भाजपा के वरिष्ठ नेता गोपीनाथ मुंडे के चुनावी खर्च पर दिए गए बयान को लेकर चुनाव आयोग उनको नोटिस भेजने की तैयारी कर चूका है ! और अगर बयान सही पाया गया तो उनके ऊपर कार्यवाही भी की जा सकती है लेकिन आखिर गोपीनाथ मुंडे नें कोई ऐसी बात तो कही नहीं जिसके बारे में देश नहीं जानता हो ! हर कोई जानता है कि चुनावों में किस तरह पैसा पानी की तरह बहाया जाता है ! इस देश का हर विधायक और हर सांसद झूठा हलफनामा और चुनावी खर्च का ब्यौरा चुनाव आयोग को देता है ! फर्क यही है कि बाकी लोग अपनी बात को अपनें मुहं से स्वीकार नहीं करते हैं और गोपीनाथ मुंडे नें आवेग में आकर वो बात स्वीकार कर ली !
आज जो चुनावी खर्च हो रहा है उसके बारे में पूरा देश जानता है तो क्या चुनाव आयोग में बैठे अधिकारी इस हकीकत से अनजान है ! जमीनी तौर पर आज की हकीकत को देखा जाए तो आज मनरेगा लागू होने के बाद कई जगह तो सरपंचों के चुनाव में सतर से अस्सी लाख रूपये खर्च किये जा रहे हैं ! जबकि हमारा चुनाव आयोग द्वारा सांसदों के लिए खर्च की सीमा चालीस लाख निर्धारित की गयी है और सरपंचों के लिए तो ये सीमा पांच हजार रूपये ही है ! सरपंचों के चुनावों में अधिकतम खर्च वाली चुनिन्दा जगहों को अलग भी कर दें तो भी पांच लाख से कम में तो आज कहीं भी सरपंच का चुनाव ही नहीं लड़ा जा रहा है ! जिसका जिक्र मैंने अपने एक आलेख "अवैध चुनावी चंदा ही भ्रष्टाचार की असल जड़ है " में किया था !
अब इस तरह से अंधाधुंध खर्च हो रहा है तो इसका जिम्मेदार कौन है ! क्या चुनाव आयोग इसके लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं है क्योंकि चुनावी खर्च की निगरानी का काम तो चुनाव आयोग का ही है ! अब ऐसा तो हो नहीं सकता कि चुनाव आयोग का दायित्व संभाल रहे लोग इससे अनभिज्ञ हो और अनभिज्ञ है तो यह तो और भी चिंता की बात है ! क्योंकि जो लोग खुद अनभिज्ञ है वो अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कैसे कर पायेंगे ! और अगर अनभिज्ञ नहीं है तो फिर उन्हें सोचना चाहिए कि क्यों वो जिन्दा मक्खी निगलने को तैयार है !
वैसे जो लोग हकीकत को नहीं जानते हैं उनकी नजर में भले ही चुनाव आयोग चुनावों में चुनावी निगरानी का काम करता हो लेकिन हकीकत इससे उलट है ! जब भी कोई प्रत्याशी नामांकन दाखिल करता है तो उसे रोजाना का चुनावी खर्च का ब्यौरा लिखने के लिए एक तय प्रारूप का फ़ार्म पकड़ा दिया जाता है जिसमें उसे अपने खर्चे का इन्द्राज करना पड़ता है और चुनावों के बाद उस भरे हुए प्रारूप को संबधित अधिकारी के यहाँ जमा करवा दिया जाता है ! इस बीच में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं होती है कि वो प्रत्याशी रोजाना अपनें खर्चे लिख रहा है या नहीं लिख रहा है ! हकीकत यही है कि कोई प्रत्याशी खुद तो चुनावी खर्चे का लेखा जोखा भरता ही नहीं है और चुनावों के बाद उस प्रत्याशी के लोग उस प्रारूप को भरते है और यह ध्यान रखा जाता है कि खर्च निर्धारित सीमा से अधिक ना हो !
अब खर्च के मामले में जब सब कुछ प्रत्याशियों पर ही निर्भर है तो यह अंधेरगर्दी तो चलेगी ही और चुनाव आयोग बाद में भी दिए गए चुनावी खर्चों की कोई जांच नहीं करता है ! जब कभी अन्य प्रत्याशी द्वारा शिकायत की जाती है तो जरुर जांच के नाम पर खानापूर्ति ही की जाती है ! अब सवाल उठता है कि क्या इस बढते हुए चुनावी खर्चे के लिए खुद चुनाव आयोग की लचर व्यवस्था मददगार नहीं है !
18 टिप्पणियां :
सही बात है। ये तो उल्टा निठल्ले चु,आ, के मुह पर एक तमाचा है कि प्रत्याशी खुद दिस्क्लोज कर रहा है और इसे पता नहीं।
किया किन्तु क्यूँ कह दिया, मुंडे क्या औकात |
गुंडे से ही हम डरें, खाएं उनकी लात-
मुंडे साबित क्या करना चाहते हैं समझ में न आया,चुनाव आयोग को चुनौती देना क्या सही है।बेहतरीन सामयिक आलेख।
satik aur sahi
सही कह रहे हैं आप !!
सादर आभार !!
सटीक !!
सादर आभार आदरणीय !!
राजनितिक नेताओं द्वारा कई बार आवेग में ऐसा कह दिया जाता है जिसके कारण उनको बाद में पछताना पड़ता है और वही मुंडे के साथ हुआ है !
आभार !!
सादर आभार !!
चुनाव आयोग भी सरकार का पालतू अँधा, गुंगा और बहरा बन्दर है
latest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )
सटीक,आलेख ,,,
RECENT POST: ब्लोगिंग के दो वर्ष पूरे,
आपकी पोस्ट को आज के बुलेटिन चवन्नी की विदाई के दो साल .... ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ...आभार।
सही लिखा आपने पूरण जी,सब जानते हुए भी सब बेखवर बने रहते हैं शानदार लेख आभार।
सही कहा है आपनें !!
सादर आभार !!
सादर आभार !!
आभार !!
बेवजह हंगामा बरपा है।
सच्चाई ये है कि छह करोड में तो विधानसभा के चुनाव नहीं लड़े जाते।
सहर्ष सादर आभार आदरणीय !!
सही कह रहें हैं आप !!
आभार !!
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