शुक्रवार, 28 जून 2013

लोकसेवकों में लोकसेवक होनें का भाव भी तो होना चाहिए !!

हम जब भी कार्यपालिका की बात करते हैं अथवा उन पर दोषारोपण करते हैं तो उसके मूल में भाव उनके लोकसेवक होनें और उसमें कोताही बरतने का ही रहता है ! लेकिन यक्ष प्रश्न तो यही है कि जिनको हम लोकसेवक मानकर चलते हैं वास्तव में उनके मन में लोकसेवक होने का भाव रहता है या नहीं रहता है ! और अगर उनके मन में लोकसेवक होनें का भाव ही नहीं रहता तो हम क्या जबरदस्ती उनके अंदर ये भाव पैदा कर सकते हैं या केवल दोषारोपण करके अपने दिल की भड़ास ही निकालना हमारी मज़बूरी है !

भले ही किसी जमाने में कार्यपालिका में बैठे लोगों के मन में लोकसेवक होने का भाव होता होगा लेकिन आज की हकीकत देखें तो उनके अंदर लोकसेवक होनें का भाव तो बिलकुल भी नहीं रहता है बल्कि उनके अंदर शासकीय  भाव जागृत हो चूका है !जहां संविधान में इनको लोकसेवक माना गया है और विधायिका के साथ सामंजस्य बिठाते हुए जनता की भलाई की अपेक्षा इनसे रखी गयी थी लेकिन कार्यपालिका में बैठे लोगों नें विधायिका में बैठे लोगों से सामंजस्य तो बनाया लेकिन लोकसेवा के लिए नहीं बल्कि निज हितों और निज सेवा को ध्यान में रखते हुए बनाया ! 

आज हालात यह है कि कार्यपालिका में बैठे कुछ चंद लोगों की बात छोड़ दें तो आप किसी भी कार्यालय में किसी काम को लेकर चले जाइए ! आप वहाँ अपने काम के बारे में बात करेंगे तो वहाँ के अधिकारियों का लहजा आपके प्रति ऐसा रहेगा जैसे आपनें उस कार्यालय में आकर कोई गलती कर दी हो ! आपका काम हो भी यह जरुरी नहीं है लेकिन आपको उस अधिकारी की रुआब भरी बातें तो जरुर ही सुननी पड़ेगी ! आखिर क्या इस तरह का लहजा किसी लोकसेवक का होनें कि आप कल्पना भी कर सकते हैं ! लेकिन आज जिनको हम लोकसेवक कहते हैं उनका तो यही लहजा प्राय: हर कार्यालय में देखने को मिल जाता है !

गुरुवार, 9 मई 2013

कर्नाटक चुनावों में क्या वाकई भ्रष्टाचार मुद्दा था !!

कर्नाटक विधानसभा चुनावों के परिणाम जहां भाजपा के लिए निराशा लेकर आये वहीँ कांग्रेस के लिए उत्साह का कारण बन गए हैं जो कांग्रेस के नेताओं के बयानों में देखने को भी मिल रहे हैं जो अपने अति उत्साह में सुप्रीम कोर्ट पर भी तल्ख़ टिपण्णी करने से नहीं चूक रहे हैं !  में कल एक चैंनल पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा कल सीबीआई और सरकार पर की गयी तल्ख़ टिप्पणियों पर बहस सुन रहा था जिसमें  कांग्रेस नेता संजय निरुपम से जब इस बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि "सुप्रीम कोर्ट के गलियारों से भी आम आदमी जैसी टिप्पणियाँ निकल रही है जो सही नहीं है " अब ये कल कर्नाटक में मिले जनादेश के अति उत्साह का ही परिणाम है कि संजय निरुपम जैसे नेता सुप्रीम कौर्ट को बताने लगे कि सुप्रीम कोर्ट के लिए क्या सही है और क्या सही नहीं है ! 

