शनिवार, 30 मार्च 2013

कलम की नॊंक सॆ आँधियॊं कॊ हम,रॊकतॆ रहॆ हैं रॊकतॆ रहॆंगॆ !!

कवि राजबुन्देली जी वीर रस से भरी कविता :-

फ़ांसी कॆ फन्दॊं कॊ हम , गर्दन दान दिया करतॆ हैं !
गॊरी जैसॆ शैतानॊं कॊ भी ,जीवन-दान दिया करतॆ हैं !!
क्षमाशीलता का जब कॊई , अपमान किया करता है !
अंधा राजपूत भी तब, प्रत्यंचा तान लिया करता है !!
भारत की पावन धरती नें , ऎसॆ कितनॆं बॆटॆ जायॆ हैं !
स्वाभिमान की रक्षा मॆं,उन नॆं निज शीश चढ़ायॆ हैं, !!
दॆश की ख़ातिर ज़िन्दगी हवन मॆं, झॊंकतॆ रहॆ हैं झॊंकतॆ रहॆंगॆ !
कलम की नॊंक सॆ आँधियॊं कॊ हम,रॊकतॆ रहॆ हैं रॊकतॆ रहॆंगॆ !!

स्वाभिमान की रक्षा मॆं, महिलायॆं ज़ौहर कर जाती हैं !
आन नहीं जानॆं दॆतीं जलकर, ज्वाला मॆं मर जाती हैं !!
याद करॊ पन्ना माँ जिस नॆं, दॆवासन कॊ हिला दिया !
राजकुँवर की मृत्यु-सॆज पर, निज बॆटॆ कॊ सुला दिया !!
भारत की तॊ नारी भी, दुर्गा है रणचण्डी है, काली है !
तलवार उठा लॆ हाँथॊं मॆं, तॊ महारानी झांसी वाली है !!
खाकर घास की रॊटी गर्व सॆ सीना, ठॊंकतॆ रहॆ हैं ठॊंकतॆ रहॆंगॆ !
कलम की नॊंक सॆ आँधियॊं कॊ हम,रॊकतॆ रहॆ हैं रॊकतॆ रहॆंगॆ !!


हम पूजा करतॆ मर्यादाऒं कॊ, आदर्शॊं कॊ यह सच है !
पर पीठ नहीं दिखलातॆ हम,संघर्षॊं कॊ यह भी सच है !!
माना कि इस भूमि पर,मर्यादा पुरुषॊत्तम राम हुयॆ हैं !
रिपु-मर्दन परसुराम कॆ भी,इसी धरा पर संग्राम हुयॆ हैं!!
अहंकार कॆ दानव जब भी,पौरुष कॊ ललकारा करतॆ हैं !
लंका मॆं घुस कर रघु वंशज, रावण कॊ मारा करतॆ हैं !!
सत्य का साथ दॆ सदा हम असत्य कॊ,टॊकतॆ रहॆ हैं टॊकतॆ रहॆंगॆ !
कलम की नॊंक सॆ आँधियॊं कॊ हम,रॊकतॆ रहॆ हैं रॊकतॆ रहॆंगॆ !!

दॆश की एकता अखंडता कॊ, तॊड़नॆ मॆं लगॆ हैं बहुत !
शान्ति कॆ कलश कॊ आज, फॊड़नॆ मॆं लगॆ है बहुत !!
दॆश की सरहदॊं कॊ तॊड़नॆ, मरॊड़नॆ मॆं लगॆ हैं बहुत !
भारत माँ का आज रक्त, निचॊड़नॆं मॆं लगॆ हैं बहुत !!
न कॊई धर्म है उनका और,न कॊई ईमान है उनका !
भारत कॆ नमक कॆ ख़िलाफ़,गन्दा बयान है जिनका !!
"राज" दॆश कॆ ख़िलाफ़ गद्दार कई, भॊंकतॆ रहॆ हैं भॊंकतॆ रहॆंगॆ !!
कलम की नॊंक सॆ आँधियॊं कॊ हम,रॊकतॆ रहॆ हैं रॊकतॆ रहॆंगॆ !!

16 टिप्‍पणियां :

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बीर रस से ओतप्रोत प्रेरणा दायक कविता
new postकोल्हू के बैल

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

बेहद शानदार प्रस्तुति | वीर रस से ओतप्रोत भावपूर्ण प्रस्तुति | आभार

कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार (31-03-2013) के चर्चा मंच-1200 पर भी होगी!
सूचनार्थ...सादर!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

bahut hi dhardar prastuti,

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बाजुए फडक उठी ये गीत पढ़ने के बाद ....
बहुत ही लाजवाब ... ललकार है देश प्रेम में खोने के लिए तैयार होने की ...

Unknown ने कहा…

सुन्दर कविता,बीर रस की कविता खून में उछाल उत्पन्न कर देती है आभार पूरण जी।

Rajendra kumar ने कहा…

वीर रस से प्रेरित अभूत ही बेहतरीन रचना,आभार.

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सादर आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सादर आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

Pratibha Verma ने कहा…

बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!!
पधारें कैसे खेलूं तुम बिन होली पिया...

Unknown ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
MYWORLDNEWS ने कहा…

बहुत अच्छा