रविवार, 28 अप्रैल 2013

क्षणिक और आवेगपूर्ण देशभक्ति से क्या हम देश का भला कर पायेंगे !!

जब कोई दूसरा देश हमारे साथ दुर्भावनापूर्ण बर्ताव या हरकत करता है तो हमारे अंदर देशभक्ति कि भावनाएँ हिलोरें लेने लगती है जो अच्छी लगती है लेकिन फिर वही भावनाएं सुषुप्तावस्था में चली जाती है और हमारे विचारों से और कार्यकलापों से वही भावनाएं दूर चली जाती है ! क्या हमारी  क्षणिक और आवेगपूर्ण देशभक्ति कि भावनाओं से हम देश का कोई भला कर पायेंगे ! मेरा मकसद किसी कि भी देशभक्ति पर संदेह करना नहीं है बल्कि यह बताना है कि क्या हम क्षणिक और आवेगपूर्ण देशभक्ति वाली भावनाओं से बाहर निकलकर अपने अंदर देशभक्ति कि ऐसी भावना विकसित नहीं कर सकते जो हमारी छोटी छोटी बातों में दिखाई दे और उससे देश को भी एक मजबूती मिल सके !

देशभक्ति एक व्यापकता वाला शब्द हैं केवल क्षणिक आवेश अथवा संकट के समय देशप्रेम के उठने वाले भावों को ही सम्पूर्ण देशभक्ति नहीं माना जा सकता है बल्कि सदैव देश के प्रति स्व का भाव होना और उसके अनुरूप ही व्यवहार करना ही हमारी सच्ची देशभक्ति माना जा सकता है ! कई बार देखा जाता है कि हम देशहित से जुड़े किसी मुद्दे पर आंदोलन करते हैं और आवेश में आकर सरकारी और निजी सम्पति का नुकशान करते हैं अब भला कोई मुझे ये बताए कि ये कैसी देशभक्ति हम अपने अंदर पनपा रहें हैं ! हम तो उल्टा अपने ही देश का नुकशान कर रहे हैं और मन में भाव ये पाले हुए हैं कि हम घरों से बाहर निकलकर आंदोलन कर रहें हैं इसलिए हम देशभक्त हैं और जो लोग घरों में बैठे हैं उनको देश से कोई मतलब नहीं है !

सार्वजनिक सुविधाओं और सार्वजनिक सम्पतियों के सन्दर्भ में क्या हमारे अंदर स्व का भाव रहता है ! महज अँगुलियों पर गिनने लायक कुछ लोगों कि बात छोड़ दें तो जवाब नकारात्मक ही आएगा और ज्यादातर लोग या तो सार्वजनिक सुविधाओं का दुरूपयोग करते और ये कहते हुए मिल जायेंगे कि सरकारी सम्पति है ! हम सामान खरीदने बाजार जाते हैं तब क्या हमारे अंदर स्वदेश प्रेम का भाव रहता है ! इस मामले में तो हमारी हालत यह कि हम विदेशी सामान खरीदने में गर्व का अनुभव का अनुभव करते हैं और बिना किसी प्रमाण के अपने दिमाग में यह धारणा बना ली कि विदेशी सामान अच्छा होता है और स्वदेशी सामान घटिया होता है ! इस तरह से हम विदेशी सामान खरीदकर अपने देश के धन को विदेशियों के हाथों में सौंपते हैं और उसके बाद हम आशा करते हैं कि हमारा देश आर्थिक रूप से समृद्ध हो !


भाषा के मामले में बात करें तो उसमें भी हम स्व का भाव विकसित नहीं कर पाए हैं ! हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी है जिसको हम अच्छी तरह बोल भी लेते हैं और लिख भी सकते हैं लेकिन हमको भले ही अंग्रेजी पूरी नहीं आती हो लेकिन टूटी फूटी या रटी हुयी अंग्रेजी बोलने में भी हम गर्व का अनुभव करते हैं ! कुछ ऐसा ही हाल खेलों में देखा जा सकता है ! जहां हम अपने राष्ट्रीय खेल कि बजाय अन्य विदेशी खेल क्रिकेट के प्रशंशक बनने में अपनी शान समझते हैं ! दरअसल सम्पूर्णता में हम अभी तक देश के प्रति स्व का भाव पैदा ही नहीं कर पाए है और यही कारण है कि हमारा देशप्रेम का भाव केवल संकट के समय ही उभर कर आता है लेकिन वो भी क्षणिक और आवेग के साथ जिसके कारण हमारी सरकारों पर संकट के समय सोच समझकर फैसले करने के साथ ही देश के जनमानस कि आवेगपूर्ण भावनाओं का ध्यान रखने कि जिम्मेदारी भी आ जाती है !

9 टिप्‍पणियां :

virendra sharma ने कहा…

बहुत सटीक कहा है आज की विस्थिति पर .बेगाने और अजनबी पण पर देश के प्रति जैसे हमें क्या

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

वाह! लाजवाब लेखन | आभार

कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (29-04-2013) 'सुनती है माँ गुज़ारिश ':चर्चामंच 1229 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

सुज्ञ ने कहा…

सही निष्कर्ष....

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही सार्थक और सटीक आलेख,आपका आभार.

SACCHAI ने कहा…

सार्थक लेखन ... एक अच्छी जानकारी भरी पोस्ट

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सादर आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सादर आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!