वैसे देखा जाए तो कर्नाटक चुनावों में  भ्रष्टाचार मुद्दा था ही नहीं क्योंकि अगर मुद्दा भ्रष्टाचार होता तो जनता कांग्रेस को कभी जनादेश नहीं देती क्योंकि भाजपा नें भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद देर से ही सही लेकिन उनको मुख्यमंत्री के पद से हटाया तो था और पार्टी कि टूट को स्वीकार्य किया लेकिन येद्दुरप्पा को वापिस कुर्सी नहीं दी ! लेकिन कांग्रेस कि तरफ से केन्द्र और अन्य किसी भी राज्यों में ऐसा नहीं किया गया उसने तो उल्टा हिमाचल में उन वीरभद्रसिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया जिनके विरुद्ध कोर्ट नें उनके विरुद्ध लगाए गए आरोपों पर केस चलाने का आदेश दिया था जिसके कारण उनको केन्द्र में मंत्री पद से भी इस्तीफा देना पड़ा था ! इसलिए ये कहना गलत होगा कि भाजपा भ्रष्टाचार के कारण हारी क्योंकि अगर ऐसा होता तो  उस सूरत में कांग्रेस और येदुरप्पा की पार्टी को जनता वोट नहीं करती क्योंकि कांग्रेस का हाल सबको पता है और येद्दुरप्पा तो वही आदमी थे जिनके कारण भाजपा पर कर्नाटक में भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं तो फिर जनता उनको वोट कैसे दे सकती थी !

कर्नाटक चुनावों में मुकाबला दरअसल भाजपा और कांग्रेस का था ही नहीं बल्कि मुकाबला भाजपा और कांग्रेस पोषित मीडिया के कर्नाटक के भ्रष्टाचार के उस दुष्प्रचार का था जिसको मीडिया नें हर उस समय इस्तेमाल किया था जब जब भ्रष्टाचार पर कांग्रेस घिरती दिखाई दी और उसको भाजपा नें घेरने कि कोशिश की तब तब मीडिया नें इसी येद्दुरप्पा के भ्रष्टाचार को कांग्रेस के लिए ढाल बनाकर पेश किया ! उस मीडिया नें भाजपा को तब भी कोई राहत नहीं दी जब भाजपा नें येद्दुरप्पा मुख्यमंत्री की कुर्सी से पदच्युत कर दिया और उनके विरुद्ध जांच भी वो सीबीआई नहीं कर रही थी जिस पर केन्द्र सरकार से मिलीभगत के आरोप सुप्रीम कौर्ट में मय तथ्यों के साबित हो चुके हैं बल्कि लोकायुक्त  की वो जांच टीम कर रही थी जिसने ही ये मामला उजागर किया था ! दरअसल इन चुनावों में मीडिया का वही दुष्प्रचार जीत गया और भाजपा हार गयी और मीडिया जिस कांग्रेस पार्टी को फायदा पहुंचाना चाहती थी उसको वो फायदा मिल भी गया !

मंगलवार, 7 मई 2013

घोटाले ही घोटाले दिखाई देते हैं !!

देश में घोटाले दर घोटाले हो रहे हैं और एक के बाद एक नए घोटालों का जन्म हो रहा है ! अब तो ऐसा लगने लगा है कि सताधिश जनता की याददाश्त शक्ति को आजमाने की हौड़ लगा रहे हैं और मानो जनता से पूछ रहे हैं कि हम भी देखते हैं कि आपकी कितनी याद रखने कि शक्ति है और कितने घोटालों को आप याद रख सकते हैं और लगता है कि अब जनता को ही हारना पड़ेगा क्योंकि एक घोटाले कि पूरी सच्चाई जनता के सामने नहीं आती तब तक हमारे माननीय दूसरा घोटाला लेकर हाजिर हो जाते हैं ! अब भला जनता कितने घोटालों को याद रखे ! 

अगर पिछले तेईस सालों की बात करे तो देश नें कांग्रेस ने तीन बार सत्ता संभाली है एक बार १९९१ से १९९६ तक पी.वी.नरसिम्हा राव जी प्रधानमन्त्री थे और २००४ से अभी तक लगातार दो कार्यकालों में डॉ.मनमोहन सिंह जी प्रधानमंत्री हैं ! बीच में १९९८ से लेकर २००४ तक भाजपा नें सत्ता संभाली और अटल बिहारी वाजपेई जी प्रधानमन्त्री बने थे और कुछ समय के लिए एच.डी.देवगोड़ा जी और इन्दरकुमार गुजराल जी भी प्रधानमंत्री के पद पर रह चुके हैं ! अब अगर इन प्रधानमंत्रियों के शासनकाल में हुए घोटालों पर नजर डाली जाए तो आपको पता लगेगा कि सबसे ज्यादा घोटाले कांग्रेस के शासनकाल में ही हुए है !

