बुधवार, 14 अगस्त 2013

आखिर किश्तवाड़ हिंसा का सच क्या है !!

जम्मू के किश्तवाड़ में ९ अगस्त को हुयी हिंसा क्या पहले से प्रायोजित थी और कहीं यह वहाँ के अल्पसंख्यकों के विरुद्ध षड्यंत्र तो नहीं था ! जो बातें सामने आ रही है वो इसी और इशारा कर रही है और ऐसा कश्मीर घाटी में वहाँ के अल्पसंख्यकों के साथ पहले भी हो चूका है ! असल में जम्मू -कश्मीर में देशविरोधी तत्व सबसे ज्यादा सक्रीय हैं और वहाँ के अल्पसंख्यक उनके लिए आसान निशाना है जिससे की धार्मिक आधार पर कश्मीर के बहुसंख्यक लोगों को अपनें साथ जोड़ा जा सके !

किश्तवाड़ घटना के बारे में जैसा मायावती नें कहा कि एक समुदाय के लोगों को चुन चुनकर निशाना बनाया गया ! उनको मारा गया पीटा गया ! उनकी दुकानों और घरों को जलाया गया ! प्रशासन की तरफ से कोई कदम नहीं उठाया गया ! गृह राज्य मंत्री सज्जाद किचालू वहीँ था और आगजनी ,लूटपाट,हिंसा होती रही लेकिन गृह राज्य मंत्री बाहर नहीं निकला ! अगर वो चाहता तो कानून व्यवस्था की स्थति को संभाल सकता था ! लेकिन उसनें ऐसा नहीं किया ! और बसपा सुप्रीमो मायावती नें जो कहा है वो वहाँ जो हुआ वो बताने के लिए काफी है और उनका ये बयान अहम इसलिए भी है क्योंकि मायावती कांग्रेस और भाजपा की तरह धार्मिक राजनीति नहीं करती है !

हालांकि किश्तवाड़ में वहाँ के प्रशासन की नाकामी तो प्रथमदृष्टया ही दिखाई पड़ रही है लेकिन कहीं ये जान बूझकर बरती गयी ढिलाई तो नहीं थी ! इसका पता लगाना बहुत ही जरुरी है जैसा की उधमपुर के कांग्रेस सांसद लालसिंह का भी कहना है कि किश्तवाड़ में छ: घंटे तक जंगल राज रहा जिसमें दंगाइयों नें वहाँ के अल्पसंख्यक हिंदुओं के मकानों और कारोबारी ठिकानों को बुरी तरह तबाह किया ! भद्रवाह से कांग्रेस के ही सांसद नरेश गुप्ता नें सीधे सीधे मायावती की ही तरह किचालू को निशाने पर लेते हुए कहा कि यह सब किश्तवाड़ में किचालू की मौजूदगी में हुआ ! उसकी भूमिका की जांच होनी चाहिए ! दंगाइयों को बंदूके कहाँ से मिली और समय रहते कर्फ्यू क्यों नहीं लगाया गया !

मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

क्या रटे रटाए और सुने सुनाये बयानों को सुनना हमारी मज़बूरी है !!

देश के सामने स्थतियाँ बड़ी विकट है जिनको देश चलाने कि जिम्मेदारी दी वही देश को लुट रहे हैं ! अपनी जिम्मेदारियों में वो ना केवल नाकाम साबित हो रहें है वर्ना दीमक कि तरह देश को खोखला करते जा रहे है ! ना हमारी सीमाएं सुरक्षित है ना हमारे जंगल ,जमीं और नदियाँ सुरक्षित है ! आम आदमी भूख और भय के वातावरण में जी रहा है ! माँ,बहन बेटियाँ हमारी सुरक्षित नहीं है ! इसी देश के वाशिंदे शरणार्थी बनकर रहने को मजबूर है ! इतना सब सामने होते हुए भी हमें केवल और केवल उन्ही घिसे पीटे और रटे रटाए बयानों को सुनना पड़ता है जिनको हम कितनी बार आगे भी सुन चुके होते हैं !

