मंगलवार, 9 जुलाई 2013

जानलेवा लापरवाही के लिए जिम्मेदारी तय होनी चाहिए !!

हमारे देश की व्यवस्था संभाल रहे लोग जब लापरवाही बरतते हैं तो उन पर कारवाई क्यों नहीं होनी चाहिए ! और लापरवाही ऐसी हो जिसके कारण लोगों की जानें चली जाती है तब तो मामला और ही संगीन हो जाता है और ऐसे मामलों में तो लापरवाही के लिए जिम्मेदार लोगों के विरुद्ध आपराधिक मामले दर्ज किये जाने चाहिए और उनकी जानलेवा लापरवाही के लिए उनको सजा दिलाने का प्रयास किया जाना चाहिए ! लेकिन हमारे यहाँ होता इसका उल्टा है और लापरवाही के लिए जिम्मेदार लोग साफ़ बच कर निकल जाते हैं !

हम हर आतंकवादी घटना के बाद ख़ुफ़िया तंत्र की नाकामी का रोना रोते हैं और सारा दोष ख़ुफ़िया तंत्र पर डाल देते हैं ! लेकिन खुफिया तंत्र की चेतावनी के बावजूद राज्य सरकारें और वहाँ की पुलिस सतर्क नहीं होती है और आतंकवादी अपने नापाक इरादों को अंजाम दे जाते हैं ! और ऐसा नाकामी के कारण नहीं होता बल्कि उस लापरवाही के कारण होता है जिसमें ख़ुफ़िया विभाग की चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया जाता है ! अभी बिहार में महाबोधि मंदिर में हुए बम धमाके हो या फिर इससे पहले आंध्रप्रदेश के हैदराबाद हुए बम धमाकों की बात हो ! दोनों जगहों पर हुयी वारदातों से पहले ख़ुफ़िया विभाग नें इस तरह की जानकारियाँ दे दी थी ! लेकिन इसके बावजूद धमाकों को नहीं रोका जा सका और उसका कारण एक ही था कि ख़ुफ़िया विभाग की चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया गया !

इसी तरह हमनें उतराखण्ड में देखा कि मौसम विभाग द्वारा दी गयी चेतावनी को नजरंदाज किया गया और उसके बाद उत्तराखण्ड में जो हुआ वो तो सबको पता ही है ! अगर मौसम विभाग की चेतावनी को गंभीरता से लिया जाता और उसी चेतावनी को ध्यान में रखकर चारधाम की यात्रा रोक दी जाती तो हजारों लोगों को मौत के मुहं में जाने से बचाया जा सकता था ! लेकिन ऐसा नहीं किया गया और मौसम विभाग की लिखित चेतावनी की अनदेखी करने के लिए और हजारों लोगों को मौत के मुहं में धकेलने के लिए कोई तो जिम्मेदार रहा ही होगा ! 

बुधवार, 22 मई 2013

सत्ता परिवर्तन से क्या पाकिस्तान की नियत बदल जायेगी !!

पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन होनें पर क्या पाकिस्तान और भारत के रिश्तों में कोई सुधार आएगा और क्या पाकिस्तान बदल जाएगा ! भारत के हुक्मरानों की पाकिस्तान के प्रति गर्मजोशी देखकर तो ऐसा हि लगता है कि पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन होते ही भारत पाकिस्तान के रिश्तों में बहुत बड़ा बदलाव आ जाएगा ! भारतीय प्रधानमंत्री नें पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री के सत्ता सँभालने से पूर्व ही भारत आने का न्यौता तक दे डाला और भारतीय प्रधानमंत्री के न्यौते को तो औपचारिकता के तौर पर माना जा सकता है ! लेकिन अब तो बिहार के मुख्यमंत्री भी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को बिहार आने का न्यौता दे रहें हैं ! अब भला उनसे कोई पूछे कि बिहार क्या भारत से अलग है और अगर बिहार भारत में ही है तो फिर उनको अलग न्यौता देनें की क्या जरुरत पड़ी ! लेकिन वोटबैंक की राजनीति जो ना करवाए वही कम है ! 

पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन तो होता हि आया है ! और पाकिस्तान बनने के बाद से अब तक के भारत पाकिस्तान के रिश्तों पर नजर डालें तो यही पता चलता है कि पाकिस्तान में सता परिवर्तन का दोनों देशों के आपसी रिश्तों में किसी तरह का परिवर्तन होता नहीं है ! फिर हम इस बार इतने आशान्वित क्यों है ! और ऐसा भी नहीं है कि इस बार पाकिस्तान की सत्ता पर कोई ऐसा राजनेता बैठ रहा है जिससे भारत को किसी तरह की आशा दिखाई देती है ! पाकिस्तान की सत्ता पर इस बार भी वही नवाज शरीफ बैठ रहे हैं जिनके शासनकाल में पहले भी पाकिस्तान भारत को कारगिल युद्ध का घाव दे चूका है और हमनें अपने चार सौ से ज्यादा बहादुर सैनिकों की शहादत का बोझ पाकिस्तान के नापाक मनसूबे के चलते उठाया था ! फिर हम क्यों इतने आशान्वित हैं !

दरअसल हमारी सरकारों का पाकिस्तान को लेकर हमेशा हि ढुलमुल रवैया रहता है और हम रिश्ते सुधारने की ऐसी इकतरफा चाहत दिखाने लग जाते हैं जिसका परिणाम यह है कि पाकिस्तान यह समझ बैठा है कि कुछ भी होगा तो कुछ दिन भारत दिखावे का विरोध करेगा और फिर भूल जाएगा और वही हो रहा है ! अभी कुछ दिन हि नहीं गुजरे हैं जब पाकिस्तान नें हमारे दो सैनिकों के सर काट दिए थे और उसके बाद देश की जनता के गुस्से को देखते हुए हमारी सरकार नें कहा था कि अब पाकिस्तान के साथ रिश्ते सामान्य नहीं रह सकते लेकिन वो बात जबानी जमाखर्च के सिवाय नजर नहीं आई और उसके बाद सरबजीत वाला मामला हो गया लेकिन जिस तरह से पाकिस्तान के नए प्रधानमन्त्री को भारत आने का न्यौता दिया जा रहा है उससे तो सन्देश यही जा रहा है कि हम वाकई गंभीर नहीं है !

मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

क्या रटे रटाए और सुने सुनाये बयानों को सुनना हमारी मज़बूरी है !!

देश के सामने स्थतियाँ बड़ी विकट है जिनको देश चलाने कि जिम्मेदारी दी वही देश को लुट रहे हैं ! अपनी जिम्मेदारियों में वो ना केवल नाकाम साबित हो रहें है वर्ना दीमक कि तरह देश को खोखला करते जा रहे है ! ना हमारी सीमाएं सुरक्षित है ना हमारे जंगल ,जमीं और नदियाँ सुरक्षित है ! आम आदमी भूख और भय के वातावरण में जी रहा है ! माँ,बहन बेटियाँ हमारी सुरक्षित नहीं है ! इसी देश के वाशिंदे शरणार्थी बनकर रहने को मजबूर है ! इतना सब सामने होते हुए भी हमें केवल और केवल उन्ही घिसे पीटे और रटे रटाए बयानों को सुनना पड़ता है जिनको हम कितनी बार आगे भी सुन चुके होते हैं !

क्या उन्ही बयानों से हमारा भला हो सकता है या फिर उन्ही बयानों को सुनना हमारी मज़बूरी है और हम क्या कुछ नहीं कर सकते हैं ! अगर हम इतने लाचार और मजबूर हैं तो फिर हम कैसे लोकतंत्र में जी रहें हैं ! दरअसल खराबी हमारे लोकतंत्र में नहीं है बल्कि हमारी सोच में है क्योंकि हम सहन करने के आदी हो गए हैं और हम अपने आप में इतने सिमट गए हैं कि हमें कहीं पर कुछ होता है तो उससे फर्क भी नहीं पड़ता है मानो हम तो गहरी नींद में सो रहे हो ! और कभी जागते हैं तो कुछ चीखना चिलाना और दोषारोपण करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं और फिर  गहरी नींद में सो जाते हैं ! और हमारी याददास्त तो इतनी कमजोर होती है कि जब वापिस किसी को देश चलाने कि जिम्मेदारी देने कि बात आती है तो हम सब कुछ भूल जाते हैं और हमें याद रहता है तो केवल यह कि उम्मीदवार किस जाति का है अथवा किस धर्म का है !

