उन्नीस जनवरी उन्नीस सौ नब्बे कि काली स्याह रात कश्मीरी पंडितों के लिए किसी खौफनाक रात से कम नहीं थी ! यही वो रात थी जब घाटी के मुस्लिम धर्म के धार्मिक स्थलों से पाकिस्तान परस्त लोगों ने हिंदुओं को जल्द से जल्द कश्मीर छोड़ने कि हिदायत दी जाने लगी और ऐसा नहीं करने पर परिणाम भुगतने कि धमकियां दी जाने लगी जिसका परिणाम ये हुआ कि अपने ही देश में कश्मीरी पंडित विस्थापित कि जिंदगी जीने पर मजबूर हो गये ! जिनका अपना सबकुछ था उसको लुटाकर आज वो शरणार्थी शिविरों की दयनीय जिंदगी जीने पर मजबूर हैं और विडम्बना देखिये कि इनको लेकर सरकारों और देश के बुद्धिजीवियों कि जमात को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है !
कश्मीरी पंडितों को लेकर केन्द्र सरकार और राज्य सरकार का रवैया भी सकारात्मक नहीं रहा है ! कहने को उमर अब्दुला ने जरुर कश्मीरी पंडितों से आग्रह किया था लेकिन अभी भी कश्मीरी पंडित भरोसा नहीं जुटा पा रहें है और उनका यह डर बेवजह भी नहीं है क्योंकि घाटी में कुछ लोग ही हैं जो कश्मीरी पंडितों को वापिस बुलाना चाहते हैं बाकी तो ज्यादातर उन लोगों कि तादात है जो नहीं चाहते हैं कि कश्मीरी पंडित वापिस घाटी में आयें ! वहाँ पर कश्मीरी पंडितों कि ज्यादातर सम्पतियों ,जमीनों पर कब्जा हो चूका है ऐसी हालात में जब तक सरकारें पहली वाली स्थति बहाल नहीं करवा पाती है तब तक केवल फौरी तौर पर आग्रह करने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है !!
कश्मीरी पंडितों का विस्थापन हर भारतीय के लिए पीड़ादायक है लेकिन शायद हमारी सरकारों को हर मुद्दे को राजनैतिक नजरिये से देखने कि आदत पड़ गयी है जिसमें वोटबैंक को तरजीह दी जाती है और कश्मीरी पंडित कोई बड़े वोटबैंक नहीं है इसीलिए सरकारों को कश्मीरी पंडितों के दर्द से कोई फर्क नहीं पड़ता है और केन्द्र और राज्य कि सरकारें दोनों के लिए कश्मीरी पंडित हाशिये पर चले गये !
6 टिप्पणियां :
सही भावनात्मक अभिव्यक्ति कलम आज भी उन्हीं की जय बोलेगी ...... आप भी जाने कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में .......
स्वार्थपरत्ता की अन्धता और कायरता दिखाने के दो ही परिणाम निकलते है, या तो पलायन या फिर गुलामी और हम हिन्दुस्तानी दोनों में ही माहिर है !
कहते हैं सत्ता पक्ष के प्रभावी परिवार की जड़ें कश्मीर में हैं-
अपनी जड़ों से जुड़ाव नहीं महसूस करते अब ये-
कहीं और से ही पा रही हैं खाद पानी -
मरे नानी ||
जड़ों का तो कोई ठिकाना ही नहीं है कि कहाँ से है इनकी जड़ें !!
भाई साहब !गृह मंत्री, भारत सरकार तो अब 'भारत धर्मी समाज 'को ही' कश्मीरी पंडित' बनाने पर आमादा है .आप भारत धर्मी समाज को पहले संकुचित अर्थों में 'हिन्दू' कहतें हैं फिर हिन्दू संगठन
फिर
आतंकवादियों का प्रशिक्षण स्थल . .पूर्व में उपाध्यक्ष कांग्रेस राहुल गांधी भी हिन्दू आतंकवाद को जिहादी आतंकवाद से ज्यादा खतरनाक बतला चुके हैं .इन अभागे सेकुलरों को नहीं मालूम -जिहादी
का धर्म क्या होता है .जिहादी इस्लाम की श्रेष्ठता के कायल हैं जो मुसलमान नहीं है इस्लाम को नहीं मानता वह काफिर है सर कलम कर दो उसका यही फरमान है इनका .फतुवा खोर नहीं हैं हिन्दू
और वृहद् हिन्दू समाज बोले तो भारत धर्मी समाज .हम बिलकुल नहीं कहते मुस्लमान आतंकी हैं अलबत्ता जो भी आतंकी पकड़ा जाता है मुसलमान ही निकलता है .हिन्दू आतंक प्रोएक्टिव पालिसी
नहीं हैं छिटपुट प्रतिक्रिया है मिस्टर टिंडे .
वह वक्र मुखी भोपाली बाज़ीगर फिर बोला है कहता है मैं जो बात दस सालों से कह रहा हूँ ,गृह मंत्री आज कह रहें हैं .यही ढोंग है जयपुर चिंतन शिविर का .
शुक्रिया आपकी ताज़ा टिपण्णी का
यह मेरे लेखन का सौभाग्य होगा !!
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