कई बार यह देखने में आता है कि मुसलमानों की देश के प्रति निष्ठा को संदेह कि नजर से देखा जाता है और कई बार तो यह तक माना जाता है कि यहाँ के मुसलमान पाकिस्तान के प्रति निष्ठा रखते हैं ! क्या इसके लिए वे लोग जिम्मेदार है जो मुसलमानों कि निष्ठा पर संदेह करते हैं या फिर वाकई भारतीय मुसलमानों कि देश के प्रति निष्ठा संदेहास्पद है ! इसके पक्ष में कई तरह के तर्क और वितर्क दिए जा सकते हैं लेकिन उन तर्कों वितर्कों में नहीं जाकर कुछ बातों पर गौर तो किया जाना चाहिए जिससे स्थति को समझा जा सके और विचार किया जा सके !
मुसलमानों कि निष्ठा को संदेहास्पद बनाने में सबसे बड़ा हाथ तो उन राजनैतिक पार्टियों का ही है जो अपने आपको सबसे ज्यादा मुस्लिम हितैषी दिखाने के लिए जी जान से जुटी रहती है ! आपने कई बार देखा होगा कि बात जब पाकिस्तान के खिलाफ बोलने कि आती है तो इन्ही पार्टियों के नेताओं का लहजा या तो नरम हो जाता है या फिर ये नेता बोलने से बचते हुए दिखाई देते हैं ! और ऐसा करने के पीछे इन पार्टियों की सोच ये होती है कि इससे मुस्लिम समाज के लोग नाराज हो जायेंगे ! अब ये जाहिर सी बात है कि अगर इनके पाकिस्तान के विरुद्ध कड़ी बात कहने से मुस्लिम समाज नाराज होता है तो फिर यही समझा जाएगा ना कि मुस्लिमों कि आस्था भारत से ज्यादा पाकिस्तान के प्रति है तभी तो वो नाराज होगा वर्ना उसके नाराज होने का कोई कारण नहीं दीखता है !
ऐसा करके इन पार्टियों के नेता मुस्लिमों का भला करने की बजाय उनका बुरा हि कर रहे हैं और उनकी निष्ठा को हि संदेहास्पद बना रहे हैं ! इससे उन पार्टियों को राजनैतिक फायदा यह मिलता है कि मुसलमान नासमझी में उनके वोटबैंक बनकर रह जाते हैं ! आपने अभी पिछले दिनों में हि देखा होगा कि भारत का पाकिस्तान और चीन दोनों के साथ हि तनाव था तब ऐसे नेता चीन के प्रति तो अपना तल्ख़ रवैया दिखा रहे थे लेकिन पाकिस्तान के प्रति किसी भी तरह का तल्ख़ रवैया इन नेताओं का देखने को नहीं मिला ! अभी पिछले दिनों समाचारों में आपने सुना हि होगा कि उतरप्रदेश में समाजवादी पार्टी कि सरकार आतंकवाद के आरोपों में जेलों में बंद मुस्लिम युवकों को छोड़ने जा रही है ! अब आप खुद सोचिये कि आतंकवादियों को जेलों से छोड़ने जैसे फैसले लेकर ऐसी पार्टियां किसका भला कर रही है ! असल में तो ऐसा करके वो ना देश का भला कर रही है और ना हि मुसलमानों का भला कर रही है !
मुसलमानों की देश के प्रति निष्ठा को संदेहास्पद बनाने में दूसरा बड़ा हाथ मुस्लिम समाज के उन लोगों का है जो कहने को तो अपने आपको मुस्लिमों के नेता अथवा उनकी आवाज उठाने वाले कहते है लेकिन ये लोग मुसलमानों को हकीकत से रूबरू करवाने कि बजाय और उनके लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा है इसका विचार किये बिना चुनावों के समय इन्ही पार्टियों को फायदा पहुंचाने के लिए इन्ही पार्टियों के साथ मिल जाते हैं ! कुछ तो ऐसे है जो हर चुनावों में अलग अलग पार्टियों के पाले में नजर आते हैं ! और विवादित बयानों द्वारा सांप्रदायिक सद्भाव में जहर घोलने का काम करते हैं ! इस तरह से वो अपने अपने निजी स्वार्थों के लिए पुरे मुस्लिम समाज को हि संदेहास्पद बनाने का काम करते रहते हैं !