रविवार, 6 जनवरी 2013

दामिनी के दोस्त का बयान और शर्मशार मानवता !!

बलात्कार पीडिता मृतका दामिनी ( परिवर्तित नाम ) के दोस्त ने जो आपबीती  जी न्यूज के माध्यम से देश के सामने रखी वो हर किसी को कठघरे में खड़ा करती है ! उसके बयानों ने बाद पुलिस और समाज दोनों का सर शर्म से झुक जाना चाहिए ! पुलिस पर तो शुरू से ही सवाल उठ रहे थे लेकिन अब समाज के वे लोग भी सवालों के घेरे में है जिन्होंने देखकर भी अनदेखा किया !

पुलिस पर तो उसने सवाल खड़े किये ही हैं और बताया है कि कैसे पुलिस की तीन तीन पीसीआर वेन वहाँ पहुँचती है और घायलों को तुरंत अस्पताल पहुँचाने कि बजाय मौके पर इस बात का फैसला करने लगती है कि वो इलाका किस थाने के अंतर्गत आता है जहां पर यह घटना घटी है और इसका फैसला करने में उन पुलिस वालों को पैंतालीस मिनट से ज्यादा का समय लग जाता है  जो पुलिस की लचर कार्यप्रणाली को दर्शाता है ! इतना होने के बाद पुलिस को अपने अंदर झांकना चाहिए था और अपनी गलतियों को दुरुस्त करने कि और ध्यान देना चाहिए था लेकिन लगता है दिल्ली पुलिस अपने अंदर झांकना ही नहीं चाहती है और उसने उल्टा उस लड़के के इंटरव्यू को दिखाने के लिए जी न्यूज पर ही केस कर दिया जिसको सीधा सीधा मीडिया पर दबाव बनाना माना जा सकता है !


उसके इंटरव्यू में कही गयी बातों में समाज को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है और समाज को आइना दिखा दिया है कि हम कितने खुदगर्ज हो गए हैं ! हमारे लिए मानवता कोई मायने नहीं रखती और मुसीबत में पड़े लोगों कि तरफ देखना तक हमको गवारा नहीं ! क्या किसी घायल व्यक्ति कि मदद करना भी हमको नहीं आता है ! मदद करना तो दूर उल्टा उन पर हँसते हुए अपने रास्ते निकल लेने में ही भलाई समझतें हैं क्या इसी को मानव धर्म कहते हैं ! शायद मानवता का हमारे लिए कोई अर्थ नहीं रह गया है ! आज जरुरत है समाज को अपने अंदर झाँकने की और अपने अंदर आई कमियों को दूर करने की वर्ना कोई मतलब नहीं रह जाएगा विरोध प्रदर्शनों का क्योंकि उनसे सरकारों पर तो दबाव बनाया जा सकता है लेकिन अगर समाज खुद नहीं सुधरेगा तो कितने भी कानून बना लेने से कोई फायदा नहीं होने वाला है ! 

उसके बयानों ने पुलिस ,समाज और अस्पताल सबको कठघरे में खड़ा कर दिया है अब देखना यह है कि आगे कुछ सुधार होता है या फिर वही भूलने वाली बीमारी के शिकार हो जातें हैं !!

9 टिप्‍पणियां :

रविकर ने कहा…

दुनिया भागमभाग में, घायल पड़ा शरीर |
सुने नहीं कोई वहां, करे बड़ी तकरीर |
करे बड़ी तकरीर, सोच क्या बदल चुकी है |
नहीं बूझते पीर, निगाहें आज झुकी हैं |
सामाजिक कर्तव्य, समझना होगा सबको |
अरे धूर्तता छोड़, दिखाना है मुँह रब को ||

Shalini kaushik ने कहा…

बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति @मोहन भागवत जी-अब और बंटवारा नहीं .


पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

यह मेरे लेख का सौभाग्य है !!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

हालांकि लोगो की मानसिकता भी ऐसी परिस्थितयों के लिए जिम्मेदार है मगर क़ानून का खौफ और हमारे सिस्टम की भ्रष्टाचारी भी एक आम इन्सान को अपना फर्ज अदा करने से रोकती है। इसमें सरकार ज्यादा जिम्मेदार है।

Ayaz ahmad ने कहा…

आज भारत में हज़ारों ऐसे गुरू हैं जो अपने ईश्वर और ईश्वर का अंश होने का दावा करते हैं और भारत क़र्ज़ में दबा हुआ भी है और क्राइम का ग्राफ़ भी लगातार बढ़ता जा रहा है। अगर उनसे कहा जाए कि आप इतने सारे लोग साक्षात ईश्वर हैं तो भारत का क़र्ज़ ही उतार दीजिए या बलात्कार-जुर्म का ख़ात्मा ही कर दीजिए ....

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आपका कहना कुछ हद तक सही है लेकिन कानून के खौफ को इतना भी हावी नहीं होने दिया जाना चाहिए कि किसी कि मदद भी ना कर सके !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

दावा करने और होने में बहुत फर्क है मुर्ख वो लोग है जो इनकी बातों में आते हैं !!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…


मानवता की दौड़ में, हार गये इंसान।
देश-वेश परिवेश में, जीत गये हैवान।।