अगर आप पी.वी.नरसिम्हा राव जी के शासनकाल को देखेंगे तो पायेंगे कि उस समय उनकी सरकार ने विगत में हुए सारे घोटालों के रिकोर्ड तोड़ दिए थे और हालात आज जैसे ही थे ! हर दिन कोई ना कोई घोटाला सामने आता ही रहता था और कई घोटाले और धोखाधड़ी के मामले तो ऐसे थे जिनमें खुद नरसिम्हा राव जी के शामिल होने के आरोप लगे थे ! हालांकि उनके शासनकाल में जितने मामले सामने आये उनके सब के नाम तो याद रखना भी मुश्किल है लेकिन फिर भी कुछ ऐसे थे जो काफी चर्चित रहे थे ! जिनमें चीनी घोटाला,यूरिया घोटाला ,लक्खुभाई पाठक धोखाधड़ी मामला,तेल कूपन घोटाला,जेएम्एम् सांसद घुस प्रकरण ,दूरसंचार घोटाला और पेट्रोल पम्प आंवटन घोटाला जैसे ऐसे मामले थे जिनमें किसी ना किसी तरह से सताधारी दल के मंत्रियों अथवा खुद तब के प्रधानमंत्री की सलिम्पता के आरोप लगे थे !

मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

लोकतांत्रिक और संवैधानिक संस्थाओं पर बढ़ता जनता का अविश्वास !!

किसी भी लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की सफलता के लिए वहाँ कि जनता का अपने संविधान में आस्था होना और लोकतांत्रिक और संवैधानिक संस्थाओं में विश्वास होना जरुरी है ! और इन संस्थाओं में विश्वास होने का मतलब यह कतई नहीं है कि इन संस्थाओं के भवनों में विश्वास हो बल्कि जनता का उन लोगों पर विश्वास होना चाहिए जो इन भवनों में बैठते हैं ! लेकिन पिछले पैंसठ सालों में जिस तरह से संविधान की मूल भावना के साथ छेड़छाड़ की गयी और संवैधानिक और लोकतांत्रिक संस्थाओं का अपने शुद्र राजनैतिक स्वार्थों के लिए दुरूपयोग किया गया उसका परिणाम यह हो रहा है कि आज जनता लोकतांत्रिक और संवैधानिक संस्थाओं पर विश्वास नहीं कर पा रही है !

हमारे संविधान कि मूल भावना धर्मनिरपेक्षता है जिसमें जाति ,धर्म आधारित फैसलों के लिए कोई जगह नहीं थी लेकिन १९५६ में हिंदू कोड बिल लागू करके इस देश में धार्मिक आधार पर भेदभाव का पहला पौधा निरुपित किया गया और उसके बाद १९८६ में शाहबानों प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने के लिए संविधान संसोधन लाकर मुस्लिम पर्सनल ला को सरकारी तौर पर मान्यता देकर संविधान के मूल भाव को ही नेपथ्य में धकेल दिया गया और उसके बाद तो धार्मिक भेदभाव पर आधारित इतने फैसले हुए कि अब तो इस देश में धर्मनिरपेक्षता केवल कहने भर को रह गयी है बाकी तो सारे फैसले धार्मिक आधार और वोटबैंक को ध्यान में रखकर लिए जाते हैं ! जाति आधारित आरक्षण का विश्लेषण किये ही आगे बढ़ाया जा रहा है जिसको हमारे संविधान में केवल पन्द्रह सालों की समयसीमा में बांधकर लागू किया गया था लेकिन जातिगत वोटबैंक को ध्यान में रखकर उसको लगातार बढ़ाकर संविधान के मूल भाव को ही दबाया जा रहा है !

