सोमवार, 20 मई 2013

मुस्लिम समाज की देश के प्रति निष्ठा पर संदेह क्या सही है !!

कई बार यह देखने में आता है कि मुसलमानों की देश के प्रति निष्ठा को संदेह कि नजर से देखा जाता है और कई बार तो यह तक माना जाता है कि यहाँ के मुसलमान पाकिस्तान के प्रति निष्ठा रखते हैं ! क्या इसके लिए वे लोग जिम्मेदार है जो मुसलमानों कि निष्ठा पर संदेह करते हैं या फिर वाकई भारतीय मुसलमानों कि देश के प्रति निष्ठा संदेहास्पद है ! इसके पक्ष में कई तरह के तर्क और वितर्क दिए जा सकते हैं लेकिन उन तर्कों वितर्कों में नहीं जाकर कुछ बातों पर गौर तो किया जाना चाहिए जिससे स्थति को समझा जा सके और विचार किया जा सके !

मुसलमानों कि निष्ठा को संदेहास्पद बनाने में सबसे बड़ा हाथ तो उन राजनैतिक पार्टियों का ही है जो अपने आपको सबसे ज्यादा मुस्लिम हितैषी दिखाने के लिए जी जान से जुटी रहती है ! आपने कई बार देखा होगा कि बात जब पाकिस्तान के खिलाफ बोलने कि आती है तो इन्ही पार्टियों के नेताओं का लहजा या तो नरम हो जाता है या फिर ये नेता बोलने से बचते हुए दिखाई देते हैं ! और ऐसा करने के पीछे इन पार्टियों की सोच ये होती है कि इससे मुस्लिम समाज के लोग नाराज हो जायेंगे ! अब ये जाहिर सी बात है कि अगर इनके पाकिस्तान के विरुद्ध कड़ी बात कहने से मुस्लिम समाज नाराज होता है तो फिर यही समझा जाएगा ना कि मुस्लिमों कि आस्था भारत से ज्यादा पाकिस्तान के प्रति है तभी तो वो नाराज होगा वर्ना उसके नाराज होने का कोई कारण नहीं दीखता है ! 

 ऐसा करके इन पार्टियों के  नेता मुस्लिमों का भला करने की बजाय उनका बुरा हि कर रहे हैं और उनकी निष्ठा को हि संदेहास्पद बना रहे हैं ! इससे उन पार्टियों को राजनैतिक फायदा यह मिलता है कि मुसलमान नासमझी में उनके वोटबैंक बनकर रह जाते हैं ! आपने अभी पिछले दिनों में हि देखा होगा कि भारत का पाकिस्तान और चीन दोनों के साथ हि तनाव था तब ऐसे नेता चीन के प्रति तो अपना तल्ख़ रवैया दिखा रहे थे लेकिन पाकिस्तान के प्रति किसी भी तरह का तल्ख़ रवैया इन नेताओं का देखने को नहीं मिला ! अभी पिछले दिनों समाचारों में आपने सुना हि होगा कि उतरप्रदेश में समाजवादी पार्टी कि सरकार आतंकवाद के आरोपों में जेलों में बंद मुस्लिम युवकों को छोड़ने जा रही है ! अब आप खुद सोचिये कि आतंकवादियों को जेलों से छोड़ने जैसे फैसले लेकर ऐसी पार्टियां किसका भला कर रही है ! असल में तो ऐसा करके वो ना देश का भला कर रही है और ना हि मुसलमानों का भला कर रही है !

मुसलमानों की देश के प्रति निष्ठा को संदेहास्पद बनाने में दूसरा बड़ा हाथ मुस्लिम समाज के उन लोगों का है जो कहने को तो अपने आपको मुस्लिमों के नेता अथवा उनकी आवाज उठाने वाले कहते है लेकिन ये लोग मुसलमानों को हकीकत से रूबरू करवाने कि बजाय और उनके लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा है इसका विचार किये बिना चुनावों के समय इन्ही पार्टियों को फायदा पहुंचाने के लिए इन्ही पार्टियों के साथ मिल जाते हैं ! कुछ तो ऐसे है जो हर चुनावों में अलग अलग पार्टियों के पाले में नजर आते हैं ! और विवादित बयानों द्वारा सांप्रदायिक सद्भाव में जहर घोलने का काम करते हैं ! इस तरह से वो अपने अपने निजी स्वार्थों के लिए पुरे मुस्लिम समाज को हि संदेहास्पद बनाने का काम करते रहते हैं !

