भारतीय मीडिया समाज के हर तबके कि आवाज होने का दंभ भरता है और वो हर समय यह कहने से नहीं चुकता कि मीडिया समाज का आइना है लेकिन क्या सच में ऐसा है ! अगर स्वतंत्र विश्लेषण किया जाए तो ऐसा दूर दूर तक नजर नहीं आता है और ऐसा लगता है कि मीडिया खुद पूंजीपतियों के हाथों में खेलता हुआ एक खिलौना बन गया है !
में यहाँ भारतीय मीडिया कि ही बात करना चाहूँगा और कुछ बातों पर आपका ध्यान आकर्षित करने कि कोशिश जरुर करूँगा जो मेरी इस धारणा को मजबूत करती है कि मीडिया पूंजीपतियों के हाथों का खिलौना बन गया है ! किसान भारतीय समाज का अहम हिस्सा है और देश की जीडीपी का बड़ा हिस्सा कृषि से आता है लेकिन क्या मीडिया ने किसान कि उपेक्षा नहीं की है ! जो मीडिया शेयर बाजार में गिरावट आने पर जमीन आसमान एक कर देता है और इसके लिए सरकार पर दबाव बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता है ! वही मीडिया किसान कि फसलों के भाव कम होने सरकार पर दबाव बनाने कि बात तो छोडिये बल्कि उसको खबर भी नहीं बनाता है जिससे जाहिर है कि मीडिया केवल पूंजीपतियों के हित साधने का काम ही कर रहा है क्योंकि शेयर बाजार में पूंजीपतियों का ही पैसा लगा होता है कोई किसान तो शेयर बाजार में पैसा लगाता नहीं है ! फिर मीडिया कि यह दलील कैसे मान लें कि वो समाज के हर तबके कि आवाज है !
देश का दूसरा बड़ा तबका वो है जो मजदूरी करके अपनी आजीविका चलाता है जिसको मजदुर कहा जाता है ! लेकिन कभी भी मजदूरों कि समस्याओं को मीडिया नहीं उठाता है ! मैंने कभी नहीं देखा है कि कभी भी मीडिया कि प्राइम टाइम बहस का मुद्दा मजदुर रहें हो ! कभी मजदुर वर्ग कहीं पर अपनी मांगो को लेकर हड़ताल भी करते है तो भी उनकी मांगे और उनकी हड़ताल मीडिया कि ख़बरों का हिस्सा नहीं बन पाती है ! जो मीडिया फिल्म जगत ,राजनीति और क्रिकेट कि हर छोटी से छोटी खबर को दिनभर घुमाता रहता है वही मीडिया मजदूरों की बड़ी से बड़ी बातों को भी जनता और सरकार के सामने लाने क्यों हिचकता है !
देश में समाज के दो बड़े तबकों किसान और मजदुर हैं और इन दोनों के साथ ही मीडिया का सौतेला व्यवहार रहता है ! इनकी समस्याएं उठाने में मीडिया हमेशा विफल रहा है और इसी का ही परिणाम है कि आज इस देश का अन्नदाता खुद दयनीय हालात का सामना कर रहा है और मजदुर वर्ग कि हालत भी कोई ज्यादा अच्छी नहीं है ! यह आज कि सच्चाई है कि जिन बातों को मीडिया उठाता है उन बातों पर सरकार कि नजर भी जल्दी जाती है और जाहिर है जो बात सरकार के संज्ञान में जल्दी आएगी उस पर सरकार का रवैया भी सकारात्मक ही रहेगा !
19 टिप्पणियां :
मीडिया पर गुस्सा लाजिमी है
आखिर वह ऐसे मुद्दे क्यूँ नहीं लाते जिससे देश के किसानों की बिगड़ी स्थिति सुधारे ,,,,
पूरी तरह से सहमत हूँ आपसे ,,,
आभार !
सुस्वागतम !!
मीडिया सिर्फ अपने फायदे के लिए काम करती,आवाज मात्र बहाना है,,,
recent post : बस्तर-बाला,,,
agree with you बहुत सही बात कही है आपने कलम आज भी उन्हीं की जय बोलेगी ...... आप भी जाने @ट्वीटर कमाल खान :अफज़ल गुरु के अपराध का दंड जानें .
ना ना ना बिलकुल नहीं, इक संकुल का संग |
कहीं-कहीं पर तो दिखे, हरदम सत्ता संग |
हरदम सत्ता संग, मीडिया हित व्यापारिक |
भिन्न भिन्न हैं रंग, रोग सारे सांसारिक |
ढूंढे दाना-दान, कहीं डाले हैं दाना |
अपने मन की ठान, बढ़े मीडिया घराना |
भाईसाहब सबसे पहले आपकी सद्य टिपण्णी का आभार .आपकी टिपण्णी हमारे लेखन का ईंधन है इंजन है .
रही बात मीडिया की वह सरकार तो नहीं है (सरकार बोले तो अव्यवस्था )अलबता पक्ष विपक्ष ज़रूर है .जितने दल उतने चैनल .कौन्किस वेवलेंग्थ पर बोल रहा है किसका हित साधन कर रहा है
.आसानी से जाना जा सकता है .
