रविवार, 25 जुलाई 2021

कथित किसान आन्दोलन कब तक चलेगा !!

तीन कृषि कानूनों के विरोध में चल रहा कथित किसान आन्दोलन क्या अनंतकाल तक चलता रहेगा क्योंकि इसको लेकर सरकार और आन्दोलनकर्ता दोनों ही गंभीर नहीं है ! सरकार शुरू में आंदोलनकारियों को जरुर तवज्जो दे रही थी लेकिन धीरे धीरे सरकार को भी समझ में आ गया कि इस आन्दोलन के साथ किसान नहीं जुड़ रहे ! इसलिए जो वार्ता चल रही थी उससे भी सरकार अलग हो गयी जबकि आन्दोलन के मुखिया इस मृगतृष्णा में जी रहे थे कि किसानों के नाम पर वो सरकार से सबकुछ मनवा लेंगे ! 
 
किसी भी आन्दोलन के सफल होने की पहली शर्त होती है जनता का साथ और जनता उनके साथ होती है जो ईमानदार हो और आन्दोलन से जुडी बातों की जानकारी हो ! देश में ७०% आबादी किसानों की है और जब उनके बीच से ही सबसे पहले आन्दोलन की शोभा बढाने राजनितिक दलों के कार्यकर्ता गाँवों से निकले तो किसानों को समझ में आ गया कि आन्दोलन राजनितिक है ! आन्दोलन के कर्ताधर्ताओं में जो थे वो राजनितिक मोहरे और नेता थे जो किसानों को यह बताने में नाकामयाब रहे कि इन कानूनों में गलत क्या है ! वो केवल कानूनों को वापिस लेने पर अड़े रहे और सरकार वार्ता कर रही थी तभी कुछ नयी और मांगे सरकार के सामनें रख दी ! 
 
कोई भी सरकार इतनी नासमझ नहीं होती है जितनी ये लोग समझ रहे थे और सरकार को समझ में आ गया था कि किसानों का समर्थन इनको मिल नहीं रहा और इनका मकसद केवल सरकार को झुकाना है ! इसीलिए सरकार नें दौ टुक कह दिया कि कानून वापिस नहीं होंगे केवल चर्चा कानून की उन बातों पर होगी जिन पर आपति है ! अब इनको पूरी जानकारी ही नहीं थी तो ये उससे बचना ही चाहते थे इसलिए कानून वापिस लेने की उसी मांग पर अड़े रहे और इनके आन्दोलन का सम्मानजनक अंत नहीं हो सका ! आन्दोलन को चलते महीनों बीत गए और अभी कोई रास्ता निकलेगा ऐसा लगता नहीं है क्योंकि अब सरकारी दमन एकमात्र रास्ता बचा है जिसको सरकार अपनाना नहीं चाहती ! 

शनिवार, 19 जनवरी 2013

मीडिया: क्या वाकई देश के हर तबके कि आवाज है !!

भारतीय मीडिया समाज के हर तबके कि आवाज होने का दंभ भरता है और वो हर समय यह कहने से नहीं चुकता कि मीडिया समाज का आइना है लेकिन क्या सच में ऐसा है ! अगर स्वतंत्र विश्लेषण किया जाए तो ऐसा दूर दूर तक नजर नहीं आता है और ऐसा लगता है कि मीडिया खुद पूंजीपतियों के हाथों में खेलता हुआ एक खिलौना बन गया है !

में यहाँ भारतीय मीडिया कि ही बात करना चाहूँगा और कुछ बातों पर आपका ध्यान आकर्षित करने कि कोशिश जरुर करूँगा जो मेरी इस धारणा को मजबूत करती है कि मीडिया पूंजीपतियों के हाथों का खिलौना बन गया है ! किसान भारतीय समाज का अहम हिस्सा है और देश की जीडीपी का बड़ा हिस्सा कृषि से आता है लेकिन क्या मीडिया ने किसान कि उपेक्षा नहीं की है ! जो मीडिया शेयर बाजार में गिरावट आने पर जमीन आसमान एक कर देता है और इसके लिए सरकार पर दबाव बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता है ! वही मीडिया किसान कि फसलों के भाव कम होने सरकार पर दबाव बनाने कि बात तो छोडिये बल्कि उसको खबर भी नहीं बनाता है  जिससे जाहिर है कि मीडिया केवल पूंजीपतियों के हित साधने का काम ही कर रहा है क्योंकि शेयर बाजार में पूंजीपतियों का ही पैसा लगा होता है कोई किसान तो शेयर बाजार में पैसा लगाता नहीं है ! फिर मीडिया कि यह दलील कैसे मान लें कि वो समाज के हर तबके कि आवाज है !