जब कोई दूसरा देश हमारे साथ दुर्भावनापूर्ण बर्ताव या हरकत करता है तो हमारे अंदर देशभक्ति कि भावनाएँ हिलोरें लेने लगती है जो अच्छी लगती है लेकिन फिर वही भावनाएं सुषुप्तावस्था में चली जाती है और हमारे विचारों से और कार्यकलापों से वही भावनाएं दूर चली जाती है ! क्या हमारी क्षणिक और आवेगपूर्ण देशभक्ति कि भावनाओं से हम देश का कोई भला कर पायेंगे ! मेरा मकसद किसी कि भी देशभक्ति पर संदेह करना नहीं है बल्कि यह बताना है कि क्या हम क्षणिक और आवेगपूर्ण देशभक्ति वाली भावनाओं से बाहर निकलकर अपने अंदर देशभक्ति कि ऐसी भावना विकसित नहीं कर सकते जो हमारी छोटी छोटी बातों में दिखाई दे और उससे देश को भी एक मजबूती मिल सके !
देशभक्ति एक व्यापकता वाला शब्द हैं केवल क्षणिक आवेश अथवा संकट के समय देशप्रेम के उठने वाले भावों को ही सम्पूर्ण देशभक्ति नहीं माना जा सकता है बल्कि सदैव देश के प्रति स्व का भाव होना और उसके अनुरूप ही व्यवहार करना ही हमारी सच्ची देशभक्ति माना जा सकता है ! कई बार देखा जाता है कि हम देशहित से जुड़े किसी मुद्दे पर आंदोलन करते हैं और आवेश में आकर सरकारी और निजी सम्पति का नुकशान करते हैं अब भला कोई मुझे ये बताए कि ये कैसी देशभक्ति हम अपने अंदर पनपा रहें हैं ! हम तो उल्टा अपने ही देश का नुकशान कर रहे हैं और मन में भाव ये पाले हुए हैं कि हम घरों से बाहर निकलकर आंदोलन कर रहें हैं इसलिए हम देशभक्त हैं और जो लोग घरों में बैठे हैं उनको देश से कोई मतलब नहीं है !
सार्वजनिक सुविधाओं और सार्वजनिक सम्पतियों के सन्दर्भ में क्या हमारे अंदर स्व का भाव रहता है ! महज अँगुलियों पर गिनने लायक कुछ लोगों कि बात छोड़ दें तो जवाब नकारात्मक ही आएगा और ज्यादातर लोग या तो सार्वजनिक सुविधाओं का दुरूपयोग करते और ये कहते हुए मिल जायेंगे कि सरकारी सम्पति है ! हम सामान खरीदने बाजार जाते हैं तब क्या हमारे अंदर स्वदेश प्रेम का भाव रहता है ! इस मामले में तो हमारी हालत यह कि हम विदेशी सामान खरीदने में गर्व का अनुभव का अनुभव करते हैं और बिना किसी प्रमाण के अपने दिमाग में यह धारणा बना ली कि विदेशी सामान अच्छा होता है और स्वदेशी सामान घटिया होता है ! इस तरह से हम विदेशी सामान खरीदकर अपने देश के धन को विदेशियों के हाथों में सौंपते हैं और उसके बाद हम आशा करते हैं कि हमारा देश आर्थिक रूप से समृद्ध हो !