केवल इसलिए रहम कि जा सकती है कि उसके बालिग़ होने में बस कुछ ही दिन का समय कम था भले ही उसनें हैवानियत के साथ बलात्कार जैसा घृणित कार्य ही क्यों ना किया हो !
इस फैसले के बाद ये सवाल उठाना लाजमी है कि कानून जिसको नाबालिग मान रहा है उसने जिस समय यह कुकर्म किया उस समय उसका हिंसात्मक रवैया किसी भी व्ययस्क से भी ज्यादा था तो फिर उसे किस आधार पर नाबालिग मान लिया जाना चाहिए ! क्या कानून नें मामले कि गंभीरता को नजरअंदाज नहीं किया है ! उसने जिस बेरहमी से दामिनी (परिवर्तित नाम ) के साथ कुकर्म को अंजाम दिया उसके बाद तो कानून द्वारा किसी भी तरह कि रियायत पाने का वो हकदार भी नहीं था तो फिर उसे नाबालिग होने का फायदा क्यों दिया जा रहा है !
वैसे भी सरकार नें बलात्कार के कानून में अभी तक कोई बदलाव नहीं किया है और अगर बदलाव किया भी जाता है तो भी यही सच्चाई है कि वो दामिनी के मामले में लागू नहीं होगा क्योंकि जिस समय इस घटना को अंजाम दिया गया था उस दिन जो कानून लागू था सजा उसी आधार पर ही मिलनी है ! लेकिन दामिनी कि मौत के बाद उन अपराधियों को कड़ी सजा मिल सकती थी लेकिन न्यायालय के इस फैसले के बाद निश्चय ही निराशा हाथ लगी है और जो सबसे जघन्य आरोपी था उसके ही बचने कि साफ़ साफ़ गुंजाइश दिखाई दे रही है और ऐसा लग रहा है कि वो किसी बड़ी सजा से बच जाएगा !
सरकार को भी इस मामले से सबक लेते हुए नाबालिग कि उम्र के बारे में फिर से विचार करना चाहिए ताकि आगे से इस तरह कि स्थतियाँ ना आने पाए और जो घृणित अपराधों में सलिंग्न हो उनको सजा मिल सके ! और दिल्ली पुलिस को इस मामले को लेकर सुप्रीम कौर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए ताकि दामिनी को इन्साफ दिलाया जा सके !
10 टिप्पणियां :
..शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का .राष्ट्र जनों की बद्दुआ और आक्रोश खाली नहीं जाता है .
रही बात 17 साला छ :महिनी उस शातिर की पांच माह बाद क्या भारत को चार चाँद लगा देता .
अंधी देवी न्याय की, लगती डंडी-मार |
पलड़े में सौ छेद हैं, डोरी में व्यभिचार |
डोरी में व्यभिचार, तराजू इसका पुल्लिंग |
देता तभी नकार, रिंग खतरे की रिंगिंग |
अमरीका इंग्लैण्ड, जुर्म का करें आकलन |
कड़ी सजा दें देश, जेल हो उसे आमरण ||
घुन लगी न्याय व्यवस्था है !
धिक्कार है ऐसी न्यायव्यवस्था पर ,कितना आसान रास्ता है किसी का मर्डर करना हो तो किसी नाबालिग का सहारा ले लो ,वाह वाह भारतीय शासनतंत्र
क्या कहें, सब अंधेर नगरी चौपट राजा वाला हिसाब है हमारे देश में कानूनी व्यवस्था का जाने वाली चली गयी अब किसे परवाह है जो भी हो सो हो ....
"हद हो गई! इससे ज्यादा दुःख भरी खबर पिछले एक अरसे से मैंने नहीं सुनी कि दिल्ली दुष्कर्म का छठा आरोपी नाबालिग करार दिए जाने के कारण जल्द ही रिहा हो जाएगा।
मतलब 18 साल होने से एक दिन पहले तक हमारा कानून उसे बल्कि उसके जैसे अन्यों को भी केवल एक दूध पीता बच्चा ही मानता है, जिससे कोई अपराध हो नहीं सकता और अगर हो गया है तो उन्हें सुधरने के लिए वापिस समाज में भेज दिया जाना चाहिए। ऐसे लोगों के किसी भी तरह के जघन्य अपराध करने पर भी बहुत थोड़ी सी ही सजा दी जाती है, मतलब सज़ा ना देने के बराबर।
इस कानून को बदलने के लिए इन्साफ मिलने तक आन्दोलन चलाया जाना चाहिए,"
बालिग़ जब तक हो नहीं, चन्दा-तारे तोड़ ।
मनचाहा कर कृत्य कुल, बाहें रोज मरोड़ ।
बाहें रोज मरोड़, मार काजी को जूता ।
अब बाहर भी मूत, मोहल्ले-घर में मूता ।
चढ़े वासना ज्वार, फटाफट हो जा फारिग ।
फिर चाहे तो मार, अभी तो तू नाबालिग ।।
बहुत सही बात कही है आपने मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ? आप भी जाने इच्छा मृत्यु व् आत्महत्या :नियति व् मजबूरी
बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक प्रस्तुति मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ? आप भी जाने इच्छा मृत्यु व् आत्महत्या :नियति व् मजबूरी
बहुत दुःख है इस बात का , बहुत गुस्सा भी ........
~सादर!!!
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