शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

आतंकवाद से लड़ना है तो ख़ुफ़िया तंत्र को मजबूत करना ही होगा !!

आतंकवादी घटनाएं हमारे देश में रुकने का नाम नहीं ले रही है और आतंकवादी अपने नापाक मंसूबों में एक बार फिर कामयाब हो गये हैं ! इसके बाद हमारे सत्ताधीशों द्वारा वही रटे रटाये बयान आयेंगे कि हम आतंकवाद को बर्दास्त नहीं करेंगे लेकिन क्या केवल बयान देने भर से आतंकवाद पर लगाम लग पाएगी ! हमारे सत्ताधीशों के कार्यकलापों को देखकर तो यह कतई नहीं लगता कि आतंकवाद को लेकर वो संजीदा भी है ! उनके लिए आतंकवाद केवल बयानबाजी का मामला है और आतंकवाद को लेकर किस तरह कि बयानबाजी से उनके वोटों में इजाफा हो सकता है यही सोचकर बयानबाजी की जाती है ! सत्तापक्ष हो या विपक्ष सबका आतंकवाद पर अपने अपने वोटों के हिसाब से बयान देते रहते हैं !

देश कि आंतरिक सुरक्षा का दायित्व गृहमंत्री का होता है लेकिन हमारे वर्तमान गृहमंत्री ने पिछले दिनों जिस तरह से आतंकवाद को लेकर हल्की बयानबाजी की थी उससे यह तो पता चलता हि है कि आतंकवाद को लेकर वो कितने गंभीर हैं और उनसे पहले के गृहमंत्री भी आतंकवाद को लेकर विवादों में रहते आये हैं जिसका लबोलुआब देखा जाए तो वो यह है कि हमारे सताधिशों के लिए आतंकवाद पर कैसे काबू पाया जाए इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह होता है कि आतंकवाद को वोटों के धुर्वीकरण के लिए कैसे इस्तेमाल किया जाए और यही कारण है कि आतंकवाद को लेकर कोई कड़ा रुख देखने में नहीं आता है ! 


हम हर आतंकवादी घटनाओं के लिए पडोसी देश को जिम्मेदार ठहरा देते हैं और अपने कर्तव्य कि इतिश्री बस कुछ चंद लोगों कि गिरप्तारी करके कर लेते हैं ! लेकिन हर कोई जानता है कि पडोसी देश नें तो आतंकवाद को भारत के खिलाफ हथियार बना रखा है और उसका बखूबी इस्तेमाल कर रहा है लेकिन हम क्या कर रहें हैं ! क्या हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है ! हमारा ख़ुफ़िया तंत्र को हर बार विफलता हाथ हि हाथ लगती है उसके बावजूद ना तो उस विफलता के लिए किसी कि जिम्मेदारी तय की जाती है और ना हि ख़ुफ़िया तंत्र को चुस्त दुरुस्त करने कि दिशा में कोई कदम उठाये जाते हैं ! हमारे यहाँ कि विडम्बना देखिये कि जिन लोगों पर हमारे ख़ुफ़िया तंत्र को चुस्त दुरुस्त करने कि जिम्मेदारी है वो लोग तो यह मानने को भी तैयार नहीं होतें हैं कि हमारा ख़ुफ़िया तंत्र नाकाम हुआ है और जब साफगोई से वो मानने को भी तैयार नहीं है तो सुधार कि आशा कैसे की जा सकती है !


अमेरिकी में आतंकवादी हमला हुआ था तो खुले तौर पर वहाँ के सताधिशों नें यह माना था कि हां हमारा ख़ुफ़िया तंत्र नाकाम हुआ है और दुबारा ऐसा नहीं हो इसके लिए कदम उठाये जायेंगे और अमेरिका ने कदम भी उठाये जिसके कारण ग्यारह सितम्बर के बाद अमेरिका पर कोई आतंकवादी हमला अभी तक नहीं हो पाया है और दूसरी तरफ हमारे यहाँ साफगोई का बिलकुल अभाव है और हम ये मानने को भी तैयार नहीं है कि हमारा ख़ुफ़िया तंत्र नाकाम हुआ है तो जाहिर है कि हम ये मान भी नहीं रहें हैं कि ख़ुफ़िया तंत्र नाकाम हुआ है तो फिर उसमें सुधार कि गुंजाइश का तो सवाल हि कहाँ से आएगा ! 

अगर आतंकवाद से मुकाबला करना है तो हमें हमारे ख़ुफ़िया तंत्र को विकसित करना हि होगा वर्ना हम आतंकवाद का मुकाबला करने में हर बार नाकाम हि रहेंगे ! हम अंदरूनी और बाहरी दोनों तरह कि खुफिया सूचनाएं प्राप्त करनें में नाकाम रहते हैं और थोड़ी बहुत सूचनाएं प्राप्त करतें भी है तो वो इतनी नाकाफी होती है कि उनसे इस तरह कि घटनाओं को रोका जा सके और ख़ुफ़िया तंत्र कि इस नाकामी कि कीमत मासूम निरपराध लोगों को चुकानी पड़ती है ! इसलिए हमारा ध्यान सबसे पहले ख़ुफ़िया तंत्र को विकसित और चुस्त दुरुस्त करने कि तरफ होना चाहिए ! तभी हम आतंकवाद से मुकाबला कर पायेंगे वर्ना इसी तरह मासूम लोग अपनी जानें गंवाते रहेंगे !

15 टिप्‍पणियां :

रविकर ने कहा…

आतंकवाद से लड़ने के लिए बहुत जरुरी -
सुन्दर अभिव्यक्ति |
आभार ||

Unknown ने कहा…

आतंकबाद पर विचार करता शानदार लेख।

नेता जी की परलोक गाथा

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

श्रीमती वन्दना गुप्ता जी आज कुछ व्यस्त है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी चर्चा मंच पर सम्मिलित किया जा रहा है।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (23-02-2013) के चर्चा मंच-1164 (आम आदमी कि व्यथा) पर भी होगी!
सूचनार्थ!

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपने बिलकुल ठीक लिखा है, कल की घटना के बाद ख़ुफ़िया तंत्र को और मजबूत करने की ज़रूरत है।

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर विशेष लेख : भारत की प्रमुख भाषाएँ।
महात्मा गाँधी की प्रतिमा और इंदिरा गाँधी शांति पुरस्कार।

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

नेता आतंक बाद को उतना महत्त्व नहीं देता जितना वोट बैंक को देता है यही कारण है कि आतंक रुक नहीं पा रहा है.
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ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

आज की ब्लॉग बुलेटिन अरे रुक जा रे बंदे ... अरे थम जा रे बंदे - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

सुन्दर लेख | कुछ न कुछ तो करना होगा | सादर आभार

Shalini kaushik ने कहा…

khufiya tantr kya kare jab dono deshon ke neta hi aapas me sab tay kare rahte hon ki ab kya hona chahiye .dono deshon me satta hasil karne ko koi bhi neta fixing kar sakta hai aur karta bhi hai .

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

sundar avam vicharniy lekh

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

यह मेरे लेख का सौभाग्य है आपका आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सादर आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

नेताओं के बारे में तो अब शायद कुछ कहना भी बेकार है !!
आभार !!