राज्यपाल जैसे संवैधानिक पदों का अपने राजनैतिक स्वार्थों के लिए दुरूपयोग हम देख चुके हैं कि कैसे विरोधी दलों कि जनता द्वारा चुनी हुयी सरकारों को रोमेन भंडारी और बूटा सिंह जैसे राज्यपालों का सहारा लेकर सत्ता से दूर कर दिया गया ! किस तरह एक ही झटके में चार चार राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया जाता है ! अब यह भी छुपा हुआ नहीं रह गया है कि अन्य संवैधानिक पदों और संस्थाओं का किस तरह से दुरूपयोग किया जा रहा है और जिनका दुरूपयोग सरकारें नहीं कर पा रही है उन पर कैसे कीचड़ उछालकर उन संस्थाओं पर से जनता का विश्वास अपने शुद्र राजनैतिक स्वार्थों के लिए किया जा रहा है ! और जब संवैधानिक संस्थाओं का हाल यह है तो बाकी संस्थाएं तो पूरी तरह से इनके चंगुल में ही दिखाई देती है !

सोमवार, 29 अप्रैल 2013

विकास,विकास और विकास !!


जो राजनैतिक पार्टियां राज्य और केन्द्र में सत्तासीन है वो अपना विकास का राग अलाप रही है ! आजादी से लेकर अब तक सबसे ज्यादा सत्तारूढ़ रही पार्टी कांग्रेस पेंसठ सालों से अपने विकास का राग सुना रही है तो भाजपा भी जहां जहां सतारूढ़ है और रही है वहाँ वो भी अपने विकास का गुणगान सुना रही है ! अब दोनों बड़ी पार्टियां अपना विकास राग सुना रही है तो भला छोटी पार्टियां भी इससे क्यों पीछे रहे तो वो भी अपना विकास राग सुना रही है ! लेकिन वो विकास धरातल पर नजर नहीं आ रहा है तो फिर वो विकास कहाँ गया जिनकी बातें ये पार्टियां करती है !

गरीबी के विश्वस्तरीय ताजातरीन आंकड़ों के हिसाब से आज विश्व का हर तीसरा गरीब आदमी भारतीय है जो इनके विकास के दावों का परिणाम बताने के लिए काफी है ! अभी हाल ही में हुए स्टडी सर्वे के मुताबिक़ ताकतवर अर्थव्यवस्था वाले देशों में भारत का आठंवा स्थान है जबकि हमारा पडोसी देश चीन दूसरे स्थान पर है ! इसी तरह सामरिक क्षेत्र में भी हमारा सातंवा स्थान है जबकि चीन वहाँ भी दूसरे स्थान पर है ! तकनीकी क्षेत्र में तो हालात और भी खराब है और भारत सतरहवें स्थान पर है ! एनर्जी सुरक्षा के मामले में भारत बीसवें स्थान पर है ! इसी तरह से सेना के साजो सामान ,पावर प्रोजेक्शन ,सायबर और स्पेस सिक्यूरिटी के मामले में भी भारत कि रेंकिग दयनीय स्थति में है और चीन हमसे काफी आगे है और लगातार फासला बढ़ता ही जा रहा है जो देश कि सुरक्षा के लिए भी चिंतनीय है !

जनसँख्या के मामले में दूसरे और क्षेत्रफल के मामले में सातवें नम्बर के देश के ये आंकडें विकास के दावों कि सच्चाई को बयान करने के लिए काफी है ! चीन भी जनसँख्या के मामले में पहले स्थान पर और क्षेत्रफल के हिसाब से चीन तीसरे स्थान पर है और चीन भी हमारे समकालीन ही आजाद हुआ था ! फिर क्या कारण है कि चीन का विकास दुनिया को दिखाई दे रहा है लेकिन हमारा विकास कहीं दिखाई नहीं दे रहा है जबकि हमारे यहाँ कोई विकास कि दुहाई दिए जा रहा है !

शनिवार, 27 अप्रैल 2013

सीबीआई का हलफनामा है या सरकारी दबाव का कबूलनामा !!

कल सर्वोच्च न्यायालय में सीबीआई निदेशक द्वारा प्रस्तुत किये गए हलफनामे के बाद यह तो साफ़ हो गया कि केन्द्र सरकार और उसके मंत्री किस तरह से एजेंसियों का दुरूपयोग कर रही है ! हालांकि यह ऐसी बात नहीं थी जिसका लोगों को पता नहीं था ! लोग पहले से ही जानते थे कि केन्द्र सरकार सीबीआई का दुरूपयोग करती है लेकिन कल सीबीआई निदेशक नें अपने हलफनामें में यह माना कि "कानून मंत्री नें कोयला घोटाले कि रिपोर्ट देखी थी " जो कि एक तरह से सीबीआई का यह कबूलनामा ही माना जाएगा कि वो किस तरह केन्द्र सरकार के इशारों पर काम करती है !

