
भले ही किसी जमाने में कार्यपालिका में बैठे लोगों के मन में लोकसेवक होने का भाव होता होगा लेकिन आज की हकीकत देखें तो उनके अंदर लोकसेवक होनें का भाव तो बिलकुल भी नहीं रहता है बल्कि उनके अंदर शासकीय भाव जागृत हो चूका है !जहां संविधान में इनको लोकसेवक माना गया है और विधायिका के साथ सामंजस्य बिठाते हुए जनता की भलाई की अपेक्षा इनसे रखी गयी थी लेकिन कार्यपालिका में बैठे लोगों नें विधायिका में बैठे लोगों से सामंजस्य तो बनाया लेकिन लोकसेवा के लिए नहीं बल्कि निज हितों और निज सेवा को ध्यान में रखते हुए बनाया !
आज हालात यह है कि कार्यपालिका में बैठे कुछ चंद लोगों की बात छोड़ दें तो आप किसी भी कार्यालय में किसी काम को लेकर चले जाइए ! आप वहाँ अपने काम के बारे में बात करेंगे तो वहाँ के अधिकारियों का लहजा आपके प्रति ऐसा रहेगा जैसे आपनें उस कार्यालय में आकर कोई गलती कर दी हो ! आपका काम हो भी यह जरुरी नहीं है लेकिन आपको उस अधिकारी की रुआब भरी बातें तो जरुर ही सुननी पड़ेगी ! आखिर क्या इस तरह का लहजा किसी लोकसेवक का होनें कि आप कल्पना भी कर सकते हैं ! लेकिन आज जिनको हम लोकसेवक कहते हैं उनका तो यही लहजा प्राय: हर कार्यालय में देखने को मिल जाता है !
कार्यपालिका में इस तरह का शासकीय भाव आनें के मूल में भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी भूमिका है और आप देखेंगे कि जो अधिकारी ईमानदार होते हैं उनका बर्ताव और लहजा भी सहजता का होता है ! लेकिन मुश्किल यही है कि आज ईमानदार अधिकारी और कर्मचारी है ही कितनें बस महज कुछ अँगुलियों पर गिनने लायक ही है ! भ्रष्टाचार का बोलबाला तो हर कार्यालय में पाँव पसार चूका है और पसारे भी क्यों नहीं आजकल तो नियुक्तियों में भी भ्रष्टाचार की काली छाया नजर आती रहती है और भ्रष्टाचार के सहारे नियुक्तियां पाने वालों से ईमानदारी की आशा करना बेकार है !
15 टिप्पणियां :
आपने बिलकुल सही कहा,,,
RECENT POST: ब्लोगिंग के दो वर्ष पूरे,
सॉरी... लिंक गलत हो गया था!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शनिवार (29-06-2013) को कड़वा सच ...देख नहीं सकता...सुखद अहसास ! में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहर्ष सादर आभार आदरणीय !!
आहत राहत-नीति से, रह रह रहा कराह |
अधिकारी सत्ता-तहत, रिश्वत रहे उगाह ॥
सही कहा है आदरणीय !!
सादर आभार !!
सहर्ष सादर आभार !!
कैसे लोकसेवक,?किसके लोक सेवक?यह तो आज मालिक हैं लोकतंत्र के.रही सही कमी पूरी कर दी है इन निकम्मे,भ्रष्ट ,व अयोग्य मंत्रियों ने. इनको आका बना दिया.क्योंकि वे भी तो अपनी कमजोरियों वश इनके आगे नतमस्तक हैं.
आप सही कह रहे हैं आदरणीय !!
सादर आभार !!
सही कहा आपने पर आजकल लोकसेवा जेबसेवा के लिये की जाती है.
रामराम.
सही कहा ताऊ !!
आभार ,राम राम !!
सटीक ,समसामयीक लाजवाब श्री मन
बहुत खूब .ये लोक सेवक नहीं स्वयम भू लोक दारोगा हैं ....
सादर आभार !!
लगता तो ऐसा ही है !!
सादर आभार !!
बिल्कुल सही,
सहमत
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