शनिवार, 20 जुलाई 2013

जनता के साथ अजीब खेल खेल रही है सरकारें !!

हमारे देश में सरकारों का अजब हाल है उन्होंने इस देश को फ़ुटबाल का मैदान समझ रखा है और जनता को फ़ुटबाल ,तभी तो वो जब चाहे जो चाहे और उनके मन में जो आये वो करती रहती है ! असल में सरकारों नें इस देश की जनता को मुर्ख समझ रखा है ! अब सरकार खाध सुरक्षा बिल ला रही है जिसके कारण सरकार की नियत पर सवाल उठना लाजमी है !

एक तरफ सरकार कहती है कि ८४ करोड़ लोगों की भूख मिटानें की यह महत्वाकांक्षी योजना है और इस पर एक लाख छब्बीस हजार करोड़ रूपये का खर्च प्रतिवर्ष आएगा ! दूसरी तरफ उसी सरकार का योजना आयोग कहता है कि शहरी क्षेत्र में ३२ रूपये और ग्रामीण क्षेत्र में २६ रूपये से ऊपर कमानें वाला गरीब नहीं है और भरपेट खाना खा सकता है ! योजना आयोग के हिसाब से तो सरकार झूठ बोल रही है क्योंकि उसके आंकड़े को गरीबी रेखा का पैमाना माना जाए तो गरीबों की संख्या बिना कुछ किये अपनें आप बहुत कम हो जाती है ! और अगर सरकार सच बोल रही है तो उसी सरकार का योजना आयोग नें पहले क्यों झूँठ बोल कर गरीबों के असली आंकड़ों को छुपाने की कोशिश की !

जब जनता को पेट्रोल और डीजल पर राहत देनें की बात आती है और जब सरकार की डीजल और रसोई गैस पर से सब्सिडी कम करने पर आलोचना होती है तो हमारे माननीय अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री कहतें हैं कि पैसे पेड़ पर नहीं उगते हैं तो अब माननीय प्रधानमंत्री जी को बताना चाहिए कि इस योजना के लिए पैसे कहाँ से आयेंगे ! और फिर जनता से ही सब्सिडी कम करके और तरह तरह के कर लगा कर इस योजना का खर्च वसूल करना है तो महज चुनावी नौटंकी के तहत पहले से ही महंगाई और सरकारी करों के बोझ से दबी जनता पर यह बोझ और क्यों डाला जा रहा है !


आज के समय में भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत इस स्थति में तो कतई नहीं है कि इस तरह की लोकलुभावनी योजनाओं का खर्च वहन कर सके ! और ये बात सरकार खुद मान रही है और लगातार रूपये की कम होती क्रय शक्ति इसकी गवाही भी दे रही है और उस पर काबू पानें के लिए सरकार अर्थव्यवस्था में विदेशी भागीदारी बढाने के लिए अलग अलग क्षेत्रों में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाती जा रही है ! इससे पहले सरकार नें मनरेगा जैसी भारी भरकम योजना लागू की थी और उसका बोझ सरकारी खजानें पर इस कदर पड़ा कि उसके बाद सरकार नें जनता की कमर तोड़ के रख दी ! क्योंकि सरकारी खजानें में तो पैसा कोई अपनें आप आता नहीं है बल्कि जनता से वसूल किये जानें वाले करों से ही आता है !

दरअसल सरकारें जनता के साथ खेल खेल  रही है और एक और तो जनता के भले के नाम पर भारी भरकम योजनाएं बनाकर जनता का भला करनें का ढोंग कर रही है जबकि उन्हें सरकारी कोष इस बात की इजाजत बिलकुल नहीं दे रहा है और जाहिर है सरकारी कोष की इजाजत के बिना ये योजनाएं लागू की जा रही है तो जनता से ही फिर ये वसूला भी जाना है ! 

16 टिप्‍पणियां :

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

Sach me yah ek khel hi hai.....

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

सरकार सिर्फ़ आंख मिचौली का खेल खेलने के लिये ही तो बनाई जाती है, इनको जनता की या देश की कुछ पडी नही है.

रामराम.

Unknown ने कहा…

सही लिखा आपने जनता पर ही सारा बोझ डाल देती हैं।

HARSHVARDHAN ने कहा…

आज की बुलेटिन अकबर - बीरबल और ब्लॉग बुलेटिन में आपकी पोस्ट (रचना) को भी शामिल किया गया। सादर .... आभार।।

सूबेदार ने कहा…

puran ji aap bahut acchha likhte hai
aapka lekh sam-samyik hai.

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

अकेले सरकार को क्या दोष देना पूरणजी, जनता ही कहाँ कम है? स्वाभिमान छोड़कर हर कोई सरकारी गरीब बनने को तैयार है। बत्तीस रूप्ये रोज से ज्यादा कमाने वाला गरीब नहीं और लपटॉप, एसी, फ़्रिज, वाशिंघ मशीन वाले गरीब - दोनों पैमाने सरकार के ही।
http://www.hindustantimes.com/India-news/NewDelhi/The-new-urban-poor-people-who-own-laptop-fridge/Article1-1094121.aspx

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सही कहा ताऊ !!
आभार,राम राम !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार मनोज जी !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सहर्ष आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आप सही कह रहें हैं लेकिन जनता को यह आदत सरकारों नें ही लगाईं है ! कभी गरीब के नाम पर तो कभी जाति अथवा धर्म के नाम पर ! मैनें गरीबी के इसी सरकारी आंकड़े पर भी प्रश्नचिन्ह लगाया है !
आभार !!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

सूरदास जी को पैसे जुटाने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी इस योजना के लिए। सिर्फ चुनावी खेल है,२० १४ तक का। नेताओं का कसूर नहीं जो वे जनता को बेवकूफ समझते है , लेकिन मुझे आश्चर्य तो इस जनता पर होता है।

dr.mahendrag ने कहा…

वोट के लिए रुपए के पेड़ भी ऊग जाते हैं,जनता का ख्याल भी आ जाता है,अपने वादे भी याद आ जाते हैं.,जागरूक मतदाता के अभाव में यह सब ऐसे ही चलेगा,केवल एक बार वोट दे कर अपने कर्तव्य की इति श्री न समझे,पांच साल तक उनके कामों पर नजर रख दुबारा चुनाव के समय उसके आधार पर मत दे,एक सतत जागरूकता जरूरी है,तब ही सरकार के ऐसे विवेकहीन निर्णयों पर रोक लग सकती है.

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सही कह रहें है आप !
आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

जनता ये बात समझे तब हो ना !!
सादर आभार !!