एक तरह से देखा जाए सीबीआई निदेशक का यह कबूलनामा सरकार के उस दावे कि पौल खोलता है जिसमें सरकार इतने दिन कहती आई है कि सीबीआई एक स्वतंत्र संस्था है और उन लोगों कि बातों पर सत्यता कि मुहर कि तरह है जो यह कहते थे कि सीबीआई तो सरकार के अधीन काम करती है इसलिए जिन घोटालों के आरोप सरकार पर लग रहे हैं उन पर सीबीआई द्वारा जांच कराने का कोई फायदा होने वाला नहीं है ! इस हलफनामे के बाद यह साफ़ हो गया कि किस तरह सरकार में बैठे लोग सीबीआई द्वारा सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की जाने वाली जांच रिपोर्ट को देखते हैं और जाहिर है देखते हैं तो उसमें फेरबदल करवाने कि कोशिश भी करते होंगे और करवाते भी होंगे !

इस बार तो यह मामला मीडिया में आने और सुप्रीम कोर्ट के द्वारा लिखित हलफनामे का आदेश देने के बाद सबको पता लग गया लेकिन इस बात का कैसे यकीन किया जाए कि विगत में ऐसा नहीं किया गया होगा और अगर विगत में सीबीआई द्वारा की गयी जाँचो के साथ भी ऐसा ही किया गया होगा तो उन जांचों को निष्पक्ष कैसे कहा जा सकता है ! वैसे भी सीबीआई द्वारा की गयी घोटालों की जाँचों को देखे तो उनमें घोटालों से ज्यादा घोटाला नजर आएगा ! किस तरह बोफोर्स घोटाले ,चीनी घोटाले ,यूरिया घोटाले और १९८४ के सिख दंगों के साथ ही अन्य मामलों की जांच के नाम पर लीपापोती की गयी थी !

रविवार, 17 मार्च 2013

भ्रष्टाचार का बढ़ता दानव और जनता की जागरूकता !!

हमारे देश में भ्रष्टाचार को लेकर जबरदस्त बहस छिड़ी हुयी है और हर कोई इस पर अपने विचार दे रहा है ! कोई कड़े कानूनों कि बात कर रहा है तो कोई मौजूदा कानूनों को हि प्रयाप्त मानते हुए सरकारों कि इच्छाशक्ति पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है ! हालांकि कड़े कानून और दृढ़ सरकारी इच्छाशक्ति से भी भ्रष्टाचार पर कुछ हद तक अंकुश लगाया जा सकता है लेकिन भ्रष्टाचार नें जिस तरह से अपने पैर जमा रखें हैं उसको देखकर लगता नहीं कि जनता कि जागरूकता के बिना इस पर पूर्ण रूप से लगाम लगाई जा सकती है ! 

हम बात जब जनता कि जागरूकता कि करतें है तो हमको पुरे देश के जनमानस कि मानसिकता को जानना और समझना बहुत हि जरुरी हो जाता है ! भारत कि जनता की बात की जाए तो आज भी हालात यह है कि देश की आधी से ज्यादा आबादी तो ऐसी है जिसको यह पता हि नहीं है कि सरकारी पैसा हमारा अपना पैसा है और हमसे जो कर वसूला जाता है वही पैसा सरकार तक पहुँचता है और उसी पैसे से सरकारी योजनाएं और सरकारी मशीनरी चलती है ! और वो लोग सोचते हैं कि कोई सरकारी धन कि लुट करता है तो उनको लगता है कि हमें क्या फर्क पड़ता है सरकार का धन लुट रहा है उसकी चिंता भी सरकार करे अपना तो कुछ जाता नहीं है ! इसको मैंने कई बार महसूस किया है में कई बार राज्य परिवहन कि बसों में यात्रा करता हूँ तो देखता हूँ कि कंडक्टर जब टिकट नहीं देता है तो बहुत कम लोग ऐसे होतें है जो उससे टिकट कि मांग करते हैं और वो इसलिए नहीं करते क्योंकि उनको लगता है कि हमारे तो एक दो रूपये का फायदा हो रहा है और नुकशान तो सरकार को हो रहा है ! अपना तो कोई नुकशान नहीं है ! उनको पता हि नहीं रहता कि यह सारा नुकशान उन्ही का हो रहा है !

