उतराखण्ड में प्राकृतिक आपदा नें भारी जान माल की क्षति पहुंचाई है जिसकी भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज तीसरा दिन है लेकिन अभी तक सटीक सूचनाएं देनें में प्रशासन असमर्थ साबित हो रहा है ! जिससे जाहिर है कि पृकृति नें भयंकर कहर बरपाया है और पहाड़ी क्षेत्र होनें के कारण और सड़कों के बह जाने और टूट जाने के कारण लोगों तक सहायता पहुंचाने में भारी परेशानी आ रही है ! प्राकृतिक आपदाओं को रोका तो नहीं जा सकता लेकिन इनसे निपटने के लिए अगर सही प्रबंधन पहले से किया जाए तो होने वाले नुकशान को कम जरुर किया जा सकता है !
उतराखण्ड हो या हिमाचल प्रदेश ,राजस्थान ,दिल्ली प.बंगाल अथवा देश का अन्य कोई राज्य हो लेकिन जब भी किसी तरह कि प्राकृतिक आफत अथवा अन्य किसी तरह की आपदा से सामना होता है तो उससे निपटनें में हमारे आपदा प्रबंधन विभाग हमेशा ही नाकाम साबित होते रहें है ! और सरकारों में बैठे लोग कुछ समय बयानबाजी करके और मुआवजों का एलान करके खानापूर्ति करके फिर गहरी नींद सो जाते हैं ! प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए जो विभाग बनाए गए हैं वो हमेशा नाकाम साबित होते हैं और हर समय सेना की मदद ही लेनी पड़ती है !
हकीकत में देखे तो आपदा प्रबंधन विभाग सफ़ेद हाथी ही साबित होते हैं जिनको सदैव पाला जाता है और जरुरत के समय ये विभाग त्वरित कारवाई करनें में नाकाम साबित होते हैं ! सेना नें हरदम हर आपदा में प्रशंशनीय कार्य किया है और हर छोटी बड़ी आपदा में जब तक सेना काम नहीं संभालती है तब तक ऐसा लगता ही नहीं है मानो अन्य विभाग कोई कार्य कर रहे हैं ! आखिर किसी आपदा से प्रभावित लोगों की सहायता के लिए ही तो आपदा प्रबंधन जैसे विभाग बने हुए हैं लेकिन इन विभागों की नाकामियां इन विभागों की प्रासंगिकता पर ही सवालिया निशान लगा देती है !
वैसे इन विभागों की कार्यप्रणाली पर गौर करें तो यह विभाग किसी प्रकार की आपदा के समय ही हरकत में आते हैं और आपदाओं से निपटने के तौर तरीकों पर पहले से कोई तैयारी नहीं होती है ! जिसके कारण सदैव इन विभागों में अनिश्चय कि स्थति बनी हुयी रहती है और वही स्थति इनके कार्य करने कि क्षमता को प्रभावित करती है ! जिसके कारण समय पर मदद दे पानें में विभाग नाकाम रहते हैं और जिस नुकशान को कम किया जा सकता है वो ज्यादा हो जाता है !
हकीकत में देखे तो आपदा प्रबंधन विभाग सफ़ेद हाथी ही साबित होते हैं जिनको सदैव पाला जाता है और जरुरत के समय ये विभाग त्वरित कारवाई करनें में नाकाम साबित होते हैं ! सेना नें हरदम हर आपदा में प्रशंशनीय कार्य किया है और हर छोटी बड़ी आपदा में जब तक सेना काम नहीं संभालती है तब तक ऐसा लगता ही नहीं है मानो अन्य विभाग कोई कार्य कर रहे हैं ! आखिर किसी आपदा से प्रभावित लोगों की सहायता के लिए ही तो आपदा प्रबंधन जैसे विभाग बने हुए हैं लेकिन इन विभागों की नाकामियां इन विभागों की प्रासंगिकता पर ही सवालिया निशान लगा देती है !
वैसे इन विभागों की कार्यप्रणाली पर गौर करें तो यह विभाग किसी प्रकार की आपदा के समय ही हरकत में आते हैं और आपदाओं से निपटने के तौर तरीकों पर पहले से कोई तैयारी नहीं होती है ! जिसके कारण सदैव इन विभागों में अनिश्चय कि स्थति बनी हुयी रहती है और वही स्थति इनके कार्य करने कि क्षमता को प्रभावित करती है ! जिसके कारण समय पर मदद दे पानें में विभाग नाकाम रहते हैं और जिस नुकशान को कम किया जा सकता है वो ज्यादा हो जाता है !
11 टिप्पणियां :
आपकी यह रचना कल गुरुवार (20-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
आपकी पोस्ट को आज के ब्लॉग बुलेटिन 20 जून विश्व शरणार्थी दिवस पर विशेष ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ...आभार।
आपदा प्रबंधन सिर्फ़ मलाई मारने के विभाग हैं, जरूरत पडने पर हमेशा ही बेकार साबित हुये हैं.
रामराम.
सार्थक लेख |
hona hi hai kyonki ham poorvanuman nahi kar sakte sab kuchh har sal jhelkar bhi .उम्दा प्रस्तुति .बहुत सही बात कही है आपने . आभार . यू.पी.की डबल ग्रुप बिजली आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN मर्द की हकीकत
सहर्ष आभार !!
सहर्ष आभार !!
आभार तुषार जी !!
आभार !!
आपदा प्रबधन मात्र एक बोझ दिखावा,मात्र है.केवल कुछ लोगों को रोजगार देने का जरिया.कुछ तो पहले से ही रोजगार में होते हैं.जनता इस भ्रम में रहती है कि सत्कार ने इसके माध्यम से उपयुक्त व्ययस्था कर राखी है और होता यह है कि वह ऐन मौके पर टायं टायं फिस्स साबित होता है.नेताओं नकी प्रतिकिरिया भी काबले तारीफ़ व गौर करने योग्य है,जब उत्तरा खंड के आपदा प्रबंधन मंत्री यह कहते सुने गए कि दो दिन पहले ऐसी चेतावनी मिली तो थी पर गंभीरता से इसलिए नहीं लिया गया कि यह चेतावनिया तो आती ही रहती हैं.फिर क्यों तो मौसम विभाग कि जरूरत है और क्यों आपदा प्रबंधन संस्था की क्यों इन हाथियों कप पाला जाता है.. कोई और गैर कोंग्रेसी राज्य होता तो कोंग्रेसी कौवे कांव कांव कर इस्तीफे राज्य में राष्ट्रपति शाशन की मांग करते चिल्लाते पर आज हजारों लोगों के मरने पर भी वे अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते.और विपक्ष तो खेर मरे सामान ही है,वह तो अपनी टांग खुद ही खींच कर लड़ने मरने पर उत्तारू है. चाहे भूकंप आये चाहे बाढ़,चाहे दंगे हों या कोई भी प्राक्रतिक आपदा ये प्रबधन तो सदेव ऐसा ही रहा है.प्यास के समय कुआँ खोदने के समान.
सही कह रहें हैं आदरणीय !!
सादर आभार !!
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