रविवार, 28 अप्रैल 2013

क्षणिक और आवेगपूर्ण देशभक्ति से क्या हम देश का भला कर पायेंगे !!

जब कोई दूसरा देश हमारे साथ दुर्भावनापूर्ण बर्ताव या हरकत करता है तो हमारे अंदर देशभक्ति कि भावनाएँ हिलोरें लेने लगती है जो अच्छी लगती है लेकिन फिर वही भावनाएं सुषुप्तावस्था में चली जाती है और हमारे विचारों से और कार्यकलापों से वही भावनाएं दूर चली जाती है ! क्या हमारी  क्षणिक और आवेगपूर्ण देशभक्ति कि भावनाओं से हम देश का कोई भला कर पायेंगे ! मेरा मकसद किसी कि भी देशभक्ति पर संदेह करना नहीं है बल्कि यह बताना है कि क्या हम क्षणिक और आवेगपूर्ण देशभक्ति वाली भावनाओं से बाहर निकलकर अपने अंदर देशभक्ति कि ऐसी भावना विकसित नहीं कर सकते जो हमारी छोटी छोटी बातों में दिखाई दे और उससे देश को भी एक मजबूती मिल सके !

देशभक्ति एक व्यापकता वाला शब्द हैं केवल क्षणिक आवेश अथवा संकट के समय देशप्रेम के उठने वाले भावों को ही सम्पूर्ण देशभक्ति नहीं माना जा सकता है बल्कि सदैव देश के प्रति स्व का भाव होना और उसके अनुरूप ही व्यवहार करना ही हमारी सच्ची देशभक्ति माना जा सकता है ! कई बार देखा जाता है कि हम देशहित से जुड़े किसी मुद्दे पर आंदोलन करते हैं और आवेश में आकर सरकारी और निजी सम्पति का नुकशान करते हैं अब भला कोई मुझे ये बताए कि ये कैसी देशभक्ति हम अपने अंदर पनपा रहें हैं ! हम तो उल्टा अपने ही देश का नुकशान कर रहे हैं और मन में भाव ये पाले हुए हैं कि हम घरों से बाहर निकलकर आंदोलन कर रहें हैं इसलिए हम देशभक्त हैं और जो लोग घरों में बैठे हैं उनको देश से कोई मतलब नहीं है !

सार्वजनिक सुविधाओं और सार्वजनिक सम्पतियों के सन्दर्भ में क्या हमारे अंदर स्व का भाव रहता है ! महज अँगुलियों पर गिनने लायक कुछ लोगों कि बात छोड़ दें तो जवाब नकारात्मक ही आएगा और ज्यादातर लोग या तो सार्वजनिक सुविधाओं का दुरूपयोग करते और ये कहते हुए मिल जायेंगे कि सरकारी सम्पति है ! हम सामान खरीदने बाजार जाते हैं तब क्या हमारे अंदर स्वदेश प्रेम का भाव रहता है ! इस मामले में तो हमारी हालत यह कि हम विदेशी सामान खरीदने में गर्व का अनुभव का अनुभव करते हैं और बिना किसी प्रमाण के अपने दिमाग में यह धारणा बना ली कि विदेशी सामान अच्छा होता है और स्वदेशी सामान घटिया होता है ! इस तरह से हम विदेशी सामान खरीदकर अपने देश के धन को विदेशियों के हाथों में सौंपते हैं और उसके बाद हम आशा करते हैं कि हमारा देश आर्थिक रूप से समृद्ध हो !