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

भारतीयों के हितों की रक्षा कर पाएगी हमारी सरकारें !

पिछले दिनों हमारी सरकार नें खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को मंजूरी दी थी तो जो लोग उसका विरोध कर रहे थे उनके विरोध को विदेशी निवेश के समर्थक यह कहकर खारिज कर रहे थे कि आज ईस्ट इण्डिया कम्पनी वाला ज़माना नहीं है ! हमारी सरकार है और अगर कहीं कुछ गलत होता है तो हमारी सरकार हमारे हितों की रक्षा करेगी ! यह कहने वालों में वो लोग शामिल थे जो बड़े बड़े बुद्धिजीवी और अर्थशास्त्र के जानकार माने जाते हैं ! अब सवाल यह उठता है कि उनकी बातों में सच्चाई है या फिर कुछ लोगों के फायदे के लिए हि इस बात को कहा जा रहा था !

जो लोग विदेशी निवेश के समर्थक हैं और सरकार पर वो लोग इतना भरोसा कर रहें है लेकिन में इस मामले पर कहना चाहता हूँ कि उनकी बात सच्चाई से कोसों दूर है ! हम शायद बहुत भुलक्कड़ हैं इसीलिए हमें याद नहीं रहता और इस तरह के तर्क देते हैं  वर्ना आजाद भारत में भी ऐसे उदाहरण हमारे सामने है कि हमारी सरकार विदेशी कंपनियों से हमारे हितों की रक्षा करने में नाकाम रही है ! ये लोग शायद भोपाल गैस कांड को भूल गए जिसमें एक हि रात में तक़रीबन १७००० से ज्यादा लोग मारे गए थे तथा हजारों लोग जीवन भर के लिए अपंग हो गए और उस कम्पनी यूनियन कार्बाइड के मुखिया एंडरसन को सत्ता से जुड़े लोगों ने इस देश से ना केवल यहाँ से जाने दिया बल्कि उसको देश से बाहर निकालने में मदद भी की ! 

शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

राजनैतिक व्यापारी !!

जिस तरह से एक के बाद एक आरोप रूपी खुलासे हो रहें हैं और जिस तरह से राजनितिक फायदा उठाकर अपनी सम्पतियों में इजाफा किया गया है वो यह दिखाने के लिए प्रयाप्त है कि ये लोग किस तरह से एक दूसरे से मिलकर देश को लुट रहें है ऐसे में यही कहा जा सकता है कि राजनीति को राजनैतिक व्यापारियों से बचाना बहुत जरुरी है !!

जिस तरह वाड्रा ,गडकरी और वीरभद्र सिंह जैसे लोगों पर जो आरोप लग रहें हैं और एक बारगी देखने पर तो  उनमे कुछ सच्चाई भी नजर आ रही है क्योंकि ये लोग एक ही बात बार बार कह रहे हैं कि सारे आरोप निराधार और बेबुनियाद हैं लेकिन जो सवाल खड़े हुयें हैं उनका जवाब कोई भी नहीं दे रहा है और अगर कोई दे भी रहा है तो जलेबी की तरह से गोल गोल घुमा के दे रहा है जो किसी कि भी समझ में नहीं आ रहा है जिससे ये साफ़ है कि जवाब इनके पास है ही नहीं !!

किस तरह से वाड्रा कुछ ही समय में लखपति से अरबपति बन जाता है उसी तरह से वीरभद्र सिंह की आय अचानक से तीस प्रतिशत तक बढ़ जाती है और यही हाल गडकरी का है जिन पर नए नए खुलासे रोज हो रहें है और यह भी पता लग रहा है कि किस तरह से इन लोगों ने सता की नजदीकियों और अपने राजनैतिक रसूख का नाजायज फायदा उठाया है !!