अलबत्ता कुछ मुद्दे ज़रूर हैं जो राष्ट्रीय चेतना से जुड़े हैं जैसे 'अन्ना जी हैं' ,'निर्भया ' है ,गेम्चेंजर हैं ये शख्शियत .फिलवक्त अपेक्षाओं का केंद्र आम आदमी पार्टी भी है ,मोदी जी भी हैं इनकी उपेक्षा
करके मीडिया आत्म ह्त्या भी नहीं कर सकता है .
उत्तर से दक्षिण तक सबके चैनल हैं कहिये तो पार्टी वार नाम गिना दूं ?
भाईसाहब सबसे पहले आपकी सद्य टिपण्णी का आभार .आपकी टिपण्णी हमारे लेखन का ईंधन है इंजन है .
रही बात मीडिया की वह सरकार तो नहीं है (सरकार बोले तो अव्यवस्था )अलबता पक्ष विपक्ष ज़रूर है .जितने दल उतने चैनल .कौन्किस वेवलेंग्थ पर बोल रहा है किसका हित साधन कर रहा है
.आसानी से जाना जा सकता है .
अलबत्ता कुछ मुद्दे ज़रूर हैं जो राष्ट्रीय चेतना से जुड़े हैं जैसे 'अन्ना जी हैं' ,'निर्भया ' है ,गेम्चेंजर हैं ये शख्शियत .फिलवक्त अपेक्षाओं का केंद्र आम आदमी पार्टी भी है ,मोदी जी भी हैं इनकी उपेक्षा
करके मीडिया आत्म ह्त्या भी नहीं कर सकता है .
उत्तर से दक्षिण तक सबके चैनल हैं कहिये तो पार्टी वार नाम गिना दूं ?
आभार !!
शेयर मार्किट की उतार चडाओ देश की अर्थ व्यवस्था का सूचक नहीं.आपने सही कहा खंडेलवाल जी कि इसमें पूंजीपति का पैसा लगा है, किसी किसान का नहीं.इसलिए मार्किट उतार चडाओ से किसान को फर्क नहीं पड़ता अर्थात ८०% लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता.फिर यह भारतीय अर्थ
व्यवस्था का द्योतक कैसे हो सकता है?
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New post कुछ पता नहीं !!! (द्वितीय भाग )
आपकी बात से पूर्णतया सहमत हूँ इसीलिए तो मैंने अपने लेख में मीडिया को कठघरे में खड़ा किया है !!
पूरण जी सादर प्रणाम
सच कहा आपने वाकई मीडिया अपना कृतित्व सुधार नही रहा अपितु विगाड़ ही रहा है यह जो क्रान्तिकारी आवाज देने का साधन था जनता का दुःख दर्द राजमहल की दीवारों को भेदकर भीतर तक पहुँचाने का कार्य करता था उसने अपना कार्य राजमहलों की दीवारों से बाहर आवाजों को लाने का कर लिया है उसे जनता के दुःख दर्द की चिन्ता नही यह भी विका हुआ राजसी नक्कारखाना बन गया है सत्ता की अपनी खरीदी हुयी आवाज पहले पेपर या समाचार पत्र सत्ताऐं जब्त कर लेती थी अब समाचार चैनलों वाले सत्ता की जेब काट लेते हैं और सामान्य जनता में मीडिया बाले उगाही करते डोलते हैं हमारे यहाँ अनेकों पत्रकार विज्ञापन के लिए जनता को त्रस्त करते हैं और विज्ञापन न देने पर उसके खिलाफ निकालते हैं और अगर विज्ञापन दे दे तो वही व्यक्ति इमानदार बन जाता है।ये पत्रकार जनता को खुलेआम धमकी तक देते देखे जा सकते हैं इसीलिए आज इनकी कोई इज्जत भी नही रह गयी है इन्हैं पुलिसिया दलाल की संज्ञा से भूषित भी किया जाता है।मैने वहुत ही छोटे स्तर की बात उठाई है और उपर तो कई बार देखने में आता है कि समाज से पीड़ित की वीडियों बना लेने के बाबजूद अपराधी से कुछ सौदा हो जाने पर इस वीडियों को छुपा दिया जाता है तथा दिखाया भी नही जाता अनेकों दहेज हत्याओं में एसा होते हमने खुद ही देखा है।अतः मीडिया विस्वास के काविल नही रही कुछ अच्छे पत्रकार भी होंगे किन्तु वे वेचारे दुःखी है एक पत्रकार महोदय से मुलाकात हुयी तो उन्हौने अपना दर्द बताया खेर आपका लेख जनता की पीड़ा को इन गूँगों तक पहुँचा सके एसी आशा के साथ आपका लेख में अपनी समाचार साइट पर लगाउँगा आपकी साइट का लिंक भी वहाँ दूँगा जिससे लोग आपके विचारों को जान सकें
आपका आभार !!
आभार !!
सच है ...
शुभकामनायें !
बिल्कुल सच..मीडिया केवल वही मुद्दे उठाती है जिससे उसकी टी आर पी बढ़ने की संभावना हो...
सटीक आलेख...बहुत बहुत बधाई...
तहे दिल से शुक्रिया आपकी ताज़ा टिपण्णी के लिए .
तहे दिल से शुक्रिया आपकी ताज़ा टिपण्णी के लिए .निगमीकरण हो चुका है मीडिया का .कोई गणेश शंकर विद्यार्थी नहीं है अब न ही है एक मिशन पत्रकारिता अब .
बिलकुल सही कहा आपने ....सटीक ...
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