हमें अपनी गलतियां दिखाई नहीं देती और हम दूसरों पर दोषारोपण करते रहते हैं लेकिन यह एक शास्वत नियम है कि हमारी गलतियों कि सजा हमें भुगतनी ही होगी और वही हो रहा है ! इतिहास में झाँकने और उससे सबक लेना हमारी आदत नहीं है ! इतिहास गवाह है कि जिस पार्टी नें सता में रहते हुए धार्मिक कट्टरपंथ के आगे घुटने टेकते हुए सुप्रीम कौर्ट के फैसले को संविधान संसोधन द्वारा पलटकर देश की सभी मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों अथवा हकों का गला घोट दिया था आज हम उसी पार्टी से यह आशा कर कर रहें है और गुहार लगा रहे हैं कि वो महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करे ! जो पार्टी आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हो उसी से हम ये आशा करते हैं कि वो भ्रष्टाचार पर लगाम लगायेगी ! जिस पार्टी को यह दिखाई नहीं देता कि अपने ही देश के लोग शरणार्थी शिविरों में कैसे रह रहे हैं उसी से हम अपने और देश के बेहतर भविष्य कि आशा पाल रहें हैं ! अब इसे क्या हमारी मूर्खता नहीं कहा जाएगा !

शनिवार, 23 मार्च 2013

संजय दत्त की सजा को लेकर मीडिया में बेबात का बवाल !!

जब से संजय दत्त कि सजा पर सुप्रीम कोर्ट से मुहर लगी है तब से लेकर अब तक कई लोगों ने इस पर अपनी राय जाहिर की है ! और कई लोगों नें संजय दत्त कि सजा माफ करनें कि  राय देनी शुरू कर दी है और ऐसे लोगों में नेताओं और बोलीवुड से जुड़े लोगों के अलावा अन्य लोगों नें भी अपनी राय दी ! लेकिन सवाल उठता है कि संजय दत्त को माफ़ी क्यों दी जानी चाहिए ! उन्होंने जो अपराध किया है उसकी सजा उन्हें क्यों नहीं मिलनी चाहिए ! और इससे बड़ा सवाल भी यह उठता है कि ऐसी ही मांग आज तक उन लोगों नें किसी साधारण आदमी के लिए क्यों नहीं की और नहीं की तो उनकी मांग क्या किसी आम और खास को ध्यान में रखकर नहीं की जा रही है !

ऐसी मांग करनें वालों लोगों में जब जस्टिस काटजू खड़े नजर आये तब तो और भी अफ़सोस हुआ क्योंकि काटजू नें ऐसी मांग रखते हुए महाराष्ट्र के राज्यपाल को संजय दत्त कि माफ़ी के लिए सलाह तक दे डाली जो निश्चय ही दुर्भाग्यपूर्ण ही कही जायेगी क्योंकि काटजू सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रह चुके हैं ऐसे में उन्हें पता होना चाहिए कि वो ऐसा करनें कि सलाह देकर एक आम और खास अपराधी में भेदभाव का सन्देश देश को दे रहें हैं ! वैसे भी संजय दत्त के बजाय यही जुर्म किसी अन्य साधारण आदमीं ने किया होता तो उसे केवल हथियार रखनें का आरोपी पुलिस द्वारा नहीं बनाया जाता बल्कि उसको आतंकवादियों से सम्बन्ध रखने का आरोपी और बना दिया जाता लेकिन संजय दत्त को केवल अवैध रूप से हथियार रखनें का ही आरोपी बनाया गया है ! जबकि दाऊद इब्राहिम और छोटा शकील जैसे लोगों से संजय दत्त कि दोस्ती कि बात खुद संजय दत्त भी कबूल कर चूका है !