क्या उन्ही बयानों से हमारा भला हो सकता है या फिर उन्ही बयानों को सुनना हमारी मज़बूरी है और हम क्या कुछ नहीं कर सकते हैं ! अगर हम इतने लाचार और मजबूर हैं तो फिर हम कैसे लोकतंत्र में जी रहें हैं ! दरअसल खराबी हमारे लोकतंत्र में नहीं है बल्कि हमारी सोच में है क्योंकि हम सहन करने के आदी हो गए हैं और हम अपने आप में इतने सिमट गए हैं कि हमें कहीं पर कुछ होता है तो उससे फर्क भी नहीं पड़ता है मानो हम तो गहरी नींद में सो रहे हो ! और कभी जागते हैं तो कुछ चीखना चिलाना और दोषारोपण करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं और फिर  गहरी नींद में सो जाते हैं ! और हमारी याददास्त तो इतनी कमजोर होती है कि जब वापिस किसी को देश चलाने कि जिम्मेदारी देने कि बात आती है तो हम सब कुछ भूल जाते हैं और हमें याद रहता है तो केवल यह कि उम्मीदवार किस जाति का है अथवा किस धर्म का है !

हमें अपनी गलतियां दिखाई नहीं देती और हम दूसरों पर दोषारोपण करते रहते हैं लेकिन यह एक शास्वत नियम है कि हमारी गलतियों कि सजा हमें भुगतनी ही होगी और वही हो रहा है ! इतिहास में झाँकने और उससे सबक लेना हमारी आदत नहीं है ! इतिहास गवाह है कि जिस पार्टी नें सता में रहते हुए धार्मिक कट्टरपंथ के आगे घुटने टेकते हुए सुप्रीम कौर्ट के फैसले को संविधान संसोधन द्वारा पलटकर देश की सभी मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों अथवा हकों का गला घोट दिया था आज हम उसी पार्टी से यह आशा कर कर रहें है और गुहार लगा रहे हैं कि वो महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करे ! जो पार्टी आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हो उसी से हम ये आशा करते हैं कि वो भ्रष्टाचार पर लगाम लगायेगी ! जिस पार्टी को यह दिखाई नहीं देता कि अपने ही देश के लोग शरणार्थी शिविरों में कैसे रह रहे हैं उसी से हम अपने और देश के बेहतर भविष्य कि आशा पाल रहें हैं ! अब इसे क्या हमारी मूर्खता नहीं कहा जाएगा !

रविवार, 20 जनवरी 2013

कश्मीरी पंडितों का दर्द यहाँ किसी को नहीं सालता है !!

उन्नीस जनवरी उन्नीस सौ नब्बे कि काली स्याह रात कश्मीरी पंडितों के लिए किसी खौफनाक रात से कम नहीं थी ! यही वो रात थी जब घाटी के मुस्लिम धर्म के धार्मिक स्थलों से पाकिस्तान परस्त लोगों ने हिंदुओं को जल्द से जल्द कश्मीर छोड़ने कि हिदायत दी जाने लगी और ऐसा नहीं करने पर परिणाम भुगतने कि धमकियां दी जाने लगी जिसका परिणाम ये हुआ कि अपने ही देश में कश्मीरी पंडित विस्थापित कि जिंदगी जीने पर मजबूर हो गये ! जिनका अपना सबकुछ था उसको लुटाकर आज वो शरणार्थी शिविरों की दयनीय जिंदगी जीने पर मजबूर हैं और विडम्बना देखिये कि इनको लेकर सरकारों और देश के बुद्धिजीवियों कि जमात को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है ! 

कश्मीरी पंडितों को लेकर केन्द्र सरकार और राज्य सरकार का रवैया भी सकारात्मक नहीं रहा है ! कहने को उमर अब्दुला ने जरुर कश्मीरी पंडितों से आग्रह किया था लेकिन अभी भी कश्मीरी पंडित भरोसा नहीं जुटा पा रहें है और उनका यह डर बेवजह भी नहीं है क्योंकि घाटी में कुछ लोग ही हैं जो कश्मीरी पंडितों को वापिस बुलाना चाहते हैं बाकी तो ज्यादातर उन लोगों कि तादात है जो नहीं चाहते हैं कि कश्मीरी पंडित वापिस घाटी में आयें ! वहाँ पर कश्मीरी पंडितों कि ज्यादातर सम्पतियों ,जमीनों पर कब्जा हो चूका है ऐसी हालात में जब तक सरकारें पहली वाली स्थति बहाल नहीं करवा पाती है तब तक केवल फौरी तौर पर आग्रह करने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है !!