संजय दत्त कि माफ़ी के पक्ष में जितनें भी तर्क दिए जा रहें है उनमें कोई सा भी तर्क ऐसा नहीं है जो बाकी अपराधियों पर नहीं लागू होता है ! संजय दत्त कि सजा माफ़ी के पक्ष में एक तर्क तो ये दे रहें है कि इतनें सालों तक संजय दत्त इस मामले को लेकर परेशान रहे हैं इसलिए उनको मानवीय आधार पर माफ कर दिया जाना चाहिए ! लेकिन जितने सालों तक अदालती कारवाई चलती है उतने वर्षों तक तो हर अपराधी ही इस पीड़ा से गुजरता है तो फिर संजय दत्त कि ही सजा को क्यों माफ कर दिया जाना चाहिए जबकि बाकी अपराधी इस पीड़ा को झेलनें के बाद भी सजा भुगतते है ! दूसरा तर्क ये दिया जा रहा है कि संजय दत्त को जेल भेजे जानें कि सजा उसके परिवार को भी मानसिक पीड़ा झेल कर भुगतनी होती है तो मुझे नहीं लगता कि अन्य जितनें भी अपराधी सजा भुगतते हैं उनके पारिवारिक लोगों के अंदर मानसिक भावनाएं नहीं होती होगी !

रविवार, 10 मार्च 2013

दरगाह दीवान भी भारत सरकार से तो अच्छे हैं !!


पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कि ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती कि दरगाह पर जियारत करने को लेकर की गयी यात्रा खासी विवादास्पद रही और पाकिस्तान नें भारत के साथ जिस तरह का व्यवहार किया और जिस तरह से पाकिस्तानी सेना के द्वारा दो भारतीय सैनिकों के बेरहमी से सिर काटकर उनको शहीद किया गया था और उस पर पाकिस्तान कि सरकार नें किसी तरह कि कोई कारवाई नहीं की ! उसके बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का भारत दौरे का विरोध होना अवश्यम्भावी था !

भारत सरकार का ढुलमुल रवैया हर बार की तरह इस बार भी दिखाई दिया और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का यह निजी दौरा होने के बावजूद भारतीय विदेश मंत्री का वहाँ जाना और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के भोज में शामिल होना भारत सरकार के रवैये पर कई तरह के प्रश्नचिन्ह लगा रहा है ! अगर यह पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का निजी दौरा था तो किसी भी भारतीय मंत्री को वहाँ जाने कि क्या आवश्यकता थी ! वो भी उस हालत में जब हर भारतवासी के सीने में पाकिस्तानी सेना द्वारा दिए गए घाव नासूर कि तरह चुभ रहें है !

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

आतंकवाद से लड़ना है तो ख़ुफ़िया तंत्र को मजबूत करना ही होगा !!

आतंकवादी घटनाएं हमारे देश में रुकने का नाम नहीं ले रही है और आतंकवादी अपने नापाक मंसूबों में एक बार फिर कामयाब हो गये हैं ! इसके बाद हमारे सत्ताधीशों द्वारा वही रटे रटाये बयान आयेंगे कि हम आतंकवाद को बर्दास्त नहीं करेंगे लेकिन क्या केवल बयान देने भर से आतंकवाद पर लगाम लग पाएगी ! हमारे सत्ताधीशों के कार्यकलापों को देखकर तो यह कतई नहीं लगता कि आतंकवाद को लेकर वो संजीदा भी है ! उनके लिए आतंकवाद केवल बयानबाजी का मामला है और आतंकवाद को लेकर किस तरह कि बयानबाजी से उनके वोटों में इजाफा हो सकता है यही सोचकर बयानबाजी की जाती है ! सत्तापक्ष हो या विपक्ष सबका आतंकवाद पर अपने अपने वोटों के हिसाब से बयान देते रहते हैं !

देश कि आंतरिक सुरक्षा का दायित्व गृहमंत्री का होता है लेकिन हमारे वर्तमान गृहमंत्री ने पिछले दिनों जिस तरह से आतंकवाद को लेकर हल्की बयानबाजी की थी उससे यह तो पता चलता हि है कि आतंकवाद को लेकर वो कितने गंभीर हैं और उनसे पहले के गृहमंत्री भी आतंकवाद को लेकर विवादों में रहते आये हैं जिसका लबोलुआब देखा जाए तो वो यह है कि हमारे सताधिशों के लिए आतंकवाद पर कैसे काबू पाया जाए इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह होता है कि आतंकवाद को वोटों के धुर्वीकरण के लिए कैसे इस्तेमाल किया जाए और यही कारण है कि आतंकवाद को लेकर कोई कड़ा रुख देखने में नहीं आता है ! 

बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

यासीन मलिक और हाफिज सईद का मेल चिंताजनक !!

जिस तरह से कश्मीर के अलगाववादी नेता और जेकेएलएफ सरगना यासीन मलिक और लश्करे तैयबा के मुखिया हाफिज सईद को इस्लमाबाद में एक हि मंच पर देखा गया ! यह बेहद गंभीर मामला है और सरकारी सूत्रों से यह भी पता चल रहा है कि यासीन मालिक के विरुद्ध कारवाई भी हो सकती है ! लेकिन सवाल उठता है कि यासीन मलिक जैसे लोग भारत में रहकर भी भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम कैसे दे रहे हैं !

जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक हो या फिर हुर्रियत के मीरवाइज़ फारुख उमर और सैयद अली शाह गिलानी हो इन्होने समय समय पर भारत में रहकर भी ये भारत विरोधी आग उगलते रहते हैं और भारत सरकार मूकदर्शक बनी रहती है ! जिसका परिणाम हि यह है कि आज मलिक जैसे लोग आज खुलेआम हाफिज सईद जैसे लोगों के साथ दिखाई दे रहे हैं और वो भी संसद हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी के विरोध में हुयी भूख हड़ताल के मंच पर दिखाई देते है इससे ज्यादा संगीन मामला और क्या हो सकता है !

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

अफजल कि फांसी और राजनीति का गहरा संबंध है !!

अफजल गुरु को फांसी होनी हि थी और वो हो गयी लेकिन इसको लेकर जो राजनैतिक दांव आजमाए गये उसके बाद भी सरकार के मंत्री और कांग्रेस के नेता जो कह रहे है कि अफजल को फांसी में राजनीति नहीं हुयी है बल्कि कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया है वो हास्यास्पद हि कहा जाएगा ! अफजल के मामले में सरकार खुद अपने हि बयानों को लेकर कठघरे में खड़ी हो गयी है और उसके बावजूद भी वो कह रही है कि इसमें राजनीति नहीं की गयी है !

पहली बात तो यह है कि अफजल को फांसी कि सजा का फैसला २००६ में हि हो गया था तो इसको इतना लंबा खींचना क्या राजनीति नहीं थी ! अफजल को फांसी देने में जानबूझकर देरी की गयी ताकि उन लोगों को अफजल के प्रति सहानुभूति अर्जित करने का मौका मिल सके जो लोग अफजल के पक्ष में आवाज उठा रहे थे ! अफजल को फांसी देने कि मांग बार बार विपक्ष और शहीदों के परिजनों द्वारा कि गयी और इस देरी के विरोध में संसद हमले में शहीद हुए परिवारों नें तो अपने पदक तक राष्ट्रपति को लौटा दिए थे लेकिन तब सरकार नें शहीदों के परिवारों की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया गया और सरकार द्वारा बार बार यही तर्क दिया जाता रहा कि दया याचिकाओं का फैसला वरीयताक्रम से होगा और जब अफजल का क्रम आएगा तब उसका भी फैसला हो जाएगा !

सरकार अगर कहती है कि राजनीति नहीं हुयी तो पहले ये बताए कि जिस अफजल गुरु कि दया याचिका शहीदों के परिजनों और विपक्ष ,देश के दबाव के बावजूद वरीयताक्रम में ऊपर नहीं आ पायी वो अब अचानक से वरीयताक्रम में ऊपर कैसे आ गयी ! अगर सरकार कहती है कि राजनीति नहीं हुयी तो इस बात का जवाब सरकार को देश को देना हि होगा ! इसमें कोई दो राय नहीं कि इसमें राजनीति हुयी है ! लेकिन अब जो भी हुआ अफजल को उसके किये कि सजा मिल गयी ! लेकिन अभी भी कई और लोगों पर फैसला होना बाकी है जिन पर फैसला कब होता है यह देखना है !